सोमवार, 12 मई 2014

कुर्सी से पहले पड़ोसियों को साधने की कवायद

सत्यजीत चौधरी       
     लोकसभा चुनाव के नतीजे आने में अभी काफी समय है, लेकिन चरण दर चरण मतदान के बाद जीत के विश्वास से लबरेज नरेंद्र मोदी मेराथन रैलियों के बीच घरेलू और विदेश नीतियों को समझने और समझाने में भी जुट हुए हैं। विदेश नीति को विशेष रूप से फोकस कर रहे हैं। पड़ोसियों के दिमाग में उपज रहे संशय के बादलों को छांटने के साथ ही वह होमवर्क भी कर रहे हैं, ताकि जिम्मेदारी मिलने के साथ ही बेहतर रिश्तों की तरफ कदम बढ़ाया जा सके। 
     
        भाजपा को अगर केंद्र में सरकार बनाने का मौका मिलता है तो मोदी के लिए सबसे मुश्किल काम होगा अमेरिका को साधना। ओबामा प्रशासन ने अभी तक खुलकर कोई ऐसा संकेत नहीं दिया है कि मोदी के नेतृत्व में बनने वाली सरकार के प्रति उसका क्या रवैया होगा। पाकिस्तान के साथ ठहरी बातचीत को फिर से पटरी पर लाना और विश्वास बहाली का माहौल तैयार करना मोदी के लिए दूसरी बड़ी चुनौती होगी। मोदी ने इस चुनौती से निपटने की तैयारी अभी से शुरू कर दी है। अंग्रेजी समाचारपत्र द हिंदू की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि नरेंद्र मोदी के दो सलाहकारों ने हाल में पाकिस्तान का दौरा कर वहां मुस्लिम लीग के नेताओ से बातचीत की थी। पाकिस्तान मुस्लिम लीग—नवाज ही की वहां केंद्र और पंजाब प्रांत में सत्ता है। पाकिस्तान में आधिकारिक सूत्रों के हवाले से इस मुलाकात के बारे में द हिंदू ने लिखा है कि मोदी के दोनों अज्ञात दूतों ने मुस्लिम लीग के नेताओ से क्या बातचीत की, इसका खुलासा नहीं हो सका, लेकिन भारत में मौजूदा चुनावी परिदृश्य और भविष्य को लेकर मिल रहे संकेतों के मद्देनजर ये मुलाकात काफी अहम है। दूतों को भेजकर मोदी ने यह साफ करने की कोशिश की है कि अगर वह प्रधानमंत्री बनते हैं तो भारत—पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय रिश्तों पर वह ग्रेनेड फेंकने नहीं जा रहे हैं।
            हाल में एएनआई को दिए इंटरव्यू में मोदी साफ कर चुके हैं कि उनकी सरकार बनने की स्थिति में देश की विदेश नीति में कोई आधारभूत परिवर्तन नहीं होने वाला है। उन्होंने एक तरह से अटल बिहारी वाजपेयी की विदेश नीति के पैटर्न को आगे बढ़ाने के संकल्प के साथ उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि पश्चिम के पड़ोसियों (पाकिस्तान) के साथ नीति निर्धारण में नाराजगी की कोई जगह नहीं होगी। मोदी ने कहना है कि वह अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा शुरू किए उस विचार को आगे बढ़ाएंगे जिसमें उन्होंने 1998 में घोषणा की थी कि भारत कभी भी पहले परमाणु हमला नहीं करेगा। इससे पहले परमाणु हथियारों को लेकर ऐसा ही बयान भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी दे चुके हैं।
         
