सत्यजीत चौधरी
चौधरी अजित सिंह से हाथ मिलाना और काजी रशीद मसूद को पार्टी में लाना कांग्रेस की एक ही योजना का हिस्सा है। मतलब यह कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट और मुस्लिम वोट बैंक को साधना, लेकिन जिस तरह से मसूद लोकल मसलों में उलझते जा रहे हैं, उससे कांग्रेस में निराशा है। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस चाह रही है कि मसूद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 75 विधानसभा क्षेत्रों में जाएं और मुसलमानों को बताएं कि कांग्रेस ही उनकी सच्ची हितैषी है। सच्चर समिति की सिफारिसो के अनुरूप केंद्र सरकार ने जो योजनाएं बनाई हैं, उनपर रोशनी डालें। कांग्रेस की योजना रशीद मसूद और सोमवार को रालोद में शामिल याकूब कुरैशी के संयुक्त दौरे शुरू कराने की है, ताकि दोनों मिलकर सहारनपुर और मेरठ में अपने साथ मुस्लिम मतों के एक बड़े हिस्से को जोड़ सकें लेकिन गंगोह सीट को लेकर मसूद का अड़ियल रवैया गुर्जरों के नेता यशपाल सिंह से उनकी टकराहट अब कांग्रेस को अखरने लगी है।
उत्तर प्रदेश में फिर से जड़े जमाने की जी—तोड़ कोशिश में लगी कांग्रेस को काजी रशीद मसूद और गुर्जर नेता यशपाल सिंह के बीच चल रही खिंच—खिंच खल रही है। दोनों ही नेताओं ने भले ही कई बार कांग्रेस का दामन छोड़कर दूसरी पार्टियों का हाथ पकड़ा हो, लेकिन अब एक संजीदा मोड़ पर दोनो आमने—सामने आ गए हैं। एक ओर मसूद की ओर से सहारनपुर, नकुड़, गंगोह सहित सात सीटों पर अपने द्वारा घोषित उम्मीदवारों को ही कांग्रेस का टिकट मिलने की बात की जा रही है तो दूसरी ओर लंबे समय से कांग्रेस के साथ जुड़े रहे चौ. यशपाल सिंह अब इस लड़ाई को सम्मान की लड़ाई मानकर चल रहे हैं।
काजी रशीद मसूद का कांग्रेस, जनता दल सहित तकरीबन पांच राजनीतिक पार्टियों का सफर एक ओर जहां उनकी काबिलियत बताता है तो दूसरी ओर उनके अस्थायी होने का भी प्रमाण है। हालांकि फिलहाल वह एक बार फिर समाजवादी पार्टी का दामन छोड़, कांग्रेस के साथ हाथ से हाथ मिलाकर चलने को बेताब हैं लेकिन इस बार कांग्रेस में भी उन्हें लेकर अंदरूनी रोष पनपने लगा है। मुस्लिम वोट बैंक के सहारे सहारनपुर में अपना परचम लहराने का कांग्रेस का सपना इस रोष के चलते टूटता हुआ दिखाई दे रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि खुद कांग्रेस के बुजुर्ग नेतागण भी काजी मसूद के रवैये से अपमानजनक महसूस कर रहे हैं। इन मसूद विरोधियों का यूँ कहें कि अपने सम्मान को बचाए रखने वालों की जमात में सबसे पहला नाम है चौ. यशपाल सिंह का। कांग्रेस के हाथ के सहारे सांसद रह चुके चौ. यशपाल अब खुलकर काजी रशीद मसूद के विरोध में उतर आए हैं। पिछले दिनों राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह से बात करने के बाद एक बार फिर वह अपने सम्मान को बचाने की गुहार पार्टी आलाकमान से लगा रहे हैं। हालांकि कांग्रेस के आला नेताओं का कहना है कि वह किसी भी कीमत पर फिलहाल रशीद मसूद गुट और चौ. यशपाल सिंह गुट को एक साथ मिलकर चुनाव जीतने के हित में काम करने को उत्साहित करने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन यह काम इतना आसान होता दिखाई नहीं दे रहा है। रशीद मसूद के दल बदलू व्यवहार के चलते उन्हें एक बार फिर अपने साथ लेकर चलने वाली कांग्रेस को भी अब उन पर उतना स्थायी भरोसा नहीं है। कांग्रेस के दिल्ली मुख्यालय में दोनों ही नेताओं को लेकर चर्चा आम है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि पार्टी चाहती है कि दोनो नेता साथ मिलकर चुनाव मैदान में कांग्रेस की जीत के मकसद से लड़ें। लेकिन इन बदलते राजनीतिक परिदृय के बीच इसका सबसे ज्यादा नुकसान काजी रशीद मसूद को ही होने की आशंका है। माना जा रहा है कि कांग्रेस एक अवसरवादी नेता के लिए अपने पुराने दिगगजों को नाराज करने से बचना चाहती है।
राहुल गांधी से मुलाकात के बाद चौ. यशपाल सिंह में एक नई जान आ गई है। अब वह इस पूरे विवाद को पार्टी मुख्यालय के निर्देशों के मुताबिक ही लेकर चल रहे हैं। माना जा रहा है कि चुनाव से पहले विवाद बढ़ने के हालात में रशीद मसूद को इसका खमियाजा भूगतना पड़ सकता है। कांग्रेस सूत्रों की मानें तो पार्टी के आंखों में अब रशीद मसूद का यह रवैया अखर रहा है। वैसे भी मसूद की राजनीति अवसरवादी ज्यादा रही है। जब तक समाजवादी पार्टी का उत्तर प्रदेश में वर्चस्व रहा, तब तक उन्होंने सपा के साथ अपनी राजनीतिक पारी खेली। इसके बाद सपा में फूट के बाद काजी का कद कम हो गया तो उन्होंने दूसरी पार्टी तलशानी शुरू कर दी। चुनाव से कुछ वक्त पहले ही उन्हें कांग्रेस में ठिकाना मिला लेकिन यह भी अभी तक अस्थायी ठिकाना ही कहा जा सकता है। पहले ही सहारनपुर क्षेत्र की विधानसभा सीटों पर बसपा का वर्चस्व है और इस बीच अगर कांग्रेस, सपा या भाजपा में से किसी भी पार्टी के बीच कलह होती है तो इसका सीधा असर चुनाव नतीजों पर जाएगा। जनता पार्टी, दलित मजदूर किसान पार्टी, कांग्रेस, रालोद, लोकदल, सपा और फिर कांग्रेस इन तमाम पार्टियों में काजी का आना—जाना लगा रहा है। पार्टी मुख्यालय से इस प्रकार की खबरें उड़ रही हैं कि कहीं न कहीं इस अंर्तकलह का नुकसान भी कांग्रेस में नए नवेले कहे जा रहे काजी को उठाना पड़ सकता है।
फिलहाल राहुल के सहारनपुर दौरे के बाद सभी की नजरें पार्टी की ओर से घोषित होने वाले प्रत्यााियों पर टिकी हुई हैं। रशीद मसूद ने चौधरी कार्ड खेलते हुए गंगोह सीट पर प्रदीप चौधरी का नाम पार्टी को सुझाया है तो दूसरी ओर चौ. यशपाल अपने बेटे को चौधरी रुद्रसेन को पार्टी का टिकट दिलाना चाहते हैं। हालांकि अभी तक पार्टी की ओर से टिकट फाइनल करने से पहले दोनों बुजुर्ग नेताओं के बीच की कलह खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन जल्द ही पार्टी किसी ठोस नतीजे पर पहुंच सकती है, इसके प्रबल आसार बन रहे हैं।
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