सत्यजीत चौधरी
चुनावी बिसात पर तेजी से चालें चली जा रही हैं। शह और मात के इस खेल में सेहरा किसके सिर बंधेगा, इसका फैसला तो 16 मई को होगा, लेकिन अलग तरह से लड़े जा रहे इस चुनाव ने कई चीजें बदलकर रख दी हैं। राष्ट्रीय फलक पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का उदय इनमें एक बड़ी घटना है। मोदी आए और बहुत ही कम समय में उन्होंने सोच से लेकर लड़ाई के तरीके तक बदल डाले। 13 सितंबर, 2013 को भाजपा द्वारा मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद कई बड़े बदलाव दिखे हैं। खुद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के ढांचे में बढ़ा परिवर्तन दिखने लगा है। संघ के गणवेश को लेकर नाक-भौं सिकोडऩे वाला युवा वर्ग अब संघ की विचारधारा का कायल होता जा रहा। संघ की शाखाआें में युवाआें की सहभागिता में वृद्धि दर्ज की गई है।
दरअसल देखा जाए तो मोदी के पक्ष में जो हवा चल रही है, उसके पीछे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की दो साल की मेहनत और रणनीति का बड़ा रोल है। संघ ने पिछले दो साल में जमीनी स्तर पर यूपीए सरकार में भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल बनाया, उसने जनता में कांग्रेस और उसके घटक दलों के प्रति नाराजगी बढ़ी। खास बात यह है कि संघ ने कुल मिलाकर 120 सीटों वाले उत्तर प्रदेश और बिहार पर खास तौर से फोकस किया। इस काम में संघ के आनुषांगिक संगठनों, खास तौर से विद्यार्थी परिषद और भारतीय जनता युवा मोर्चा ने बड़ी भूमिका अदा की। आज अगर युवाआें का एक बड़ा वर्ग मोदी का दीवाना है तो उसका श्रेय संघ की युवाआें को जागृत करने की रणनीति को जाता है।