ऐसी रिपोर्ट भी है कि पाकिस्तान को टटोलने के साथ ही मोदी जम्मू—कश्मीर में अलगावादियों की मौजूदा साइकी को भी समझने की कोशिश कर रहे हैं। अलगाववादी संगठन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के कट्टरपंथी धड़े के प्रमुख सैयद अली शाह गिलानी ने भी हाल में यह दावा कर सनसनी फैला दी थी कि मोदी ने उनके और जम्मू—कश्मीर में अलगाववादी नेतृत्व के पास अपने दूत भेजे थे एवं कश्मीर मुद्दे के हल को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करने की पेशकश की थी ताकि अलगाववादी संगठन उनके प्रति नरम रूख अपनाएं।
गिलानी का कहना है कि जम्मू—कश्मीर पर ‘नरम’ नीति विकसित करने को लेकर उन्हें मोदी से कोई उम्मीद नहीं है और उन्होंने उनकी पेशकश मानने से साफ इनकार कर दिया। गिलानी के अनुसार मोदी के दो दूत उनसे मिलने आए थे और दोनों ने उनसे (गिलानी) कहा कि मोदी देश के अगले प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं और कश्मीर मुद्दे पर उनसे प्रतिबद्धता हासिल करने के लिए आप उनसे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बात करें। हुर्रियत नेता का कहना है कि उन्होंने दोनों दूतों की पेशकश सिरे से खारिज कर दी। हालांकि गिलानी के खुलासे के तुरंत बाद भाजपा ने गिलानी के दावों को झूठ का पुलिंदा बता दिया। गिलानी के ऐसे दावों को ‘बदमाशी’ और निराधार बताकर खारिज करते हुए पार्टी ने एक बयान में कहा कि कश्मीर मुद्दे पर बातचीत के लिए किसी भी दूत ने न तो गिलानी से मिलने का प्रयास किया और न ही उनसे भेंट की है।
बाद में द हिंदू में फिर एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसमें दावा किया गया कि एनडीए का हिस्सा बनी लोकजन शक्ति पार्टी के नेता संजय सराफ के साथ एमएल मट्टू ने गिलानी से मुलाकात की थी। मट्टू और सराफ ने बाद में इस बात का खंडन किया कि दोनों ने मोदी के दूत के रूप में गिलानी से भेंट की थी। 

         हालांकि पाकिस्तान की तरफ से भी मोदी की संभावित सरकार को लेकर अब तक सकारात्मक संकेत ही मिल रहे हैं। ब्रिटिश समाचारपत्र द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट भरोसा किया जाए तो पाकिस्तान मोदी को भारत का अगला प्रधानमंत्री बनते हुए देखना चाहता है। द टेलीग्राफ ने पाकिस्तानी राजनयिकों के हवाले से अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि पाकिस्तान मोदी के भारत का अगला प्रधानमंत्री बनने का समर्थन करता है। यह देश चाहता है कि मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने क्योंकि पाकिस्तान का मानना है कि मोदी शांति वार्ता के लिए मजबूत नेतृत्व उपलब्ध कराएंगे। समाचारपत्र के मुताबिक पाकिस्तानी सेना भी भारत के साथ शांति वार्ता के पक्ष में है। टेलीग्राफ के दो पत्रकारों ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि पाकिस्तान ने आश्चर्यजनक ढंग से मोदी का प्रधानमंत्री के रूप में समर्थन किया है। विदेश मामलों पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के विश्वसनीय सहयोगी सरताज अजीज ने पिछले महीने टेलीग्राफ को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि यदि मोदी आम चुनावों के बाद भारत के प्रधानमंत्री निर्वाचित होते हैं तो पाकिस्तानी सरकार मोदी के साथ बातचीत करने की इच्छुक है।
       
