रविवार, 23 अक्तूबर 2011

कौन करे खाकी की सुरक्षा ?

 अपनी बात 
   पुलिस के बारे में लिखने के लिए सोचते ही दिमाग में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस रहे एएन मुल्ला की एक टिप्पणी कौंध जाती है—यूपी पुलिस इज बिगेस्ट आर्गेनाइज्ड गैंग आफ क्रिमिनल्स। न्यायमूर्ति मुल्ला की इस टिप्पणी का सच आज भी अपनी पूरी शिद्दत के साथ कायम है। पुलिस का जिक्र सुनते ही आम आदमी के कई बार रोंगटे खड़े हो जाते हैं। पुलिस की एक खूंखार छवि लोगों के दिमाग में घर कर चुकी है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि पुलिस वाले बिना गालियों के बात नहीं करते। सच उगलवाने के लिए हैवान बन जाते हैं। फर्जी एनकाउंटर में बेकुसूरों को मौत के घाट उतार देने में उनको मजा आता है। मासूम बच्चों के बाल पकड़कर धुनने में वह थ्रिल महसूस करते हैं। रिश्वत उनका धर्म-ईमान है। अपराधियों के साथ उनका याराना होता है और शरीफों को जूते की नोक पर रखती है। नेताओं के इशारे पर नाचती है और उनके लिए उल्टे-सीधे काम करती है।
   यह हुआ तस्वीर का एक पहलू। पुलिस ऐसी क्यों है, इस बारे में क्या कभी गंभीरता से सोचा गया है। वे कौन—सी ऐसी वजहें हैं, जो उसे चिड़चिड़ा, जिद्दी, क्रूर, लालची और गैर-जिम्मेदार बनाती हैं। हमने यह जानने की कोशिश की। हमने उत्तर प्रदेश, राष्टÑीय राजधानी दिल्ली क्षेत्र, हरियाणा और पंजाब की पुलिस के चरित्र के पीछे छिपे कारणों की जांच की। पड़ताल में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। पता चला कि अपनी पुलिस सबसे बदतरीन हालात में काम कर रही है। सदैव ‘आप की सेवा में तत्पर’ और ‘दोस्त पुलिस’ के जवान सबसे कम नींद लेते हैं। चार घंटे से भी कम। उन्हें सबसे कम छुट्टियां मिलती हैं। मानसिक दबाव में काम करना पड़ता है। अधिकारियों का बरताव उपेक्षा भरा होता है। परिवार के साथ सबसे कम वक्त गुजारते हैं।
    इस विषय पर काम करते हुए हमने बहुत सारे पुलिस वालों को टटोला। कोई खुलकर बोलने को तैयार नहीं हुआ। कुछ ने मुंह खोला भी तो इस शर्त के साथ कि नाम नहीं प्रकाशित होना चाहिए। वेस्टर्न यूपी के एक थाने पर तैनात एसओ यानी स्टेशन आॅफिसर से बात हुई। पहले तो हिचकिचाए, पर एक बार जो शुरू हुए तो दिल का तमाम गुबार निकाल दिया। कहने लगे, पुलिस अंग्रेजों के जमाने के मैनुअल के आधार पर काम कर रही है, जबकि इक्कसवीं सदी में हालात काफी बदल चुके हैं। आजादी के बाद से आबादी चौगुनी से भी ज्यादा बढ़ चुकी है, लेकिन थानों पर फोर्स सौ साल पहले के नियम के आधार पर तैनात की जाती है, जिसके चलते काम का भारी दबाव रहता है। उनका कहना था कि पुलिस की पूरा व्यवस्था सब इंस्पेक्टर चलाता है। उसका साथ देते हैं कांस्टेबल और हेड कांस्टेबल। यही वर्ग महकमे में सबसे ज्यादा उपेक्षित है। पच्चीस साल पहले जिन पुलिसकर्मियों की एसआई के पद पर नियुक्ति हुई थी,उनमें से ज्यादातर आज भी एसआई हैं। दूसरे राज्यों में दस साल में पदोन्नति हो जाती है। उत्तर प्रदेश में हम प्रमोशन की बाट जोहते हुए रिटायरमेंट की तरफ बढ़ते रहते हैं। कहने लगे, काम की उमंग ही खत्म हो जाती है। सेलरी स्ट्रक्चर के बारे में कभी सोचा ही नहीं जाता। हमें भी लगता है, जितना लूट-खसोट लो अच्छा है। ऊपर बैठे अधिकार हमें खुद भ्रष्ट बना रहे हैं।
