सोमवार, 21 अप्रैल 2014

तार-तार होता आप का तिलिस्म !

सत्यजीत चौधरी 
" आप अगर आप न होते तो भला क्या होते, लोग कहते हैं कि पत्थर के मसीहा होते "
      भारत के राजनीतिक इतिहास में शायद ही किसी एेसी पार्टी का उल्लेख मिले जिसका जन्म दूसरी पार्टियों का होश फाख्ता करने वाला हो और तेजी से जवानी की सीढ़ी चढ़ते हुए जो होश खोकर अपना सत्यानाश करा बैठे। जी हां, आम आदमी पार्टी की बात हो रही है। संक्षेप में कहें तो रामराज के खाके के साथ प्रस्तुत हुई आप का तिलिस्म बड़ी तेजी से तार-तार हो रहा है। तस्वीर धीरे-धीरे नहीं, बल्कि बड़ी तेजी से साफ हो रही है। पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल में एक खास तरह का उतावलापन है, जो बताता है कि उन्हें भ्रष्टाचार और राजनीतिक कदाचार के खात्मे और आडंबरविहीन साफ-सुथरे सिस्टम की स्थापना के वजाये कुर्सी की अधिक चिंता है। यही बेचैनी उनकी कोर टीम के सदस्यों में भी दिखाई दे रही है।
      आम आदमी पार्टी करप्शन के खिलाफ एक ठोस ब्यू प्रिंट के साथ हाजिर हुई थी। भ्रष्टाचारी को चौराहे पर सरेआम फांसी पर लटका देने, वसूली सुनिश्चित करने से लेकर जेल में डाल देने का एेलान करने वाली आम आदमी पार्टी की इस वैचारिक आक्रामकता के प्रति युवा वर्ग और शहरी आबादी का एक तबका आकर्षित भी हुआ, लेकिन समय के साथ मुलम्मा उतरता चला गया। पार्टी के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताआें पर जब भ्रष्टाचार के आरोप सही पाए गए तो उन्हें सिर्फ पार्टी से निष्कासित कर काम चला लिया गया। इसी से पता चलता है कि आप की कथनी और करनी में कितना अंतर है। बाकी जगह भी तो यही होता है। किसी पर भ्रष्टाचार का आरोप सही पाया जाता है तो उसे निलंबित या ज्यादा से ज्यादा निष्कासित कर दिया जाता है। सवाल यह उठता है कि दूसरों के भ्रष्टाचार के खिलाफ आप के तीखे तेवर आखिर अपने लोगों के भ्रष्टाचार पर नरम क्यों है?

फर्श से अर्श और फिर फर्श  
गांधीवादी नेता अन्ना हजारे के आंदोलन के गर्भ से पैदा आम आदमी पार्टी यानी आप ने जब राजनीतिक आकार लिया और अपनी सोच और कार्यक्रमों के साथ जनता के बीच आई तो लोगों को सड़ांध में ताजी और खुशगवार हवा का अहसास हुआ। लगा सिस्टम में जिस आमूल-चूल परिवर्तन की चाह है, उसे आप पूरा करेगी। गठन के कुछ ही दिन बाद दिल्ली विधानसभा के चुनाव में पार्टी का उतरना लोगों को अजीब—सा लगा, लेकिन पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने सीधे जनसंवाद का तरीका अपनाया, उसे लोगों ने पसंद किया। पार्टी की आर्थिक नीतियां और भ्रष्टाचार के खात्मे की योजना से लोग आकर्षित हुए। इसका नतीजा यह रहा कि अल्प समय चुनाव में उतरी आप को दिल्ली विधानसभा में 28 सीटें मिल गईं। कांग्रेस आठ सीटों पर सिमट गई और भाजपा 32 सीटें मिली। यानी सरकार बनाने की स्थिति में कोई नहीं था। अब आप के सामने दो विकल्प थे। त्रिशंकु विधानसभा और उसकी परिणति को स्वीकार करे या फिर कांग्रेस की मदद से सरकार बनाए। एक बार फिर जनता से राय ली गई और केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली में आप की सरकार बन गई।
     चुनावी वादों को पूरा करते हुए केजरीवाल ने मुफ्त पानी और बिजली के दाम कम कर लोगों को खुश कर दिया। कैग द्वारा बिजली कंपनियों की धांधलियों की जांच का काम भी शुरू हो गया। अरविंद केजरीवाल ने सुरक्षा लेने से इनकार करते हुए लाल बत्ती वीवीआईपी कल्चर को अलविदा कह दिया। लोगों को एक आदर्श सरकार के साक्षात्कार होने लगे। यहां तक सब ठीक-ठाक था, लेकिन कुछ बाद तेजी से घटनाक्रम बदले। आदर्श पार्टी की आदर्श सरकार पर अराजकता के रंग हावी होने लगे। मंत्री पद न दिए जाने से खफा विनोद कुमार बिन्नी बगावत पर उतर आए। मंत्रियों के बीच मतभेद की खबरें आने लगीं। आप सरकार में तत्कालीन मंत्री राखी बिड़ला (या बिड़लान) की कार की विंड शील्ड एक बच्चे के गेंद से चटख जाती है, वह राष्ट्रीय मुद्दा बन जाता है। एक मंत्री जजों की बैठक चाहते हैं। इसका प्रावधान संविधान में ही नहीं है, लेकिन वह अड़ जाते हैं।