देश में भाजपा के प्रचार अभियान को लेकर पाकिस्तान में कयास लगाए जा रहे हैं कि मोदी ही देश के अगले प्रधानमंत्री बनेंगे। यदि वह प्रधानमंत्री बन जाते है तो इस्लामाबाद की पंसद होंगे। समाचारपत्र ने कहा कि पाकिस्तानी अधिकारी अब केवल एक शक्तिशाली भारतीय नेता के साथ वार्ता करना चाहते है। पाकिस्तान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा—मोदी जीतेंगे और हम एक मजबूत सरकार के पक्ष में है जो शांति वार्ता के लिए भी जरूरी है। हम उम्मीद है कि भारत में भाजपा की मजबूत सरकार बनेगी जो पाकिस्तान के साथ वार्ता करेगी। पाकिस्तान के एक अन्य अधिकारी ने कहा—हमें समग्र वार्ता की उम्मीद है और यह सरकार स्थिति को सुधारने के लिए कदम उठाएगी। हालांकि टेलीग्राफ के पत्रकारों ने किसी पाकिस्तानी अधिकारी के नाम या पद का खुलासा नहीं किया है। पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीज ने शरीफ के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद गत मई में इस्लामाबाद में कहा था कि शरीफ भारत के साथ फिर से वार्ता के इच्छुक हैं। सरताज ने उम्मीद जताई थी कि भारत की नई सरकार फिर से वार्ता शुरू करने में सफल साबित होगी।
टेलीग्राफ की रिपोर्ट की पुष्टि भारत में पाकिस्तान के नव नियुक्त पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित करते दिखे। हाल में दिल्ली में महिला पत्रकारों के साथ बातचीत में कहा कि उनका मुल्क नई दिल्ली में एक स्थिर सरकार की अपेक्षा करता है, जिसके साथ द्विपक्षीय रिश्तों पर समग्र और सार्थक बातचीत को आगे बढ़ाया जा सके।
       बीते दिनों पाकिस्तानी उच्चायुक्त की भूमिका संभालने वाले राजनियक अब्दुल बासित ने कहा कि पाक भारत के साथ वार्ता प्रक्रिया को जल्द से जल्द शुरू करने के हक में है। उन्होंने माना कि बातचीत ही सभी लंबित मुद्दों के समाधान का कारगर तरीका है। पाक उच्चायुक्त ने मुंबई आतंकी हमले व सीमा पर हुई हिंसक घटना के बाद बातचीत रोकने के भारत के फैसले पर असहमति भी जताई। उनका कहना था कि कोई भी देश बातचीत को आगे बढ़ाकर दूसरे पर उपकार नहीं करता।
      बासित का कहना है कि पाकिस्तान सरकार भारत के साथ रिश्तों में टकराव के बिंदुओ को दरकिनार कर सहयोग व आपसी भरोसे के पायदान तलाशना चाहती है।
     चुनाव प्रचार के दौरान आए तल्ख बयानों और भाजपा नेताओ द्वारा मोदी विरोधियों को पाकिस्तान जाने की सलाह जैसी तीखी टिप्पणियों को भी बासित ने तूल देने से परहेज किया। उन्होंने कहा—मैंने यह सारे बयान देखे हैं लेकिन सबसे उत्साहजनक टिप्पणी भाजपा के प्रधानमंत्री पद उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की ओर से बीती रात आई। बासित के मुताबिक, मोदी की ओर से हाल में आए बयानों में सकारात्मकता नजर आई है। हमें उम्मीद है कि इस नजरिये से रिश्तों को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। बासित के मुताबिक, पाकिस्तान बेसब्री से भारत में नई सरकार बनने का इंतजार कर रहा है ताकि रिश्तों की गाड़ी को आगे बढ़ सके।
यहां यह बात गौरतलब है कि पाकिस्तान बयान चाहे जैसे दे रहा हो, लेकिन उसकी कूटनीति में कोई बदलाव नहीं आया है। भारत में आम चुनाव के मद्देनजर पाकिस्तान भारत को भेदभाव रहित बाजार व्यवस्था के तहत मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा देने के फैसले को टाल चुका है।

चीन भी बड़ी चुनौती

     
एक तरफ पाकिस्तान भारत में नई राजनीतिक संभावना को टटोल रहा है, वहीं वह चीन के साथ रक्षा और निर्माण क्षेत्र में पींगे बढ़ा रहा है। पाकिस्तान में हॉरमुज की खाड़ी में स्थित गवादर पोर्ट का रख—रखाव चीन को सौंपकर पाकिस्तान ने भारत की चिंता बढ़ाई है। दरअसल चीन भारत को चौतरफा घेरने के फिराक में है। मालदीव के मराओ आईलैंड का इस्तेमाल चीन 1999 से रक्षा निगरानी द्वीप के रूप में कर रहा है। इसी तरह श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट में भी चीन का बेस है। बांग्लादेश के चटगांव बदरगाह का विस्तानर करने में भी चीन मदद कर रहा है। जाहिर है 46675 (चार छह छह सात पांच) करोड़ रुपए की यह मदद यूं ही चीन नहीं कर रहा है। यह पूर्व से भारत को घेरने की रणनीति का हिस्सा है। म्यांमार का सितवे बंदरगाह का निर्माण वैसे तो भारत ने किया था, लेकिन चीन यहां से गैस और पाइप लाइन बिछा रहा। इसका इस्तेमाल सितवे गैस फील्ड से अपने लिए गैस और तेल पहुंचाने के लिए चीन कर रहा है। अगर मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो उनके लिए चीन के साथ सीमाई विवादों के साथ चीनी पैंतरेबाजियों से निपटना टेढ़ी खीर होगा।