    एसओ का कहना था कि काम करने की उमंग ही खत्म हो जाती है। उसी हिसाब से मानसिकता बन जाती है। वह बताते हैं पुलिस का सैलरी स्ट्रकचर कम है। ऊपर बैठे लोग खुद हमें भ्रष्ट बनाने पर तुले हुए हैं।
काफी कुरेदने पर एक सिपाही मुंह खोलते को तैयार हुआ। उससे हमने असलहों के बारे में बात की। बताने लगा पूरे देश में सबसे खतरनाक अपराधी उत्तर प्रदेश में हैं। अब तो वे पुलिस वालों को मौत के घाट उतारने में गुरेज नहीं कर रहे हैं। ऐसे खूंखार अपराधियों से निपटने के लिए हमारे पास आउटडेटेट हथियार हैं। उसने बताया कि कई मौकों पर बोल्ट करते समय रायफलें जवाब दे जाती हैं।
    सिपाही की फिंगर टिप्स पर है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किस बड़े गैंग के पास कौन—सा अत्याधुनिक हथियार है। एक और बुजुर्ग दारोगाजी से बात हुई। उनका दर्द है कि पुलिस वाले लिखा—पढ़ी के पुराने तरीकों में उलझे हुए हैं। कुछ एक जिलों में ही कंप्यूटर पर काम हो रहा है। सहारनपुर में तैनात एक एसओ कहने लगे कि हमसे अपेक्षा की जाती है कि तस्करों पर नजर रखें, किडनैपरों को फौरन ढूंढ निकालें, आर्थिक अपराध करने वालों से निपटें और आतंकवादियों पर भारी पड़ें, लेकिन हमें वर्तमान हालात के हिसाब से कभी अपडेट करने की जरूरत नहीं महसूस की जाती। इस दिशा में जो प्रोग्राम चल भी रहे हैं, उनकी चाल बेहद सुस्त है।
    कई अन्य पुलिस वाले तकनीकी रूप से अपनी बात नहीं रख पाए। पर दर्द उनके भी कम नहीं मिले। उनका कहना था नौकरी करने वाले व्यक्ति से परिवार के सदस्य फाइनेंशियल सपोर्ट के साथ समय भी चाहते हैं। खासकर के पत्नी और बच्चों को समय की अधिक दरकार होती है। बैंक में काम करने वाला शाम को पत्नी—बच्चों के बीच होता है और हम अपराधियों के बीच। यूपी में पुलिस वालों के काम के घंटों पर कभी सोचा ही नहीं गया। छुट्टी में भी उसे कभी भी ड्यूटी पर तलब कर लिया जाता है। ऐसे में उसे आराम नहीं मिल पाता है। परिवार वाले भी समय न देने की शिकायत करते हैं। हम शारीरिक और मानसिक रूप से बेहद थक चुकने के बावजूद काम करते हैं। पुलिस वालों के नब्बे फीसद काम में सजगता चाहिए, लेकिन वह तो हमसे कोसों दूर होती है। ज्यादा काम, कम पैसा, अफसरों का बुरा बरताव हमें ऐसी मन:स्थिति में डाल देता है,जिसकी परिणति कई बार आत्महत्या में होती है। हमारा थका मन और शरीर हमें लोगों से अभद्र व्यवहार कराता है।
    पुलिस महकमे के कुछ लोगों से वेतनमान को लेकर चर्चा हुई। उनका कहना था कि प्राइमरी स्कूल का एक टीचर आज हमारे से ज्यादा वेतन ले जाता है। सुविधाएं अलग हैं। कभी एक पुलिस कॉन्सटेबल की सेलरी एक प्राइमरी टीचर से अधिक हुआ करती थी। आज हालत यह है कि प्राइमरी टीचर की बेसिक सेलरी छठे वेतनमान के अनुसार 4,500 रुपए है, जबकि पुलिसकर्मी की 3,050 रूपए।
    कई पुलिस वाले वेतनमान को लेकर नाराज दिखे। उनका कहना है कि हमारी ड्यूटी का समय निर्धारित नहीं है। चौबीस घंटे के मुलाजिम हैं। किसी तरह की कई छुट्टी नहीं है। पूरे हफ्ते आपक अपनी ड्यूटी निभानी है। दूसरी तरफ, एक प्राइमरी टीचर का हिसाब—किताब पर नजर डाली जाए तो उसे सुविधाएं ही सुविधाएं हैं। नोएडा में तैनात एक अन्य पुलिसकर्मी का दर्द था कि दिल्ली पुलिस का एक कॉन्सटेबल को अट्ठारह हजार वेतन मिलता है, जबकि उत्तर प्रदेश में सिपाही दस हजार पाता है। अन्य भत्तों के रूप में भी दिल्ली पुलिस के जवान को बहुत कुछ मिल जाता है लेकिन यूपी पुलिस का जवान बस इतने पर ही सब्र करके बैठ जाता है। दिल्ली पुलिस के जवान क उसके वेतन का 30 फीसदी एचआरए मिलता है और इधर सिर्फ अगर आप ए ग्रेड जिले में तैनात किए गए है तो आपको फिक्सड एक हजार ही दिया जाता है। पुलिसकर्मियं के मुताबिक हर जगह असमानता का आभाव हमारे साथ किया जाता है।
    पुलिसकर्मियों के मुताबिक कभी यूपी सरकार में कल्याण सिंह के मुख्यमंत्रित्वकाल में नकदीकरण जैसी योजना शुरू की गई थी। जिसमें पूरा साल बीत जाने के बाद मार्च-अप्रैल के महीने में वेतन का डबल करके पुलिसकर्मी को दिया जाता था। लेकिन आज वह भी नदारद ही है। पुलिसकर्मियों के अनुसार आज किसी का भी ध्यान इस तरह की योजना की तरफ नहीं है। बस काम और काम की नीति राज्य सरकार ने हम लोगों के साथ अपना रखी है।

प्रदेश पुलिस एक नजर 
    केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन काम कर रहे ब्यूरो आफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलेपमेंट ने पुलिस अधुनिकीकरण का जो खाका खींच है और इस दिशा में जो कार्यक्रम बनाए हैं, उसे अगर गंभीरता से लागू किया जाए तो वाकई पुलिस वालों का भला हो जाए। केवल उत्तर प्रदेश पुलिस की बात की जाए तो आधुनिकीकरण के नाम पर यहां कुछ भी नहीं हुआ है। 
कांस्टेबलरी
शिक्षा—मान्यता प्राप्त बोर्ड से (10+2)
सेलरी—बेसिक 3, 050 (कोई ओवरटाइम नहीं
ट्रेनिंग-नियुक्ति के समय जो प्रशिक्षण दिया जाता है, वही पूरे जीवन चलता है। कोई रिफ्रेशर कोर्स नहीं। हाईटेक बदमाशों से जूझने का कोई प्रशिक्षण नहीं
भोजन/स्वास्थ्य
उत्तर प्रदेश में पुलिस वालों के लिए कोई डाइट चार्ट नहीं। जो मिला, जब मिला खा लिया। ज्यादातर पुलिस वाले मोटे-थुलथुल है। अधिक काम, कम नींद और तनाव उन्हें अंदर से खोखला बना देता है। हाल में पदोन्नति के लिए कई जिलों में दौड़ लगाते कई पुलिस वाले बेहोश हुए। अमेरिका और यूरोप के देशों में पुलिस फिटनेस पर खास ध्यान दिया जाता है।
वर्किंगआवर्स
उत्तर प्रदेश में पुलिस वालों के लिए काम के घंटे तय नहीं है। औसतन चौदह से अट्ठारह घंटे काम। रात में कभी  भी जगाकर बदमाशों से जूझने के लिए भेज दिया जाता है।
हथियार
इस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस महकमा काफी पिछड़ा हुआ है। पुराने जमाने की मस्कट्स और रायफलों के सहारे पुलिस वाले अपराधियो से जूझते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के जमाने की पिस्टल उन्हें थमा दिए जाते हैं।
स्थानांतरण नीति में बदलाव 
   पुलिस फोर्स में भर्ती हुए जवानों के मुताबिक स्थानांतरण नीति में बलाव अतिआवयक है। उनके मुताबिक इस नीति में बलाव इसलिए भी होना चाहिए कि जब हम कई सौ किमी घर से दूर रहते हैं तो परिवार की चिंता रहती है। छुट्टी नहीं मिल पाती। जैसे—तैसे तो घर जाते हैं। हर वक्त दिमाग में तनाव बना रहता है। पुलिस जवानों के मुताबिक ट्रांसफर कुछ इस तरह किया जाए कि जवान क अपने घर से 30—40 किमी की दूरी पर तैनाती मिल जाती है। इससे वह आसानी से घर आ—जा सकता है। अपने परिवार का ख्याल रख सकता है। चाहे ड्यूटी 24 घंटे में भले ही क्यों ना 16 घंटे की है। इसके इतर अगर हम घर से 300 किमी. की दूरी पर तैनात हैं और ड्यूटी आठ घंटे की तो उसका कोई फायदा नहीं है। हम इतनी दूर से रोजाना आ—जा तो सकते नहीं। तो हमको अपना खाली वक्त कैसे भी करके काटना होता है। इससे तनाव बढ़ता है। 
आवासीय सुविधा
