रविवार, 9 मार्च 2014

पनडुब्बी, पोत निर्माण में भारत को होना होगा आत्मनिर्भर

सत्यजीत चौधरी
मौजूदा दौर में भारतीय नौसेना अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। पिछले एक साल में नौसेना की पनडुब्बियों और युद्धक पोतों में दस से ज्यादा दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। कई अफसरों और नौसैनिकों को जान गंवानी पड़ी। पनडुब्बी आईएनएस सिंधुरत्न हादसे के फौरन बाद नौसेना प्रमुख एडमिरल डीके जोशी को नैतिक रूप से जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। आईएनएस कोलकाता में दुर्घटना के ताजा मामले के बाद भाजपा ने रक्षा मंत्री एके एंटनी से त्यागपत्र की मांग रख दी। 
    इसमें कोई शक नहीं कि भारतीय नौसेना की पनडुब्बियों और युद्धक पोतों में हो रही दुर्घटनाओ को हल्के में नहीं लिया जा सकता। इनसे एक ओर हमारी रक्षा तैयारियां प्रभावित होती हैं तो दूसरी ओर प्रशिक्षित होनहार जवान भी गंवाने पड़ते हैं, इसलिए इन हादसे के असली कारणों की पड़ताल होनी ही चाहिए। बेशक एक के बाद एक हुए इन हादसों की नौसेना ने जांच करवाई भी होगी, लेकिन न तो उसकी रिपोर्ट पता चली और न ही उससे हादसों की पुनरावृत्ति रोकने में ही कोई मदद मिल पाई। नौसेना में हो रहे हादसे भारतीय नौसेना की मौजूदा स्थिति की संपूर्ण निगरानी किए जाने की जरूरत की ओर ध्यान दिलाती है। पिछले साल अगस्त में सिंधुरक्षक हादसा, उसके बाद सिंधुरत्न हादसा और अब आईएनएस कोलकाता में गैस लीक की घटना निश्चित तौर पर भारतीय पनडुब्बियों और पोतों की स्थिति को लेकर चिंता पैदा करता हैं। इस प्रकार की जब कोई भी दुर्घटना होती है, तो हर बार उसकी जांच कराई जाती है। बोर्ड ऑफ इन्क्वायरी बिठाई जाती है। इस लिहाज से भारतीय नौसेना के अंदर ट्रेनिंग प्रोसेस, रखरखाव और पनडुब्बियों के मैटिरियल स्टेट्स जैसे पहलुओ पर निगरानी की जरूरत है।

बंदरगाह में किसी पनडुब्बी के अंदर दुर्घटना होना एक बड़ी बात मानी जाती है, लेकिन एेसे हादसों के बाद यह कहना सही नहीं है कि भारतीय पनडुब्बियां कलंकित हो गईं हैं या भारतीय नौसेना का पनडुब्बियों पर भरोसा कम हो गया, क्योंकि पनडुब्बी का पानी में उतरना हमेशा उच्च स्तर के खतरे वाली घटना होती है। 
पिछले साल सिंधुरक्षक में हुए हादसे की पूरी जांच सामने नहीं आ पाई है, वह पनडुब्बी जिस इलाके में फंसी हुई है, उसे वहां से निकाल भी नहीं पाए हैं। जब तक पनडुब्बी पूरी तरह बाहर नहीं आ जाती, हम उसकी जांच कर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाएंगे। 
भारतीय नौसेना में हो रहे हादसों का सबक यही है कि भारतीय सेना में आधुनिकीकरण को अब और नहीं टाला जाना चाहिए। सिंधुरत्न हादसे के बाद नौसेना प्रमुख पद से डीके जोशी ने भले ही इस्तीफा दे दिया, लेकिन इससे भारतीय रक्षा सेनाओ  की मूल समस्या का समाधान नहीं निकलता। मुमकिन है कि नौसेना के अंदरूनी प्रशासन में कुछ खामियां हों, जिसे बार—बार दुर्घटना होने के बावजूद सुधारा नहीं हो पाया। यह बात अप्रासंगिक नहीं हो जाती कि असली समस्या पनडुब्बियों और युद्धपोतों का आधुनिकीकरण नहीं होना है। ऐसा न होने का एक कारण रक्षामंत्री एके एंटनी का खरीदारियों के मामले में अति सतर्क नजरिया भी माना जाता है। एंटनी ईमानदार राजनेता के रूप में जाने जाते हैं।
2006 में उन्हें रक्षा मंत्रालय सौंपे जाने के पीछे एक मकसद दलाली और घोटालों के अतीत वाले इस क्षेत्र की साख बहाल करना भी था। एंटनी इस संतोष के साथ रक्षा मंत्रालय से विदाई लेने की स्थिति में होंगे कि लंबे समय तक वहां रहने के बावजूद उनके दामन पर दाग नहीं लगा, लेकिन उनके कार्यकाल में सेनाओ  की अ -श की जरूरतें ठीक से पूरी हुईं, यह दावा करने की स्थिति में शायद वह नहीं होंगे। आखिर इसकी वजह क्या है कि भारतीय नौसेना के पास इस समय जो 13 पनडुब्बियां हैं उनमें से 12 दो दशक से भी पुरानी हैं। ये पनडुब्बियां विदेशी हैं और इनकी मरम्मत और अपग्रेडेशन उन्हीं कंपनियों से करानी पड़ती है, जिन्होंने इनका निर्माण किया है।  सिंधुरत्न 25 वर्ष पुरानी है, जबकि पनडुब्बियों के सामान्य कामकाज करते रहने की मियाद सिर्फ बीस साल होती है। हम इस बात को नजरंदाज नहीं कर सकते कि भारतीय सेनाओ के साजो—सामान का बड़ा हिस्सा पुराना पड़ता जा रहा है। हम आधुनिकीकरण की बात कर रहे हैं जबकि हमारी फौज के सामने तो साजो—सामान का ही अकाल है। फिर आधुनिकीकरण किसका करें? दूसरी अप्रिय सचाई यह है कि जहां चीन तेजी से अपनी सैनिक ताकत बढ़ाता गया है और पाकिस्तान भी कम से कम इस मामले में बहुत पिछड़ा नहीं है, वहीं भारत ने उनके अनुपात में अपनी शक्ति बरकरार रखी, यह कहना कठिन है। यूपीए—2 सरकार पर फैसले लेने में  कमजोर रहने के आरोप रहे हैं। यह कमजोरी रक्षा क्षेत्र में भी जाहिर हो रही है। अब अगली सरकार के सामने इस क्षेत्र में सबसे पहला काम यही होगा कि वह सेनाओ  की जरूरतों का यथार्थवादी आकलन करे और उसे पूरा करने की इच्छाशक्ति दिखाए।
सिंधुरत्न हादसे के बाद  भारतीय नौसेना को अपने पनडुब्बियों को लेकर सतर्क होना पड़ेगा। पनडुब्बियों में दुर्घटना की सूरत में नाविकों को निकालना पूरे विश्व में एक बड़ी समस्या है। पनडुब्बियां पानी के काफी नीचे रहकर काम करती हैं। गैस, विस्फोटक, तारपीडो, ज्वलनशील ईंधन और इलेक्ट्रिक केबिलों के संजाल के साथ खतरा हमेशा बना रहता। हादसे की दशा में नौसैनिकों और तकनीशियनों को तुरंत पनडुब्बी से निकालना मुश्किल होता है। सिंधुरत्न हो या सिंधुरक्षक, दोनों आग जनित हादसे के शिकार हुए। नौसेना   के लिए इस बात की जांच जरूरी है कि क्या वजह है कि पनडुब्बियां आग की शिकार हो रही है। 
हिंद महासागर में भारतीय नौसेना की अपनी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है। इसे चीन सहित दूसरे देश भी स्वीकार करते हैं, लेकिन हमें यहां से आगे देखने की जरूरत है। हम अभी तक अपने यहां पनडुब्बी बनाने में सफल नहीं हुए हैं।  आईएनएस अरिहंत हमारा यहां बनी पहली पनडुब्बी जरूर है लेकिन इस दिशा में अभी काफी प्रगति करने की जरूरत है।
भारत को इस हादसे को बड़े परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए। हमें यह देखना होगा कि हम कितना बजट खर्च कर सकते हैं और अपनी सेना को किस तरह आधुनिक बना सकते हैं। तभी जाकर ऐसे हादसों को कम किया जा सकेगा। युद्धक पोतों और पनडुब्बियों के निर्माण में आत्मनिर्भर बनकर ही हम ऐसी दुर्घटनाओ  से बच सकते हैं।

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