उल्टे-सीधे फैसले
नौसीखिया सरकार कई उल्टे-सीधे फैसले लेकर हंसी की पात्र बनती हैं। ‘आप’ के मुख्यमंत्री जनता दरबार बुलाते हैं। यह सोचे बगैर कि हजारों लोग परेशानियों की पोटलियां बांधे इंतजार में हैं। भीड़ बेकाबू हो जाती हैं। केजरीवाल को भागना पड़ता है। केजरीवाल के एक मंत्री कहते हैं कि फलां नेता के मुंह पर थूक देना चाहिए। फिर उसके एक बड़े नेता माफी मांगते हैं। एक नेता कहते हैं कि पुलिस लाठी से मारे तो पुलिस पर पीछे से हमला करो। इसके एक मंत्री पुलिस कमिश्नर को यह कहते हैं कि हम उन्हें देख लेंगे। इसी दौरान खिडक़ी एक्सटेंशन हो गया। दिल्ली के कानून मंत्री सोमनाथ भारती खुदाई खिदमतगार बन गए और पुलिस पर उस मकान पर छापा मारने के लिए दबाव डालने लगे, जिसमें उन्हें शक था कि वहां यूगांडाई महिलाएं कुछ गलत कर रही हैं। इस मुद्दे पर पुलिस से उनकी झड़प ने जब मीडिया पर बड़ा रूप ले लिया तो केजरीवाल पूरी कैबिनेट और पार्टी कार्यकर्ताआे के साथ धरने पर जा बैठे। जब मीडिया ने धरने की तरीके पर सवाल उठाया तो आप की तरफ से जवाब आया—हां हम अराजक हैं। केजरीवाल दिल्ली पुलिस को सरकार के अधीन लाने की जिद करने लगे, लेकिन दूसरे ही दिन धरना खत्म भी कर दिया। धरना तो खत्म हो गया, लेकिन आप सरकार और पार्टी के तिलिस्म के टूटने का सिलसिला शुरू हो गया। कांग्रेस और भाजपा पर लोकपाल बिल का पारित न होने देने का आरोप लगाकर केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया और दिल्ली राष्ट्रपति शासन के हवाले हो गई।
आप पर इतनी बड़ी भूमिका लिखने का मकसद सिर्फ यह बताना है कि जिस नए डब और स्वरूप के साथ आप ने सियासी मैदान में हुंकान भरी थी, उसमें हकीकत कम और छद्म अधिक था। ‘आप’ की नई मुहिम का संदेश क्या था, बस यही कि सरकार चला नहीं सकते, तो अपनी सरकार खुद गिरा दें। शहीद बन जाएं। शहादत की इस पूंजी को 2014 लोकसभा चुनावों में भुनाएं। हां यही था आप का वर्क प्लान और मौजूदा चुनाव में पार्टी वही कर रही है। इतिहास गवाह है कि कोई भी व्यवस्था अराजकता से नहीं चल सकती, लेकिन आप है जो अराजकता को सफलता की कुंजी माने बैठी है। आप के कथित नायक अमिताभ बच्चन की तरह बनना तो चाह रहे हैं एंग्री यंगमैन, लेकिन बार-बार प्रेम चोपड़ा और डैनी के खलनायकी वाले किरदार में ढलकर अपने ही किए—कराए का सत्यानाश पीट ले रहे हैं।