पाकिस्तानी मीडिया और मोदी
      पाकिस्तान का प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया भारत की खबरों से कम ही सरोकार रखता है। लोकसभा चुनाव को लेकर भी कम ही हलचल है। वजह साफ है। टीवी चैनल और अखबार जानते हैं, भारत के बारे में ज्यादा रुचि दिखाने का मतलब है आतंकियों की निगाह में आना। हाल में जियो टीवी से जुड़े हामिद मीर पर हुए कातिलाना हमले के बाद पाकिस्तानी मीडिया वैसे भी सहमा हुआ है। पाकिस्तान के पढ़े-लिखे युवा, जो पश्चिम की हवा के असर में हैं, भारत के चुनाव को लेकर रुझान रखते हैं। दरअसल पाकिस्तान का यूथ पॉलिटिकल गेम को समझता है और जानता है कि पाकिस्तान और भारत के हित एक-दूसरे से जुड़े हैं और तेजी से बदल रही दुनिया में शत्रुता कर दोनों ग्लोबल वल्र्ड में जी नहीं पाएंगे। वे सह—अस्तित्व के तकाजों को समझते हैं। शायद यही वजह है कि कई युवा हैं, जो मानते हैं कि भारत में होने वाली हलचल से पाकिस्तान अलग नहीं रह सकता। ये युवा हिन्दुस्तान के बारे में मालूमात रखते हैं, लेकिन युवा ही नहीं बल्कि यहां का अवाम भी नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल जैसे नामों से परिचित है। 
उर्दू के अखबारों में भारत के चुनाव को लेकर बहुत ही कम विश्लेषण और कवरेज है। अंग्रेजी अखबार डॉन, एक्सप्रेस, ट्रिब्यूनल द न्यूज, साप्ताहिक-द फ्राइडे टाइम्स और मासिक-द हेराल्ड में जरूर भारत में हो रहे चुनाव को लेकर लेख और संपादकीय प्रकाशित हो रहे हैं मगर केबल टीवी पर इस तरह का कवरेज बिल्कुल न के बराबर है। हालांकि इस समय पाकिस्तानी मीडिया, राजनीतिक पाॢटयां और नवाज शरीफ सरकार घरेलू मुद्दों में भी उलझी हुई है। पाकिस्तान के लोग जिस व्यक्ति के बारे में सबसे ज्यादा जानना चाहते हैं, वह हैं नरेंद्र मोदी। पाकिस्तान की मीडिया में नरेंद्र मोदी का नकारात्म चित्र अधिक दिखता है। गोधरा कांड के बाद गुजरात दंगों और उनमें मोदी की कथित भूमिका पर कई अखबार विस्तार से लेख छाप चुके हैं। ज्यादातर पाकिस्तानियों को लग रहा है कि अगर मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो संबंधों में फर्क आएगा। मोदी के सख्त भाषणों ने भी थोड़ी चिंता पैदा कर दी थी लेकिन जानकार यह भी मान रहे हैं कि हो सकता है यह चुनावी माहौल का रंग हो क्योंकि ऐसा होता रहा है कि भारत में चुनाव के समय पाकिस्तान को नसीहत देने वाले भाषण शायद पसंद किए जाते हैं, पाकिस्तान में तो यह होता है।


अटल के शांति प्रयासों को लोग याद करते हैं

     मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक भाजपा को लेकर भले ही पाकिस्तानियों में थोड़ी हिचक हो, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी को वहां सम्मान की नजर से देखा जाता है। वाजपेयी ने 1990 में तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ दोनों देशों के बीच ताल्लुकात सुधारने पर खासा जोर दिया था। बतौर प्रधानमंत्री जब अटल पाकिस्तान गए थे तो वे पहले प्रधानमंत्री थे जो लाहौर में मीनार—ए—पाकिस्तान गए, जहां कभी ऑल इंडिया मुस्लिम लीग द्वारा अलग मुस्लिम राष्ट्र का प्रस्ताव सबसे पहले रखा गया था। मीनार—ए—पाकिस्तान से अटल ने कहा था ‘मीनार—ए—पाकिस्तान से मैं पाकिस्तानी अवाम को यह भरोसा दिलाना चाहता हूं कि मेरा देश हमेशा शांति और दोस्ती चाहता है।

     चुनावी सभा में भीड़ को देखकर उत्साह में बोलना और बात है, लेकिन कूटनीति की बंजर जमीन पर बातचीत के पौधे रोपना अलग है। रक्षा मंत्री एके एंटनी को लपेटे में लेने के चक्कर में मोदी कई बार सार्वजनिक मंचों से इटली और पाकिस्तान के बारे में का काफी कुछ बोल गए हैं, लेकिन राजनय के तकाजे कुछ और ही कहते हैं। एंटनी पर हमलावर मोदी ने एक चुनावी सभा में यहां तक कहा था—पाकिस्तानी सेना ने हमारे सैनिकों के सिर काटकर उनकी हत्या कर दी। हमारे रक्षा मंत्री ने संसद में कहा कि आतंकी पाकिस्तानी सेना की वर्दी में आए और उन्होंने जवानों की हत्या कर दी। एंटनी के बयान ने पाकिस्तानी सेना की मदद की और हमारे जवान इस बयान से नाखुश थे। पाकिस्तानी मीडिया ने एंटनी की बहुत तारीफ की थी। इससे पहले जम्मू में दिए भाषण के दौरान मोदी ने एंटनी को पाकिस्तानी एजेंट और लोगों का दुश्मन बताया था।

कोई टिप्पणी नहीं: