मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

विकीलीक्स की दुनिया में आपका स्वागत है !

        
             सच सुनने, कहने और सहेजने में आपकी रुचि है तो जूलियन असांजे की दुनिया में आपका स्वागत है। अपनी वेबसाइट 'विकीलीक्स की मदद से ऑस्ट्रेलिया के इस खोजी पत्रकार ने साबित कर दिया कि अगर नन्हीं-सी चींटी विशालकाय हाथी की सूंड में घुस जाए तो काफी मुसीबत खडी हो सकती है। 'विकीलीक्स ने यही किया है। मीडिया की हकीकी आजादी के इस प्रबल पैरोकार ने अमेरिका जैसे महाबली को हिलाकर रख दिया है। 'विकीलीक्स ने सिर्फ अंकल सैम को ही औकात दिखा दी, बल्कि विश्व के कई अन्य खिलाडिय़ों के चेहरे से नकाब नोच फेंकी। गुटों में बंटे देश अपने ही गुट के सदस्य की बखिया उधेड़ रहे थे, यह राज भी 'विकीलीक्स ने फाश किया।
             कभी नौजवान रूपक मर्डोक ने एक लाइन कही थी-"In the race between secrecy and truth, it seems inevitable that truth will always win." " इस लाइन पर असांजे ने अपने जीवन की गाड़ी दौड़ा दी। आज भले ही वह कैद में हों, लेकिन उनकी आवाज आजाद है। हाल में ऑस्ट्रेलिया में छपे उनके पत्र ने दुनियाभर के पत्रकारों को सचाई की राह पर चलने की नसीहत दी है। 'विकीलीक्स के धमाकों के बाद जिस तरह से अमेरिका ने बौखलाई हुई प्रतिक्रिया दी है, उससे मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर उसकी प्रतिबद्धता भी सामने आ गई है। बहरहाल, असांजे ने जो किया है, उसने जाने-अंजाने विश्व के गठजोड़ों को हिलाकर रख दिया है।
         'विकीलीक्स के धमाकों ने साबित कर दिया है कि करीब-करीब सभी मित्र देश एक-दूसरे को किसी न किसी तरह धोखा दे रहे थे। अब सवाल यह उठता है कि क्या ये देश एक-दूसरे को शक्ल दिखा पाएंगे। क्या द्विपक्षीय या बहुपक्षीय रिश्तों के तार जुड़े रह पाएंगे। इन खुलासों ने अमेरिका के साथ ही कुछ यूरोपीय देशों को भी नंगा कर दिया है, जो कहते कुछ हैं और दिल में कुछ होता है। इन खुलासों ने जिन देशों की कथनी और करनी को बेनाब किया है, वे हैं-पाकिस्तान, सऊदी अरब, चीन, तुर्की, जर्मनी, इटली, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया।
           भारत को लेकर अमेरका कितना गंभीर है, इसकी बानगी देखिये। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत आते हैं और सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी को हवा दे जाते है। 'विकीलीक्स खुलासा करता है कि उनकी विदेश मंत्री मोहतरमा हिलेरी क्लिंटन स्थायी सीट को लेकर भारत की दावेदारी को स्वयंभू दावेदारी करार दिया। 'विकीलीक्स के एक और खुलासे ने भारत को लेकर अमेरिका की पोल खुल गई। पिछले दिनों अफगानिस्तान मसले को लेकर तुर्की में एक अहम बैठक बुलाई गई थी। पाकिस्तान के दबाव में इस सम्मेलन से भारत को अलग रखा गया। अमेरिका के पास यह भी गुप्त सूचना है कि भारत और पाकिस्तान के बीच अगर कभी फिर युद्ध छिड़ा तो वह परमाणु टकराव की हद तक जा सकता है। अमेरिका के थिंक टैंक और रक्षा विशेषज्ञ अकसर इस तरह की आशंकाएं व्यक्त करते रहे हैं, लेकिन खुद अमेरिकी सरकार परमाणु युद्ध की बात जानती, इसे वाशिंगटन ने भारत से छिपाए रखा।
          भारत को लेकर विकीलीक्स के ज्वालामुखी न जाने कितने और राज छिपे हैं, यह तो नहीं मालूम, लेकिन एक बात साफ हो गई है कि पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्तों और इस्लामाबाद की तैयारियों को लेकर अमेरिका काफी कुछ जानता है। भारत के लिए यह अपनी रक्षा तैयारियों की समीक्षा का मौका है।
       अमेरिका और यूरोप में ठंडे मौसम में यह गर्मागर्म बहस चल रही है कि 'विकीलीक्स के खुलासे को सेंधमारी की श्रेणी में रखा जाए या यह विशुद्ध पत्रकारिता है। मेरे हिसाब से यह उत्कृष्ट और साहसी पत्रकारिता का नमूना है। आज जब पत्रकारिता सरोकारों की दुनिया से दूर जा चुकी है, 'विकीलीक्स उसे आईना दिखा रही है। 'विकीलीक्स ने दुनिया भर के अखबारों और टीवी न्यूज चैनलों को दिखा दिया है कि सिर्फ लेडी सेलिब्रिटीज की नंगी टांगें, महंगी कारों की लांचिंग, कारपोरेट जगत की उठापटक, फिल्मी सितारों की बेहयाइयां और अंतरराष्ट्रीय फलक पर एक-दूसरे को नीचा दिखाना ही पत्रकारिता नहीं है, बल्कि कूटनीति के नाम पर किस तरह देश एक-दूसरे को और जनता को छल रहे हैं, इसे भी समझना होगा। 'विकीलीक्स ने पत्रकारिता में पारदर्शिता के महत्व को सामने रखा है। यह सही है कि 'विकीलीक्स द्वारा उद्घाटित कुछ सूचनाएं किसी देश की रक्षा संबंधी गोपनीयता का हनन करती हो, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देशों द्वारा एक-दूसरे के पीठ में छुरा घोंपने का जो खेल चल रहा है, 'विकीलीक्स जैसे प्रयास उसे रोकने में कारगर भूमिका कर सकते हैं। सभी देशों में सूचना की गोपनीयता को लेकर कानून है। प्रेस भी इस दायरे में आता है। इसी हथियार के बल पर चलता है तथ्यों को तोडऩे-मरोडऩे और छिपाने का खेल। भारत में इस दिशा में एक अच्छी पहल सूचना के अधिकार के रूप में हुई है, लेकिन यहां भी कुछ बंदिशें लागू हैं।
           बहरहाल, पत्रकारिता में बदलाव के बयार की आहट साफ सुनाई दे रही है। असांजे ने अमेरिकी केबल्स को लीक करने से पहले दुनिया के चार बड़े अखबारों को सूचनाएं लीक कीं और अच्छी बात यह रही कि बिना डरे चारों ने उन केबल्स को अपना पेजों पर पर्याप्त स्थान दिया। अब संपूर्ण मीडिया जगत का फर्ज बनता है कि वह 'विकीलीक्स के अभियान के साथ कदम मिलाए।

1 टिप्पणी:

कडुवासच ने कहा…

... wikileaks is just like "breaking news" ... not only interesting but effective also ... !!!