रविवार, 29 जनवरी 2012

मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखता एक सियासी कुनबा

सत्यजीत चौधरी
      करीब—करीब अपनी हर चुनावी सभा में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी एक बात बड़ी प्रमुखता से कहते हैं-सरकार बने या न बने, मैं उत्तर प्रदेश से जाना वाला नहीं। यह राहुल की मूक स्वीकारोक्ति है कि पिछले तीन दशक से भी ज्यादा समय से उत्तर प्रदेश में सत्ता वापसी का ख्वाब पाले बैठे कांग्रेसी इस विधानसभा चुनाव में भी कुछ ज्यादा नहीं करें। लेकिन प्रदेश के चुनावी समर में कांग्रेस के साथ जूझ रहे रालोद के नेता मुंगेरी लाल के हसीन सपनों से बाहर निकलने को तैयार नहीं हैं। वे पार्टी महासचिव और मांट से नए—नए प्रत्याशी बने जयंत चौधरी को यूपी के भावी डिप्टी सीएम के रूप में देख रहे हैं। शायद जयंत को यह भाषा अच्छी लग रही है, यही वजह है कि वह अब हर चुनावी सभा में दोहराने लगे हैं कि कांग्रेस—रालोद की साझा सरकार बनेगी और मुख्यमंत्री का चुनाव दोनों दलों के निर्वाचित विधायक करेंगे। इसके उलट हालात यह हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सीट शेयरिंग और प्रत्याशियों के चयन को लेकर रालोद नेतृत्व के खिलाफ कम से कम दर्जन भर स्थानों पर मोर्चा खुला हुआ है।
वैसे देखा जाए तो कांग्रेस का कोई भी नेता इस खाम—ख्याली में नहीं जी रहा है कि सरकार कांग्रेस की बनेगी, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हिस्से में आई 47 सीटों के बलबूते रालोद नेता यदा—कदा इस बात का इजहार करने से नहीं चूकते कि उनकी पार्टी कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने में कामयाब हो जाएगी। 
सपने देखना, पालना और उसमें जीना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन इस तरह भी नहीं कि लोगों के होंठों पर तंजिया मुस्कराहट तैर जाए। रालोद नेतृत्व लगातार ऐसे फैसले कर रहा, जिससे विरोधियों को मौका मिल रहा है।
रालोद के 46 प्रत्याशियों में से तीन पूर्वी उत्तर प्रदेश में है। पश्चिमी यूपी में प्रत्याशियों के चयन का मामला गर्म होता जा रहा है। यह पहला मौका है कि चौधरी अजित सिंह पर जान छिड़कने वाली जाट बिरादरी का एक बड़ा हिस्सा अब उनके खिलाफ खड़ा है। सिवालखास विधानसभा सीट पर यशवीर सिंह को रालोद प्रत्याशी बनाए जाने के मामले में छोटे चौधरी को तीखे विरोध का सामना करना पड़ रहा है। यह मुद्दा अब पंचायत तक जा पहुंचा है। कल यानी 26 जनवरी को पंचायत द्वारा नामित 12 लोगों की एक कमेटी अजित सिंह से मिलकर प्रत्याशी बदलने की मांग करेगी। तब भी प्रत्याशी नहीं बदला गया तो तीस तारीख को भदोड़ा में फिर पंचायत होगी और आगे की रणनीति तैयार की जाएगी।
थाना भवन सीट से आरिफ अहमद को रालोद का टिकट दिए जाने पर भी विरोध शुरू हो गया है। इस चुनावी हलके में जाटों के पचास हजार वोट हैं। बसपा ने यहां से रालोद के पूर्व विधायक राव वारिस को उम्मीदवार बनाया है। जाट यहां से अपना प्रत्याशी उतारकर अजित सिंह की परेशानी बढ़ाने के मंसूबे बांध रहे हैं। मामला यही खत्म नहीं होता दिख रहा है। कांग्रेस के साथ गठबंधन के चक्कर में कम से कम छह सीटों पर रालोद प्रत्याशियों के टिकट कट गए हैं। शादाबाद, खैर, इगलास, बिजनौर और सरधना जैसी महत्व की सीटों पर रालोद को कार्यकर्ताओं को जवाब देते नहीं बन रहा है। याकूब कुरैशी को सरधना सीट से और बिजनौर से शाहनवाज राणा को टिकट देकर पार्टी ने अलग परेशानी मोल ले ली है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि रालोद के वफादारों को बिसराकर बाहरियों और विशेष रूप से खराब छवि वाले लोगों को टिकट क्यों दिया गया।
छोटे चौधरी के लिए परेशानी का अगला पड़ाव हैं राष्टÑीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक बीएम सिंह। वह अजित सिंह के फैसलों से तो नाराज हैं ही, कांग्रेस से भी खफा हैं। यही वजह है कि उन्होंने बरखेड़ा सीट से मिला कांग्रेस का टिकट ठुकरा दिया। अब वह रालोद-कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करने जा रहे हैं।
यही नहीं, अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष यशपाल मलिक भी छोटे चौधरी से पुराना हिसाब चुकाने को बेताब हैं। मुलायम खेमे में पैठ बना चुके यशपाल मलिक ने भी रालोद-कांग्रेस प्रत्याशियों के खिलाफ प्रत्यंचा खींच ली है। यशपाल मलिक का कहना है कि पश्चिम यूपी की 12 सीटों पर जाट मतदाताओं का प्रभाव है। इस क्षेत्र में समिति आठ से अट्ठाइस फरवरी तक कांग्रेस—रालोद के प्रत्याशियों के खिलाफ नेगेटिव प्रचार करेगी। उनका आरोप है कि छोटे चौधरी और कांग्रेस ने जाटों के साथ सिर्फ पॉलीटिक्स की। उनकी समस्या को गंभीरता से लिया ही नहीं। भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत की आंखों में कहीं खटक रहे हैं। फिलहाल मायावती के प्रति नरम रुख रखने वाले टिकैत कहते हैं कि बसपा सरकार ने किसानों के लिए कुछ किया हो न हो, लेकिन रालोद और कांग्रेस ने तो कतई कुछ नहीं किया।

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