मीडिया को ही निशाने पर ले लिया
आप के जन्म के साथ ही मीडिया ने पार्टी को हाथों-हाथ लिया। दिल्ली में आप की सरकार बनने से पहले भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार मीडिया के स्वभाविक चेहरे थे, लेकिन सरकार बनने के साथ ही केजरीवाल ने मोदी से टीवी सेट का फ्रेम छीन लिया। यह कहना गलत नहीं होगा कि आप को आप बनाने में भारतीय मीडिया और खास तौर से न्यूज चैनलों का बड़ा योगदान था। दरअसल भारतीय मीडिया भेड़तंत्र की मानसिकता का शिकार है। कुछ गंभीर टाइप के न्यूज चैनलों ने जब केजरीवाल पर फोकस किया तो भेड़ें मिमयाने लगीं। चैनलों पर केजरीवाल का साम्राज्य स्थापित क्या हुआ, समाचारपत्र भी उसी राह पर चल दिए। इसके बाद केजरीवाल ने एक झटके में पूरी मीडिया का पानी उतार दिया। नागपुर में दंभ से भरे उनके इस बयान से पूरा मीडिया जगत भौंचक्का रह गया। समूचे‘ मीडिया पर ‘बिके होने‘ का आरोप लगाते हुए अरविन्द केजरीवाल ने धमकी दी कि यदि आप सत्ता में आती है तो मुद्दे की जांच के बाद मीडिया के लोगों को जेल भेजा जाएगा। अपनी सुरक्षा तैनाती के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने के लिए केजरीवाल ने मीडिया पर हमला बोला और कहा, ‘इस बार पूरा मीडिया बिका हुआ है, यह एक बड़ा षड्यंत्र है, यह एक बड़ी राजनीतिक साजिश है। यदि हमारी सरकार सत्ता में आती है तो हम इसकी जांच कराएंगे और मीडिया के लोगों के साथ सभी को जेल भेजा जाएगा। नए विवाद को हवा देते हुए आप नेता ने आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी को बढ़ावा देने के लिए भारी भरकम राशि दी गई है। लेकिन जब उनकी टिप्पणियों के लिए कांग्रेस, भाजपा और भाकपा ने उन पर हमला बोला तो केजरीवाल आरोपों से मुकर गए। केजरीवाल भले ही आरोपों से मुकर गए, लेकिन उनके सिपहसालार आशुतोष, संजय सिंह और आशीष खेतान कई दिन तक मीडिया विरोधी विष वमन करते रहे। कोई और देश होता तो शायद मीडिया अब तक केजरीवाल को हाशिये पर खड़ा कर चुका होता, लेकिन यह भारतीय मीडिया की भेड़चाल का ही नतीजा है कि 25 मार्च को वाराणसी में केजरीवाल की रायशुमारी पूरी शिद्दत के साथ लाइव रही।

मुद्दे कहीं पीछे छूटे
आप ने नई तरह की राजनीति के साथ जनता के सामने आई थी। पार्टी ने भ्रष्टाचार को बड़ा हथियार बनाया था। सादा जीवन और आडंबरविहीन कार्यशैली पार्टी की पहचान बनी थी, लेकिन लोकसभा चुनाव की खुमारी जैसे—जैसे पार्टी पर हावी होती, तमाम आदर्श हवा होने लगे। मेट्रो में सफर कर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने और गिफ्ट में मिली नीले रंग की वैगन आर पर चलने में शान समझने वाले केजरीवाल के बारे में पिछले दिनों खबर आई कि उनके लिए एक बड़े मीडिया हाउस ने चार्टर्ड प्लेन का इंतजाम किया और केजरीवाल खुशी-खुशी उसपर सवार होकर जयपुर से दिल्ली पहुंचे। केजरीवाल और उनकी टीम की मौजूदा कार्यशैली पर नजर डाली जाए तो अब वे किसी भी सूरत में शेष राजनीतिक दलों से जुदा नहीं हैं। महंगाई, भ्रष्टाचार, आडंबरविहीन सिस्टम, जनता के अधिकार..सब के सब हवा हो चुके हैं। अब की जुबान पर नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी का नाम होता है। वह गुजरात जाते हैं और मोदी के विकास की दावों की पोल खोलने के बजाये ड्रामा रचकर टीवी चैनलों पर छा जाते हैं।

