शनिवार, 6 अप्रैल 2013

यातनागृह में तब्दील होते शिक्षा के मंदिर


यातनागृह में तब्दील होते शिक्षा के मंदिर
सत्यजीत चौधरी

    अंग्रेजी में एक कहावत बहुत प्रचलित थी, स्पेयर द रॉड एंड स्पॉयल द चाइल्ड । यानी बच्चे को बर्बाद करना हो तो छड़ी का सहारा छोड़ दो। पश्चिम के अधिसंख्य देशों ने बहुत पहले इस फार्मूले पर अमल बंद कर दिया है और स्कूलों में बच्चों को शारीरिक दंड और मानसिक यातना दिए जाने के खिलाफ कड़े कानून बना दिए हैं। सुधार और अनुशासन के नाम पर बच्चों को दिए जाने वाले दंड को अंग्रेजी में कारपोरल पनिशमेंट कहा जाता है। बदकिस्मती से हमारे देश में बच्चों को कारपोरल पनिशमेंट से बचाने के लिए कानून तो बन गया है, लेकिन दंड देने की प्रथा अब भी कायम है। अनुशासन के नाम पर कभी—कभी सजा की तमाम हदें और मर्यादाएं तोड़ डाली जाती हैं। बच्चों को एक-दूसरों से पिटवाना, उन्हें स्वमूत्रपान के लिए मजबूर करना, अंधेरे कमरे में बंद कर देना, इतना पीटना कि उसके कान का पर्दा फट जाए, जैसी सजाएं आये—दिन सुर्खियां बनती हैं। कुछ दिन पूर्व राजस्थान के भीलवाड़ा के एक ग्रामीण क्षेत्र में सरकारी स्कूल में 38 बच्चियों के बाल काटे जाने की घटना ने एक बार फिर हमारे शिक्षा प्रणाली के आगे सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। जिले के सुवाणा ब्लॉक में बोरड़ा गांव के बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय की इन मासूमों का कुसूर सिर्फ इतना था कि दो चोटी कर आने के लिए प्रिंसिपल के फरमान की उन्होंने अनदेखी की थी। प्रिंसिपल और तीन टीचरों ने मिलकर रोती—बिलखती 35 लड़कियों के बालों पर कैंची चला दी। बाद में जब अभिभावकों ने विरोध किया तो प्रिंसिपल को सस्पेंड और तीनों टीचरों को एपीओ कर दिया गया, लेकिन जिन बच्चियों के साथ यह अमानवीय व्यवहार किया गया है, वे ताउम्र इस कसैली यादों के साथ जिएंगी।

