सत्यजीत चौधरी
कहते हैं मुसीबत में साया भी साथ छोड़ देता है। यही हाल कांग्रेस का हो रहा है। नरेंद्र मोदी की हवा और आम आदमी पार्टी की धमक के चलते कांग्रेस हाशिये की तरफ खिंचती नजर आ रही है। उत्तर प्रदेश और हरियाणा में पार्टी के वरिष्ठ नेता साथ छोड़ रहे हैं तो तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में अपने ही जख्म दे रहे हैं। बिहार में हाल में राजद के साथ कांग्रेस के गठबंधन में मिठास कम और खटास ज्यादा है।
द्रमुक ने दिया दर्द
आखिरी क्षणों में पलटी मारकर कांग्रेस के लिए दरवाजे बंद करते हुए द्रमुक ने पिछले दिनों तमिलनाडु में 35 और पुडुचेरी की एक लोकसभा सीट पर अपने उम्मीदवारों की सूची का ऐलान कर दिया कि वह अकेले चुनाव लड़ेगी। भ्रष्टाचार के मामले उजागर होने के बाद जिन दो मंत्रियों, ए राजा और दयानिधि मारन को द्रमुक ने फिर से उम्मीदवार बना दिया है। पिछले साल यूपीए से अलग होकर द्रमुक ने साफ कर दिया था कि भविष्य में वह कांग्रेस से कोई नाता नहीं रखेगी। अब हालात ये हैं कि तमिलनाडु कांग्रेस अलग—थलग सी पड़ गई है। यहां 24 अप्रैल को वोट पडऩे हैं। राज्य में लगभग सभी पार्टियों ने उससे दूर रहना पसंद किया है।
पूर्व गठबंधन सहयोगी द्रमुक द्वारा चुनावी तालमेल का दरवाजा बंद करने और डीएमडीके के भाजपा की तरफ रुझान के बाद कांग्रेस के लिए मुश्किल पैदा हो गई है। अब तक कांग्रेस तमिलनाडु में दो प्रमुख द्रविड़ पाॢटयां—द्रमुक और अन्ना द्रमुक के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की आदी रही है। अब यहां 1998 की तरह का परिदृश्य बनता दिख रहा है। तब कांग्रेस की झोली में एक भी सीट नहीं आई थी।
कांग्रेस के अलग—थलग पडऩे के और भी कारण हैं। कांग्रेस ने राजीव गांधी हत्याकांड मामले में सात दोषियों की रिहाई का विरोध किया था। इससे भी उसकी परेशानियां बढ़ी हैं। अन्नाद्रमुक प्रमुख एवं तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इस हत्याकांड में उम्रकैद की सजा पाए सात दोषियों की रिहाई का निर्देश दे कर इस संवेदनशील मुद्दे पर बाजी मार ली। उसके घोर विरोधी द्रमुक ने भी रिहाई का समर्थन किया।
अब चलते हैं आंध्र प्रदेश। विभाजन से पहले आंध्र प्रदेश में अप्रैल-मई में लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनाव होने हैं और विभाजन के बाद बनने वाले दोनों राज्यों में कांग्रेस की हालत खराब है।