पार्टी में असंतुष्टों की भीड़
अरविंद केजरीवाल लगातार दावा करते रहे हैं कि वह पूरी स्कैनिंग के साथ पार्टी में नए सदस्य को शामिल करते हैं, लेकिन लोकसभा के टिकट को लेकर जितनी मारा—मारी आप में नजर आई, किसी और पार्टी में नहीं दिखी। टिकट में पैसों के लेन—देन तक का आरोप लगा। नाराज कार्यकर्ताआें ने केजरीवाल के घर और आप दफ्तर पर धरना तक दिया। पार्टी के अंदर हालात ठीक नहीं। आरोप लग रहे हैं कि गांधीवादी पैटर्न पर गठित पार्टी को केजरीवल, योगेंद्र यादव, मनीष सिदौसिया और संजय सिंह ने हाईजैक कर लिया है। पार्टी के भीतर केजरीवाल की कार्यशैली और फैसलों पर सवाल उठने लगे हैं। केजरीवाल और पार्टी के अन्य नेताआें को देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी ही पार्टी के लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ रहा है। पिछले दिनों गुडग़ांव में जब केजरीवाल को काले झंडे दिखाए जाने पर मीडिया ने सवाल किया तो उल्टे केजरीवाल ने पूछा आप ही बताएं क्यों दिखाए गए काले झंडे। मीडिया ने बताया कि पार्टी के एक विधायक को लोकसभा टिकट न मिलने पर वादाखिलाफी के विरोध हो रहा है तो केजरीवाल का जवाब था—वादा तोड़ दिया तो क्या हुआ। केजरीवाल का कहना है कि एेसा करके उन्होंने कोई गुनाह नहीं किया है।

तहरीर चौक चाहते हैं केजरीवाल
अरविंद केजरीवाल पर आरोप लगते रहे हैं कि उनका पूरा पॉलिटिकल गैंग फोर्ड फाउंडेशन और सीआईए की फंडिंग पर चल रहा है। वह दिल्ली में अपने धरने को तहरीर चौक जैसी शक्ल देकर अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाना चाहते थे। लोग सवाल पूछ रहे हैं कि अरब बसंत (अरब देशों में जब ऐसे जनउद्धार के आंदोलन हुए तब लोगों को लगा कि कुछ बड़ा होगा, पर हुआ नहीं) ने जो टीस अरब देशों की दी, अव्यवस्था, अराजकता और हिंसा दी, केजरीवाल एेसे ही हालात पैदा करना चाहते थे ? आप का भी दामन दागदार
जिस पार्टी का जन्म एेसे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की कोख से हुआ जिसका नेतृत्व अन्ना हजारे कर रहे थे, उस पार्टी पर भी भ्रष्टाचार के छीटें पडऩे लगे हैं। आप की अवध प्रांत की संयोजिका अरु णा सिंह और हरदोई के कोषाध्यक्ष को टिकट दिलाने के बदले पैसे लेने के प्रयास के आरोप में पार्टी से निकाल दिया गया। अब सवाल उठता है कि क्या उसमें ऊपर के संरक्षण के बिना पैसे लेकर टिकट दिलाने का काम हो सकात है। अरु णा सिंह को किसका संरक्षण प्राप्त था? यानी इस मायने में भी आप वैसी ही है जैसी अन्य पाॢटयां। भ्रष्टाचार की शिकायत सही पाए जाने पर किसी छोटे पदाधिकारी को बलि का बकरा बना कर ऊपर के लोगों को बचा लिया गया। सवाल यह भी है कि यदि अरु णा सिंह पर लगा आरोप सही पाया गया तो क्या उनके द्वारा लिए गए निर्णयों की समीक्षा नहीं होनी चाहिए और जो लोग उन्हें संरक्षण दे रहे थे क्या उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए?

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