भारत में कारपोरल पनिशमेंट के खिलाफ कानून

     निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार-2009 की धारा 17: 1 के तहत बच्चों को शारीरिक दंड दिए जाने पर पूर्ण प्रतिबंधित कर दिया गया है। अधिनियाम की धारा 17:2 की व्यवस्था के मुताबिक उपधारा—एक के प्रावधानों को उल्लंघन किए जाने पर कार्रवाई का प्रावधान है। बाद में बीस जुलाई, 2010 को केंद्र सरकार ने कारपोरल पनिशमेंट के खिलाफ गाइडलाइंस का नया सेट जारी किया। प्रदेशों के मुख्य सचिवों के माध्यम से आयोग ने स्कूलों शारीरिक दंड न दिए जाने की हिदायत दी थी। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सहयोग से बनी इन गाइडलाइंस का राज्य और वहां के स्कूल कितना पालन करते हैं, यह बच्चियों के बाल काटे जाने की घटना से साफ हो गया है।
      गाइडलाइंस में आयोग ने बच्चों की तरह स्कूलों को समझाया था कि कौन—कौन सजा खुद टीचर को सजा दिला देगा। गाइडलाइंस साफ-साफ कहा गया है कि बच्चों को पीटना, बाल नोचना, कान उमेठना, चिकोटी काटना, थप्पड़ मारना, छड़ी से मारना, धूप में खड़ा करना, बेंच पर या दीवार की तरफ मुंह कर खड़ा करना, कान पकडक़र खड़ा करना जैसी सजा तुरंत बंद कराए। यही नहीं, बच्चे को अकेले कमरे या टॉयलेट या कमरे में बंद करना भी स्कूलों को रोकना होगा। बच्चे की सीखने की क्षमता का मजाक उडाना, उसकी नाम का उपहास और अन्य तरह की मानसिक पीड़ा पर भी आयोग ने सख्त रुख अपनाया।
    राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग यानी एनसीपीसीआर द्वारा शैक्षणिक सत्र 2009—2010 के दौरान देश के सात राज्यों में कराए गए अध्ययन के दौरान खुलासा हुआ था कि स्कूलों में 98 फीसद बच्चे कारपोरल पनिशमेंट यानी शारीरिक दंड के शिकार बनते हैं। सात राज्यों में 6,632 बच्चों से बात की गई। केवल नौ ने कहा कि उनको किसी तरह का शारीरिक दंड नहीं दिया गया।
    आयोग ने पाया कि आमतौर से बच्चों को चार तरह से दंडित किया जाता है। छड़ी से पिटाई, थप्पड़ मारना, पीठ पर मुक्के से वार और कान उमेठना। 75 फीसद ने छड़ी से पिटाई की बात मानी, जबकि 69 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें गाल पर तमाचे मारे गए। आयोग ने उत्पीडऩ के तरीकों के जो आंकड़े जमा किए हैं, उनमें इलेक्ट्रिक शॉक तक दिए जाने के मामले हैं। बाद में आयोग के पैनल सुझाव दिया कि स्कूलों में पिटाई, मानसिक उत्पीडऩ और भेदभावपूर्ण व्यवहार को कारपोरल पनिशमेंट की श्रेणी में रखा जाए। इसका मतलब यह हुआ कि 6,623 या 98.86 प्रतिशत बच्चों ने एक या एक से अधिक तरह के दंड दिए जाने की बात कबूल की। 81.2 बच्चों ने शिकायत की कि उनको सिरे से खारिज करते हुए नाकारा साबित करने की कोशिश की गई और कहा गया पढ़ाई उनके बस की बात नहीं है।

सजा के प्रावधान
   
    इसके तहत स्कूलों में बच्चों की पिटाई पर प्रतिबंध का पहली बार उल्लंघन करने पर एक साल की कैद और पचास हजार जुर्माना हो सकता है। अगर शिक्षक या स्कूल का कोई अन्य कर्मचारी यह कृत्य दोहराता है तो तीन साल की सजा के साथ 25 हजार का अतिरिक्त जुर्माना लगाया जा सकता है। दोषी पाए गए अध्यापक की पदोन्नति के साथ इंक्रीमेंट भी रोका जा सकता है।
गाइडलाइंस में स्कूलों से कहा गया है कि वे बच्चों की पिटाई रोकने के लिए विशेष निगरानी सेल बनाएं। साथ ही यह सुझाव भी दिया गया है कि न्योक्ता नौकरी देते समय अध्यापक से हलफनामा ले कि वह बच्चों की पिटाई नहीं करेगा।

विकास होता है प्रभावित

    अट्ठारहवीं शताब्दी में यूरोप में कारपोरल पनिशमेंट और स्पैंकिंग ( पैरों में बच्चों के नितंबों पर मारकर सजा देना) के खिलाफ दर्शनशास्त्री और समाजसेवियों का एक बड़ा वर्ग खड़ा हो गया था। बाद में संयुक्त राष्ट्र की बाल अधिकारों से जुड़ी समिति ने भी कारपोरल पनिशमेंट के खिलाफ कुछ गाइडलाइंस तैयार कीं, जो काफी सख्त थीं। समिति ने माना था कि कारपोरल और डोमेस्टिक कारपोरल पनिशमेंट से बच्चे के मानसिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि जिन बच्चों की स्कूल या घर पर लगातार पिटाई होती है, बड़े होने पर उनमें कई तरह की मानसिक व्याधियां जन्म लेने की आशंका रहती है। कनाडा के विनीपेग स्थित मानीटोबा विश्वविद्यालय में ट्रेसी एफीफी और उनके साथियों ने शोध में पाया कि जो लोग बचपन में मानसिक उत्पीड$न और शारीरिक दंड से लगातार दो—चार होते हैं, बड़े होने पर उनमें मूड डिसऑर्डर, थकान, चिड़चिड़पन पैदा हो जाता है। ऐसे लोग शराब या ड्रग्स की तरफ जल्दी आकर्षित होते हैं।


