सत्यजीत चौधरी
उत्तर प्रदेश समेत पांचों राज्यों में चुनाव अभियान ने रफ्तार पकड़ ली है। वादों और इरादों का बाजार गर्म है। मुद्दों पर धार चढ़ाई जा रही है। इस बार सभी दलों के पास एक साझा मुद्दा है—भष्टाचार। इसके अलावा कुछ स्थानीय मुद्दे हैं। कहने का मतलब यह है कि चुनाव कैसा भी हो, बिना मुद्दों के नहीं लड़ा जाता। चुनाव अगर एवरेस्ट है तो मुद्दे आॅक्सीजन। जहां तक उत्तर प्रदेश का सवाल है, यहां राजनीति हमेशा से ही बड़े और गंभीर मुद्दों के इर्द-गिर्द परिक्रमा करती है। मुद्दे नेताओं को जिंदा रखते हैं। ये अगर खत्म हो जाएं तो उनकी राजनीति के आगे बढ़ा सवालिया निशान लगने का खतरा पैदा हो जाता है। उत्तर प्रदेश में सियासी पार्टियों ने ऐसे मुद्दे गढ़े जिनके राष्टÑव्यापी प्रभाव रहा। राममंदिर, मंडल कमीशन जैसे कुछ मुद्दे ऐसे रहे जिन्होंने देश को धधका दिया। हरित प्रदेश पश्चिमी यूपी के एक बड़े हिस्से के लिए पिछले कई सालों से लॉलीपॉप का काम कर रहा है। इसके अलावा प्रदेश में गन्ना, भूमि अधिग्रहण, खाद-बीज-डीजल की महंगाई, सुशासन, सर्वजन हिताय जैसे मुद्दे राजनेताओं के चहेते रहे हैं।