शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

बौद्ध धर्म, दलित विमर्श और मायावती का फ्यूजन "राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल"

सत्यजीत चौधरी
   राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल भले ही विपक्ष और विरोधियों को विवादों का स्थल दिखाई दे रहा हो, लेकिन उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री ने अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा कर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। उन्होंने पूरे देश के दलित समुदाय को एक ऐसा केंद्र मुहैया कराया, जहां पहुंचकर उन्हें अतीत के उत्पीड़न, पिछड़ेपन और समाज में दबाकर रखे जाने की पीड़ा का साक्षात्कार होगा। साथ ही इस बात का गर्व भी होगा कि अब वे सामाजिक संरचना का अहम हिस्सा हैं।
दलित प्रेरण स्थल पर कई जगह दलितों का इतिहास दर्ज है। एक स्थान पर पत्थर पर खुदी एक इबारत लोगों का ध्यान बरबस अपनी ओर खींचती है। लिखा है—एक सहस्राब्दी से इस देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा, जिसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के नागरिक शामिल हैं, अन्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था के शिकार रहे। वर्ण और जाति पर आधारित इस सिस्टम में जीवन के हर पहलू में वे दास के रूप में जीने को अभिशप्त रहे। सदियों तक संतों, गुरुओं और महापुरुषों ने अन्यायपूर्ण और भेदभाव वाले समाज को बदलकर समतामूलक समाज की स्थापना की दिशा में बलिदान दिए। 
शिलालेख पर आगे दर्ज है कि सामाजिक परिवर्तन की दिशा में इस दिग्गजों के अद्वितीय संघर्ष को नमन करने के लिए इस स्मारक का निर्माण किया गया है। मुख्यमंत्री मायावती के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी ने उन दिग्गज आत्माओं के अभूतपूर्व और महत्वपूर्ण संघर्ष की गाथा को नमन करने का निर्णय लिया।
इस पार्क में डॉ. भीमराव अंबेडर और कांशीराम की प्रतिमाओं के साथ ही खुद मायावती की प्रतिमा है। भारत में किसी नेता द्वारा अपने जीवनकाल में अपने हाथों से अपनी प्रतिमा स्थापित करने का यह पहला मामला है। मायावती को अपनी प्रतिमाएं बनवाने का बड़ा शौक है। विपक्ष इसे सनक करार दे रहा है। विरोधी सद्दाम हुसैन से तुलना कर रहे हैं, लेकिन विरोधियों के तीर—ओ—नश्तर से बेफिक्र मायावती बड़े धैर्य के साथ पत्ते चले जा रही हैं। 
उन्हें इस बात की कतई फिक्र नहीं है कि पार्क में शिलाखंडों पर उकेरी गई उनकी जीवनगाथा पर लोग क्या कहेंगे। पूरे पार्क में बौद्ध धर्म, दलित विमर्श और मायावती की निजी उपलब्धियों को मिलाकर एक फ्यूजन पेश किया गया है। जानकारों का कहना है कि इस तरह मायावती ने अपने दलित वोट बैंक को सीलबंद करने की कोशिश की। इसके बाद वह आने वाले दिनों में दूसरी जातियों और वर्गों से उन्मुख होने वाली हैं। यानी विकास कार्यों की लंबी घोषणाएं करने वाली हैं। 

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