सोमवार, 2 दिसंबर 2013

फोन टैप के ट्रैप

सत्यजीत चौधरी
     तकनीक के जिन पहियों पर सवार होकर हम विकास की मंजिलें तय कर रहे हैं, उनमें से एक अदृश्य पहिया है निगरानीतंत्र। आम बोल-चाल की भाषा में कहा जाए तो जासूसी। इस बगैर न सरकारें चलती हैं और न ही उसका सिस्टम। न बाजार चलता है और न ही कारोबार। प्यार-व्यार में भी यह दखल बना चुका है। संचार क्रांति के उन्नत शिखर पर खड़ी 21 वीं सदी की तकनीक व्यक्ति की निजता की रक्षा के लिए ताले बाद में बनाती है, उसे खोलने वाली सौ चाबियां पहले बन जाती हैं। इस निगरानीतंत्र का एक अहम हिस्सा है फोन टैपिंग। फोन टैपिंग तब से हो रही, जब से फोन अस्तित्व में आया है। पहले एक बड़े शहर में कुछ एक फोन होते थे अब एक छोटे से कस्बे में लाखों मोबाइल फोन होते हैं। काम मुश्किल है, लेकिन पुलिस, पैसे और पॉलिटिक्स हो तो कुछ भी मुश्किल नहीं है।
   दरअसल देखा जाए तो हमारा सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक ढांचा ही इस तरह का हो गया है, जहां हर तरफ अविश्वास के नाग फन काढ़े खड़े हैं। विभीषणों और मीर जाफरों को पहचानना मुश्किल होता जा रहा है। इसका सस्ता और सुगम समाधान है फोन टैपिंग। असल बात पर आया जाए तो देश भर में दस लाख से ज्यादा फोन (मोबाइल+लैंडलाइन) कनेक्शन पूरे साल सरकार की निगरानी में रहते हैं।
   
हाल में भाजपा के शीर्ष नेता अरुण जेटली के फोन टैपिंग मामले में कुछ और गिरफ्तारियों से फोन टैपिंग फिर से सुर्खियों में है। अरुण जेटली के फोन कौन किसके लिए और किस मकसद से टैप करा रहा था, इसका पता तो नहीं चल सका है, लेकिन लंबे समय से चल रही इस निगरानी में मिस्टर एक्स (निगरानी कर रहे अज्ञात व्यक्ति) ने पहले कई प्राइवेट डिटेक्टिव्स की मदद ली। जासूसों को मालूम था कि सीडीआर यानी कॉल डिटेल रिकार्ड कैसे मिलेगी, इसलिए उन्होंने उन छोटे पुलिस वालों के सामने चुग्गा फेंका, जो उस एसीपी के मातहत थे, जिसका काम वैध रूप से विभिन्न मामलों में सीडीआर हासिल करना था। 
   अब इस मामले में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने तीन पुलिसकॢमयों समेत छह लोगों को गिरफ्तार किया है। सभी आरोपी इस मामले के मास्टरमाइंड अनुराग सिंह नेटवर्क का हिस्सा थे। पुलिसकर्मी एक से दो हजार रुपए में किसी की भी सीडीआर को जासूसी कंपनी के एजेंटों को थमा देते थे। चूंकि निचले ओहदे के इन पुलिसकर्मियों के पास अपने अफसर के लॉगइन और पासवर्ड होते थे, इसलिए यह मोबाइल फोन कंपनियों को सीडीआर की लिस्टिंग करते समय सूची में जासूसों द्वारा दिए गए नंबर डालने में परेशानी नहीं होती थी। 
    इससे पहले, पुलिस ने नई दिल्ली जिले में एसीपी (ऑपरेशन) के यहां तैनात कांस्टेबल अरविंद डबास के अलावा अनुराग सिंह, नीतीश कुमार व नीरज को गिरफ्तार किया था। 
    अनुराग के कंप्यूटर की जांच में पता चला था कि करीब 52 लोगों की सीडीआर पुलिसकॢमयों की मदद से निकाली जा चुकी है। अरु ण जेटली, विजय गोयल एवं कई अन्य नेताओं के अलावा कॉरपोरेट सेक्टर, न्यूज चैनलों के संपादकों तथा अन्य प्रभावशाली लोगों की सीडीआर निकाली गई थी। अरु ण जेटली समेत 30 लोगों की सीडीआर अरविंद डबास के माध्यम से निकाली गई थी। मामले में स्पेशल सेल ने अदालत में चार्जशीट भी दाखिल कर दी थी और 22 अन्य लोगों की सीडीआर निकालने की जांच जारी रही। जांच में पता चला कि हेड कांस्टेबल हरीश, एएसआइ गोपाल और कांस्टेबल हरीश ने इस गिरोह को सीडीआर सौंपी थी। 
    इस मामले में अब ताजा स्थिति यह है कि मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अमित बंसल ने आरोपियों की जमानत याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि मामले की जांच अभी अपने प्रारंभिक चरण में है और यदि आरोपियों को इस समय जमानत पर रिहा किया जाता है, तो वे सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं। अदालत ने यह भी कहा है कि आरोपियों के खिलाफ लगाए गए आरोप बेहद गंभीर हैं। आरोपियों ने जानबूझकर और षड्यंत्र करके कई लोगों के निजता के अधिकार का हनन किया है और इससे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में उल्लेखित जीवन और स्वतंत्रता के मूलभूत अधिकार का अतिक्रमण हुआ है। 
     इससे पहले पुलिस ने कांस्टेबल और तीन निजी जासूसों के खिलाफ इसी मामले में आरोप पत्र दाखिल किए थे, लेकिन चारों आरोपियों को दिल्ली की एक अदालत ने 30 मई को जमानत दे दी थी। 
     बहरहाल, अरुण जेटली के फोन निगरानी का मामला इसलिए भी गंभीर हो जाता है, क्योंकि वह देश की एक राष्ट्रीय पार्टी भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता हैं। इस मामले में अभी और खुलासे होने बाकी हैं। अभी तक पर्दे के पीछे बैठे अनाम किरदार मिस्टर एक्स का नाम सामने आना बाकी है। मिस्टर एक्स को क्या जरूरत थी कि पता करें कि किस दिन अरुण जेटली ने किससे बात की, इसका भी खुलासा होना है। 
     भाजपा के ही एक और नेता सुशील कुमार मोदी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भाजपा नेताओ के फोन टैप कराने और स्टिंग ऑपरेशन करवाने का आरोप लगाया है। मोदी ने कहा कि सरकार की लगातार आलोचना से परेशान मुख्यमंत्री इस स्तर तक गिर गए हैं कि भाजपा नेताओ की बातचीत सुनने के लिए उनके फोन तक टैप करवा रहे हैं। अगर ऐसा नहीं है तो कुछ दिन पहले हाजीपुर में भाजपा नेताओ की अंदरूनी बातचीत की जानकारी मुख्यमंत्री तक कैसे पहुंच गई। मोदी ने आरोप लगाया कि नीतीश अपने अधिकारों का दुरुपयोग करके विरोधियों के स्टिंग ऑपरेशन करवा रहे हैं। इसी तरह, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में दायर एक याचिका में राज्य के पूर्व पुलिस अधिकारी आरबी श्रीकुमार ने आरोप लगाया था कि उन्होंने कांग्रेस नेता शंकर सिंह वाघेला का फोन टैप करने का आदेश दिया था। साल भर पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने भी आरोप लगाया था कि जब उन्होंने केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम से जुड़े एयरसेल-मैक्सिस मामले को उठाया तो सरकार ने उनके तथा उनके परिवार के फोन टैप करने के आदेश दिए थे। 
     इसी तरह, कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश में उन मंत्रियों और अधिकारियों के फोन टैप किए जाने के मामले सामने आए थे, जो अपने नाम के बजाय दूसरे के नाम से लिए गए सिम का इस्तेमाल करते हैं। बाद में जब गृह विभाग ने रिकॉर्ड की गई बातों का ब्योरा मांगा तो पुलिस मुख्यालय ने गोपनीयता का हवाला देते हुए ब्योरा देने से इनकार कर दिया था। मध्य प्रदेश पुलिस सुरक्षा और अपराधियों की गतिविधि पर नजर रखने के नाम पर गृह विभाग से हर माह औसतन दो सौ फोन टैप करने की अनुमति लेता है। 
     उधर, हिमाचल प्रदेश में पूर्व भाजपा सरकार के समय हुए फोन टैपिंग मामले में विजिलेंस इस मामले में संलिप्त तत्कालीन अधिकारियों व कर्मचारियों से पूछताछ करने जा रही है। यह पूछताछ पहली से सात दिसंबर तक पूरी की जानी है। इसके लिए विजिलेंस पूछताछ की प्रश्नावली में तैयार करने में जुट गई है। फोन टैपिंग मामले में फॉरेंसिक लैब की जांच रिपोर्ट का आकलन करने के बाद ही पूछताछ करने का निर्णय लिया गया है। अन्य कई राज्यों में फोन टैपिंग के बेजा और वाजिब इस्तेमाल जारी हैं। 

कौन—कौन निशाने पर
    देशभर में जिन लोगों के फोन टैप किए जाते हैं, उनका कोई आधिकारिक रिकॉर्ड तो नहीं मौजूद है, लेकिन मोटे तौर पर हर क्षेत्र में निगरानी जारी है। कॉरपोरेट जगत की 200 हस्तियां ,पचास से अधिक शीर्ष पत्रकार ,
सौ से अधिक पॉलिटिकल ब्रोकर ,इसके अलावा साइबर अपराधियों, वेश्यावृत्ति कराने वालों, तस्करों, माफियातंत्र, अपराधियों के फोन भी टैप किए जाते हैं।

प्यार में टैपिंग का पेच 
   
कहते हैं कि प्रेम अंधा होता है और कई बार नौबत यहां तक पहुंचती है कि उसे परखने—जांचने के लिए भी दूसरों की नजर की जरूरत पड़ती है। रिश्तों को बचाए और बनाए रखने के लिए दुनियाभर में लोग अपने साथी की जासूसी करने से भी नहीं चूकते। हाल में हुए एक सर्वे से खुलासा हुआ है कि अमेरिका में 50 फीसद से अधिक लोग अपने पार्टनर की जासूसी करते हैं। इसके लिए फोन टैपिंग से लेकर पीछा करने तक के तमाम तरीके अपनाए जाते हैं।
    कहते हैं कि मुहब्बत और जंग में सब जायज है तो लोग शक की सूरत में अपने पार्टनर के ई-मेल और टैक्स्ट मैसेज तक पहुंच जाते हैं। उनके सोशल अकाउंट तक की खबर रखते हैं। 22131 अमेरिकियों पर किए गए इस सर्वे में 45 फीसद माना है कि उन्होंने कम से कम अपने एक पार्टनर की जासूसी कराई है। 18 फीसद ने माना कि वह अपने पार्टनर की जासूसी के लिए उसके फोन कॉल पर कान लगाए रहते हैं या फिर फोन टैप कराने की हद तक भी चले जाते हैं। चार प्रतिशत ने प्राइवेट जासूस, सात फीसदी ने जीपीएस ट्रैकर और 16 फीसद ने क्रेडिट कार्ड स्टेटमेंट के जरिए अपने पार्टनर की जासूसी करने की बात कही। जासूसी कराने का दावा करने वालों में 77 फीसद महिलाएं और 27 फीसद पुरुष थे।

कॉरपोरेट जगत में भी जासूसी
   
जासूसी जीवन के हर क्षेत्र में पैठ बना चुकी है। कॉरपोरेट की दुनिया भी इससे अछूती नहीं। कमजोर कॉरपोरेट गवर्नेंस स्टैंडर्ड, धोखाधड़ी का शक और अविश्वास का माहौल कई ग्लोबल प्राइवेट इक्विटी फंड्स को पोर्टफोलियो कंपनियों की जांच करने को मजबूर कर रहा है। जानकार बताते हैं कि पोर्टफोलियो कंपनियों में अहम जानकारियों का पता लगाने के लिए कई ग्लोबल प्राइवेट इक्विटी फंड्स या तो कॉरपोरेट इनवेस्टिगेटर्स की मदद ले रहे हैं या वे ऐसा करने की तैयारी में हैं। पोस्ट इनवेस्टमेंट ड्यू डिलिजेंस नाम से जाने जानी वाली यह इनवेस्टिगेशन कंपनी के फाइनेंशियल, लीगल और कॉरपोरेट एस्पेक्ट्स पर केंद्रित होती है।
     एक ग्लोबल फंड से जुड़े सूत्र ने एक आर्थिक अखबार को सूचना दी कि कई फंड्स इस बात को जानने के लिए बेताब रहती हैं कि उनकी कुछ पोर्टफोलियो कंपनियां सधी रफ्तार से ग्रो कर रही हैं या नहीं? इसके लिए वे जासूसों की मदद भी लेती हैं।
     ऐसा नहीं है कि उनका यह प्रयास बेकार जाता है। हाल में ही पीई फंड्स जनरल अटलांटिक और इंडिया इक्विटी पार्टनर्स ने छह महीने की पड़ताल के बाद लॉजिस्टिक्स फर्म फोरसी इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रमोटर्स को धोखाधड़ी के आरोप में कंपनी लॉ बोर्ड में घसीट लिया। इन दोनों ही पीई फंड्स ने लॉजिस्टिक्स फर्म में संयुक्त रूप से 14.1 करोड़ डॉलर का निवेश किया था। दूसरी कई कंपनियां भी एेसा ही कर रही हैं। इसके लिए हर तरह के तरीके अपनाए जाते हैं। चूंकि बाजार में विशेषज्ञता के आधार पर जासूस उपलब्ध हैं तो साख और पैसा बचाने के लिए ग्लोबल प्राइवेट इक्विटी फंड्स इनकी मदद लेने में गुरेज नहीं करती हैं। शेयर बाजार के अलावा दूसरे कर्मिशियल क्षेत्रों में कंपनियां अपने प्रतिद्वंद्वियों की ताकत और भावी रणनीति का आकलन कराने के लिए जासूसी कराती हैं। इसके लिए प्रतिद्वंद्वी कंपनी के अधिकारियों या कर्मचारियों को खरीद लिया जाता है।

पांच वजहों के तहत ही फोन टैपिंग की इजाजत
     
भाजपा नेता अरुण जेटली के फोन टैप किए जाने के मामले में हाल में हुए नए खुलासे और गुजरात में एक युवती के फोन कथित रूप से टैप किए जाने के ताजा खुलासे के बाद उस टेलीग्राफ एक्ट पर बहस तेज हो गई है, जो सरकारों को किसी के फोन कॉल्स की खुफियागीरी की इजाजत देता है। ज्यादातर लोग उस अमेरिकी व्यवस्था की वकालत कर रहे हैं, जिसके तहत न्यायालय को सबूतों के आधार पर किसी का फोन टैप करने की इजाजत देने का अधिकार है। इस मामले में याचिका दायर चुके पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजिंदर सच्चर का मानना है कि नागरिका स्वतंत्रता काफी अहम है और उसे कार्यपालिका या गृह सचिव के विवेक पर नहीं छोड़ा जा सकता है। इसमें गलत इजाजत दिए जाने का खतरा रहता है और नाजायज टैपिंग हो सकती है।
     
क्या कहता है भारतीय टेलीग्राफ एक्ट : वैसे तो फोन टैपिंग को भारतीय टेलीग्राफ कानून की धारा—पांच के सामान्य प्रावधानों के तहत मंजूरी दी जाती है। भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 के तहत केंद्र सरकार या राज्य सरकार को आपातकाल या लोक-सुरक्षा के हित में फोन कॉल्स को प्रतिबंधित करने एवं उसे टैप करने तथा उसकी निगरानी का अधिकार हासिल है। नियम 419 एवं 419 ए में टेलीफोन के कॉल्स और एसएमएस की निगरानी एवं पाबंदी लगाने की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है।
    केवल सरकारी एजेंसियों को ही यह अधिकार हासिल है कि वह गृह मंत्रालय से पूर्व इजाजत लेकर किसी व्यक्ति का फोन टेप कर सकती हैं। हालांकि वित्त मंत्रालय एवं सीबीआई को यह अधिकार है कि सुरक्षा या कार्रवाई की वजह से वह गृह मंत्रालय की पूर्व इजाजत के बिना 72 घंटे तक किसी भी व्यक्ति के फोन कॉल को रिकॉर्ड कर सकती है।
गृह सचिव देता है अनुमति : फोन टैपिंग की इजाजत देने का अधिकार केंद्र और राज्य सरकारों के गृह सचिव को होता है। टैपिंग की अवधि दो महीने की होती है। अगर बहुत जरूरी हुआ तो इसे छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है।
    अवैध रूप से फोन टेप करना निजता के अधिकार का उल्लंघन है और इसके लिए तीन वर्ष तक की कैद एवं जुर्माने का प्रावधान है। 
    यह केवल सार्वजनिक आपातकाल या जनसुरक्षा के लिए ही किया जा सकता है। सन् 1997 में न्यायमूर्ति सच्चर की याचिका के जवाब में उच्चतम न्यायालय ने बातचीत टैप करने के पांच कारणों का निर्धारण किया था। राष्ट्रीय संप्रभुता और एकता, राज्य की सुरक्षा, अन्य देशों के साथ दोस्ताना संबंध की स्थिति में, सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने और अपराध पर काबू पाने के लिए। 

टैपिंग संबंधी कानून और कड़ा बनाया जाएगा
    फोन टैपिंग को लेकर हाल के खुलासों से परेशान केंद्र सरकर टेलीफोन कॉल डाटा रिकार्ड (सीडीआर) हासिल करने की प्रक्रिया और कड़ी करने का मन बना चुकी है। एएसआई और पुलिस कांस्टेबिल स्तर के पुलिसकर्मियों द्वारा सीडीआर हासिल करने के ताजा खुलासों के बाद अब सरकार ने फैसला किया है कि अब मोबाइल कंपनियों से सीडीआर प्राप्त करने का अधिकार पुलिस अधीक्षक या उससे ऊपर के अधिकारी को दिया जाए। जल्द ही विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों द्वारा सीडीआर हासिल करने की प्रक्रिया को लेकर नए दिशानिर्देश जल्द जारी किये जाएंगे।
     सीडीआर के लॉग का व्योरा रखने के बाद पुलिस अधीक्षक को अनिवार्यरूप से संबद्ध जिलाधिकारी के समक्ष हर महीने हासिल सीडीआर के बारे में सूचना देनी होगी। पुलिस अधीक्षक को किसी व्यक्ति का सीडीआर हासिल करने की वजह भी बतानी होगी और सुनिश्चित करना होगा कि डाटा गलत हाथों में न जाने पाए।
      जिलाधिकारी संबद्ध मुख्य सचिव को सूचना प्रेषित करेगा ताकि राज्यवार ब्योरा तैयार किया जा सके। गृह मंत्रालय के साथ सलाह—मशविरा कर दूरसंचार विभाग की ओर से दिशा—निर्देश जारी किए जाएंगे। सरकार भारतीय टेलीग्राफ कानून को भी संशोधित करने का विचार कर रही है ताकि कुछ और एजेंसियों को सीडीआर एक्सेस की अनुमति दी जा सके, जिससे वे संदिग्ध व्यक्तियों और संगठनों पर निगाह रख सकें। 

कुछ प्रमुख मामले
नीरा राडिया टैप मामला : राजनीतिक दलों और कॉरपोरेट घरानों के साझा हितों को साधने में कैसे कुछ लोग दलाल की भूमिका में सामने आते हैं, इसका खुलासा भी फोन टैंपिंग से संभव हो पाया। नीरा राडिया फोन टैप के नाम से विख्यात या कुख्यात इस मामले के खुलासे जानकर सुप्रीम कोर्ट भी हैरान है। मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्री तथा अनिल अंबानी के एडीएजी घराने पर सरकार की कृपादृष्टि, दलालों की कार्यशैली, टेलीकॉम सेक्टर, उड्डयन एवं अन्य क्षेत्रों में मंत्रियों व अधिकारियों को गैर-कानूनी तरीके से दी गई रिश्वत की जानकारी नीरा के फोन टैपिंग से मिली। इस जानकारी से हतप्रभ सर्वाेच्च न्यायालय ने उसी टैप को आधार बनाकर इस मामले में सीबीआई जांच का आदेश दिया हैं। जांच जारी है। नित्य नए मामले और नाम सामने आ रहे हैं। अब तक सीबीआई इस मामले में 13 से अधिक इन्क्वायरी दर्ज कर चुकी है।
बटला हाउस: यह फोन निगरानी का ही कमाल था कि 26 जुलाई, 2008 को अहमदाबाद में हुए आतंकी हमले के गुनहगारों तक गुजरात पुलिस पहुंच पाई और फिर दिल्ली में हुआ बटला हाउस कांड। गुजरात पुलिस की अपराध शाखा ने एक संदिग्ध के फोन कॉल्स खंगाले तो उसके तार दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया के एक छात्र आतिफ अमीन से जुड़ते नजर आए। उसी साल दो सितम्बर यानी दिल्ली में हुए धमाकों से ठीक ग्यारह दिन पहले दिल्ली पुलिस ने आतिफ का फोन निगरानी पर लिया। 11 सितम्बर को आतिफ ने अपने मोबाइल फोन स्चिव ऑफ कर दिया। इसके ठीक दो दिन बाद दिल्ली में कई जगह बम फटे और तीस लोग मारे गए। वारदात के एक दिन बाद जैसे ही आतिफ ने फिर फोन ऑन किया, जामिया के इलाके में तैनात एनटीआरओ वैन में लगे उपकरण ने बटला हाउस में उसके मौजूद होने की पुष्टि कर दी। इसके बाद पुलिस रेड हुई।
वीरप्पन का सफाया : कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन के खात्मे की वजह फोन ही बना। 2004 की बात है, जेल में बंद वीरप्पन के भाई मधयान ने एक सिपाही से फोन मुहैया कराने के पैसे दिए। सिपाही ने अधिकारियों को सूचित किया और फिर लिखी गई वीरप्पन के खात्मे की स्क्रिप्ट। सिपाही ने मधयान को फोन मुहैया करा दिया। मधयान ने हालांकि कभी उस फोन पर वात नहीं की, लेकिन वीरप्पन के एक साथी के साथ हुई बातचीत के आधार पर पुलिस गैंग की घेराबंदी में कामयाब रही और वीरप्पन मुठभेड़ में मारा गया।
फोन ने कराया श्रीप्रकाश का खात्मा: उत्तर प्रदेश के कुख्यात अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ला को फोन लोकेशन के आधार पर ही पुलिस खत्म कर पाई। शुक्ला ने 1998 में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के खात्मे की सुपारी ली थी।

