मंगलवार, 29 नवंबर 2011

गजब : डॉलर लुटाकर रुपये की लालसा

-अमेरिकी रिटेल कंपनियों ने भारतीय बाजार में अपना रास्ता साफ करने के लिए की है लॉबिंग
सत्यजीत चौधरी
भारत में विदेशी रिटेल कंपनियों की राह आसान होने के पीछे एक बार फिर लॉबिंग का भूत सामने आता दिखाई दे रहा है। अमेरिकी सीनेट में पेश वॉलमार्ट की लॉबिंग डिस्क्लोजर रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी ने रुपए में अपनी पैठ बनाने के लिए भारत में भी जमकर लॉबिंग की है। हालांकि अमेरिका में लॉबिंग को कानूनी मान्यता प्राप्त है लेकिन भारत में इसे आज भी गैर कानूनी ही माना जाता है। दूसरी ओर, देशभर में इस रिटेल कंपनियों के निवेश को लेकर विरोध के स्वर तेज हो गए हैं। देश के कई राज्यों ने इस पर सख्त ऐतराज जताया है तो दूसरी ओर सोमवार को संसद का सत्र भी रिटेल एफडीआई की भेंट चढ़ गया।
अमेरिका की रिटेल कंपनियों ने भारत में अपने पैर जमाने के लिए जमकर लॉबिंग की है। भारतीय बाजार में अपनी पैठ जमाने के लिए इन कंपनियों ने करोड़ों रुपए फूंक दिए हैं। यूएस सीनेट में दाखिल आर्थिक बयानों में इन कंपनियों ने खुद ये बात मानी है। इसमें सबसे आगे दुनिया की सबसे बड़ी रिटेल कंपनी वॉलमार्ट है। रिटेल कंपनियों ने अपने हक में नीति बदलने के लिए अमेरिका और भारत में जमकर लॉबिंग की है। सीनेट में दाखिल वॉलमार्ट की लॉबिंग डिस्क्लोजर रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी ने वर्ष 2007 से 2009 के बीच भारत में रिटेल सेक्टर में विदेशी निवेश का वातावरण तैयार करने के लिए अमेरिका और भारत में 52 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। वॉलमार्ट ने भारत में व्यवसाय करने के लिए वर्ष 2007 में ही भारती समूह से हाथ मिलाया था। 2010 की पहली तिमाही तक वॉलमार्ट ने लॉबिंग पर अतिरिक्त छह करोड़ रुपए खर्च किए। इसके बाद के आंकड़े फि लहाल बाहर नहीं आए हैं। जाहिर है बाजार पर नजर रखने वाले जानकार वॉलमार्ट के लॉबिंग डिस्क्लोजर और सरकार के फैसले को जोड़कर देख रहे हैं। भारतीय बाजार में घुसने के लिए अकेले वॉलमार्ट ने ही लॉबिंग का सहारा नहीं लिया है। दुनिया की सबसे बड़ी कॉफी स्टोर चेन स्टारबक्स ने भी भारत में बिजनेस की इजाजत के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए। इसमें अमेरिका और भारत में खुदरा बाजार में विदेशी निवेश विषय पर सेमिनार और कांफ्रेंस आयोजित करना शामिल है। यूएस सीनेट के रिकॉर्ड के मुताबिक लॉबिंग का सहारा लेने वाली कंपनियों में कई अंतरराष्टÑीय बीमा, फइनेंशियल और दवाई कंपनियां भी शामिल हैं। 
अमेरिका में लॉबिंग को कानूनी मान्यता प्राप्त होने के चलते वहां कंपनियां अपने हित साधने के लिए बड़ी-बड़ी लॉबिंग कंपनियों से काम करवाकर वहां के नेताओं और सांसदो को प्रभावित करती हैं। इससे कंपनियों का काम आसानी से पूरी हो जाता है। इस पूरी प्रक्रिया को कानूनी मान्यता होने की वजह से इस पर बवाल की संदभावना समाप्त हो जाती है। दूसरी ओर, भारत में आज भी लॉबिंग को कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है। ऐसे में अमेरिका की रिटेल कंपनियों ने अगर भारत में भी लॉबिंग की है तो एक बार फिर कई सांसदो और प्रभावशाली नेताओं पर लॉबिंग का काला साया आना लाजिमी है।

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