रूह कांप जाती है

     कड़े कानून के बावजूद स्कूलों में वहशी ढंग से सजा दिए जाने का सिलसिला जारी है। हाल में कोलकाता में गुरु रविंद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्व भारती के गल्र्स बोर्डिंग हाउस में एक मासूम को भयानक सजा दी गई। सोते में बच्ची ने बिस्तर गीला कर दिया तो वॉर्डन ने उसे स्वमूत्रपान के लिए विवश किया। इसी तरह, राजस्थान के भरतपुर के एक निजी स्कूल का है। यहां स्कूल व्यवस्थापिका के पर्स से किसी ने एक हजार रुपए निकाल लिए। इसके बाद चोर को खोज निकालने के लिए सत्तर से अधिक बच्चों को लोहे की छड़ से पीटा गया। मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के पाथाखेड़ा गांव के असलम की पिछले साल दिसंबर में दो टीचरों ने इतनी पिटाई की कि उसकी रीढ़ की हड्डी टूठ गई। बाद में भोपाल के हमीदिया अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया। असलम पर आरोप था कि उसने स्कूल की बाल्टी तोड़ दी। दो साल पहले जयपुर के एक स्कूल में होमवर्क नहीं करने पर सात साल की एक बच्ची की स्कूल में इस कदर पिटाई की गई कि उसकी एक आंख की रोशनी चली गई और बाद में जख्म ने कैंसर का रूप ले लिया। डेढ़ साल तक बच्ची का इलाज चलता रहा, लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका। अगस्त 2012 में जम्मू—कश्मीर के राजौरी में जवाहरनगर ठूजी के एक स्कूल में सातवीं एक छात्र की इतनी बेरहमी से पिटाई की गई कि उसके कान के दोनों पर्दे फट गए। पहले तो पिटाई करने वाले टीचर ने बच्चे के इलाज का खर्च उठाने का वादा किया, लेकिन बाद में मुकर गया। हिमाचल प्रदेश के मंडी में सराज क्षेत्र के भाटकीधार स्थित एक कॉलेज में नौवीं की छात्रा की इतनी क्रूरता से पिटाई की गई कि कई दिनों तक वह बेड पर पड़ी रही।
      मामला यही नहीं रुका सितम्बर, 2012 में 48 घंटों के दौरान कारपोरल पनिशमेंट के दो मामले दर्ज किए गए, जिसमें एक मामले में बच्चे की मौत हो गई। हैदराबाद में द रॉयल एम्बेसी स्कूल में दसवीं के छात्र मोहम्मद इस्माइल को घंटों मुर्गा बनाकर बैठाए रखा गया। वह बीमार पड़ गया और बाद में उसकी मौत हो गई। कुछ घंटों बाद ही गुंटूर के एक सरकारी स्कूल में दो छात्रों को पीटे जाने की खबर सुर्खियां बनी थीं। ओडिशा के भुवनेश्वर स्थित प्रभुजी एंग्लिश मीडियम स्कूल में चार साल के एलकेजी स्टूडेंट की टीचर ने सिर्फ इस बात के लिए पिटाई कर दी कि वह स्कूल में इधर-उधर दौड़ रहा था। इस साल फरवरी में मुंबई के वर्ली स्थित सैकरेड हार्ट हाई स्कूल में पंद्रह वर्षींय एक छात्रा को टीचर ने सिर्फ इसलिए थप्पड़ मारा कि वह उससे मोबाइल हैंडसेट छिपा रही थी। मामला हाईकोर्ट में पहुंचा तो सरकारी वकील ने अदालत में दलील दी कि यह धारा 323 के तहत मामूली चोट पहुंचाने का केस है।

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