पुलिसकर्मियों के मुताबिक आवासीय सुविधा का भी काफी बुरा हाल है। जो पुलिस जवान अपने परिवार के साथ तैनाती पर जाता है उसको आसानी से आवास मुहैया नहीं हो पाता। इसकी पीछे जो वजह उन्होंने बताई, उसे सुनकर काफी हैरानी हुई। पांच हजार पुलिसवालों पर बामुकिल आठ सौ घर का अनुपात है। उनके मुताबिक इस वेतनमान में किराए का घर लें या फिर खाना और बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दें। जिन पुलिस वालों का वेतन दस हजार है और वह परिवार के साथ गाजियाबा या फिर ए ग्रेड जैसे जिलों में तैनात कर दिया जाए तो उसका क्या होगा। पुलिसकर्मियों ने राज्य सरकार को इस समस्या से कई बार अवगत कराया। लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात।
चिकित्सीय सुविधा
   चिकित्स सुविधा के नाम पर भी राज्य सरकार पुलिस फोर्स की मदद के लिए पीछे ही रही है। यूपी पुलिस के एक जवान के मुताबिक, दिल्ली पुलिस के एक सिपाही को चिकित्सीय सुविधा का इतना लाभ दिया जाता है जिसके बारे में शायद हम कभी सोच भी ना पाएं। दिल्ली पुलिस में भर्ती हुए सिपाही को खुद या फिर उसके परिवार के सदस्य को इमरजेंसी चिकित्सीय सुविधा दी जाती है। जिसके तहत उन्हें एक क्रेडिट लेटर मुहैया करवाया जाता है, जो कि दिल्ली पुलिस की हेल्थ वेलफेयर एसोसिएान के पास पहुंचता है। उसका सारा खर्चा वही से मुहैया करा दिया जाता है। लेकिन यूपी पुलिस में इस मामले में भी पिछड़ी हुई है।
भ्रस्टाचार के कारण
   हाल ही में भर्ती हुए एक जवान के अनुसार वेतन इतना कम है, अन्य •ात्तों का कुछ पता नहीं। जब खर्चा रुपया है और आमदनी अठन्नी तो भ्रस्टाचार फैलेगा ही। उसके मुताबिक रोजाना आप सुनते होंगे कि पुलिसवाला रिश्वत लेते पकड़ा गया। लेकिन उनके पीछे छुपी वजहों को जानने के किसी ने कोशिश नहीं की। एक सिपाही ट्रक रोककर या बाइक सवार को चालान का भय दिखाकर बीस—तीस रुपए झटक लेता है तो हंगामा मच जाता है। पकड़े जाने पर उसे घर बैठा दिया जाता है। क्यों उसने घूस ली, इसके जड़ तक नहीं पहुंचा जाता। एक सिपाही के मुताबिक उसका वेतन दस हजार है। उसे घर भी भेजना होता है। खुद का भी खर्च चलाना है। ऐसे में वह क्या करेगा। अगर सही वेतनमान, ठीक ढंग से सुविधाएं मिले तो गांरटी के साथ 50 फीसदी भ्रस्टाचार में अपने आप कमी आ जाएगी। 
नहीं मिलती वर्दी
   यूपी पुलिस के सिपाहियं ने बताया कि हमारी यूनीफार्म के लिए राज्य सरकार इतना सारा पैसा मुहैया करवाती है। लेकिन हम खुद अपनी वर्दी सिलवाकर पहनते हैं। हर कोई इन आपाधापियों से खिन्न है। 
जंग लगे हथियार!
   हथियारों की स्थिति के बारे में मुंह से जैसे ही सवाल निकला तपाक से सभी सिपाही एक साथ बोल बैठे-बहुत खराब स्थिति है जी। हथियार के नाम पर क्या है हमारे पास थ्री नॉट थ्री। वोलने लगे बिल्कुल लाठी की तरह है हमारे लिए। जब चलाना चाहते हैं चलती नहीं और जब जरूरत नहीं होती चल जाती है। कई बार अपराधियों के साथ मुठभेड़ हो जाती है, उनके पास सारे आॅटोमेटिक हथियार हैं। हमारे पास हमारी थ्री नॉट थ्री। कई बार पुलिस वाले हथियारों की वजह से कदम पीछे खींच लेते हैं। पुलिस खटारा वाहनों और जंग लगे हथियारों के बल पर हाईटेक अपराधियों को पकड़ने का काम कर रही है। अपराधी इतने हाईटेक हो चुके हैं कि सेल्फ लोडेड हथियारों और लग्जरी वाहनों से वारदात को अंजाम दे रहे हैं। 

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