सीबीआई की वैधता संदिग्ध
    सरकार कोई भी हो, उसपर विपक्ष की जासूसी और और जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप लगते रहते हैं। सीबीआई तो हमेशा विपक्ष के निशाने पर रही है, लेकिन शायद यह पहला मौका है, जब आईबी जैसी खुफिया एजेंसी के कुछ अधिकारियों पर गुजरात में राज्य सरकार के कथित नाजायज हितों को साधने का आरोप लगा है।
   आजाद होने को छटपटा रहे तोते यानी सीबीआई भले ही सुप्रीम कोर्ट में अपने पूर्ण स्वतंत्र अस्तित्व के लिए जद्दोजहद कर रही हो, लेकिन विपक्ष की नजर में वह एक ऐसी कठपुतली है, जिसका डोर शासक वर्ग के हाथ में रहती है।
    इस जांच एजेंसी की परेशानी यह है कि कभी अदालतें तो कभी सरकार में बैठे लोग ही इसकी वैधता पर सवाल उठा देतेहैं। हाल में गौहाटी हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में सीबीआई के गठन पर सवाल खड़े कर दिए। सीबीआई के गठन की वैधता पर चार साल पहले केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी भी सवाल उठा चुके हैं। तिवारी ने उस वक्त कहा था कि सीबीआई का गठन विकसित देशों की जांच एजेंसियों जैसे अमेरिकी सीआईए, ब्रिटेन की एमआई-फाइव, रूस की एफआईएस, जर्मनी की एफआईएस आदि की तर्ज पर नहीं हुआ है।
     विचार संस्था आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की ओर से चार साल पहले जारी एक पेपर में मनीष तिवारी ने कहा था कि इन विदेशी एजेंसियों का गठन उनकी राष्ट्रीय संसदों द्वारा प्रदान किए गए कानून के तहत हुआ है। मनीष तिवारी ने तर्क दिया था कि हमारी केंद्रीय कानूनी एजेंसियों और जासूसी सेवाओ को केन्द्र सरकार की ओर से कानूनी जामा पहनाया जाना जरूरी है। 
     आआरएफ की ओर से अगस्त, 2009 में जारी पेपर—देश के पहरेदारों को कानूनी ताकत—में मनीष तिवारी ने कहा कि कानून की नजर में सीबीआई का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। सीबीआई एक संदिग्ध वैधानिक व्यवस्था के आधार पर काम कर रही है, इसलिए इसकी मौलिक वैधानिकता पर सवाल उठ सकते हैं। इसलिए क्यों नहीं सरकार एक कानून पारित कर सीबीआई को कानूनी जामा पहनाती है? तिवारी के मुताबिक, साफ शब्दों में कहा जाए तो सीबीआई एक काल्पनिक कानून पर आधारित है, जिसकी कानूनी वैधता संदिग्ध है। सीबीआई को गिरफ्तार और पूछताछ करने का अधिकार 1946 के उस पुराने पड़ चुके कानून पर आधारित है जिसकी धारा छह के तहत हर राज्य प्रशासनिक आदेश जारी कर एक स्पेशल पुलिस एसटैबलिशमेंट स्थापित करेगा। वास्तव में इसे ही बाद में सीबीआई कहा गया, जिसे उस खास राज्य में आपराधिक मामलों की जांच का अधिकार दिया गया। इस पेपर में तिवारी ने ध्यान दिलाया है कि कई राज्यों ने तो पिछले प्रभाव से स्पेशल पुलिस एसटैबलिशमेंट को निरस्त कर दिया था।
     तिवारी ने इस पहलू पर भी सवाल उठाया था कि संविधान के तहत किसी केन्द्रीय पुलिस बल के गठन का प्रावधान है या नहीं। आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के वाइस प्रेसिडेंट समीर सरन के मुताबिक, आधुनिक जनतांत्रिक देशों में केन्द्रीय विधायिकाओं द्वारा विशेष चार्टर के जरिए ही जासूसी और जांच एजेंसियों का गठन किया जाता है, लेकिन भारत की एजेंसियां हैती जैसे तानाशाह देशों की पुलिस की तरह बिना किसी चार्टर या कानूनी सीमा के तहत काम करती हैं। अब चूंकि सीबीआई की वैधता का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और देश और कई सौ मामलों को लेकर संवैधानिक संकट बना हुआ है तो ऐसे में देश की सर्वोच्च अदालत का इंतजार

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