बुधवार, 4 जनवरी 2012

नीतीश कुमार बने कांग्रेस के आदर्श !

सत्यजीत चौधरी
   बिहार की आरजेडी चीफ लालू प्रसाद यादव के वोट बैंक में सेंध लगाकर मुस्लिम और यादव वोट बैंक के सहारे से बिहार की सत्ता हासिल करने वाले सीएम नीतीश कुमार अब यूपी में कांग्रेस के लिए आदर्श साबित होने जा रहे हैं। पार्टी ने नीतीश कुमार की तर्ज पर केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा को अपना वोट बैंक देखकर चल रही है। माना जा रहा है कि अगर बेनी प्रसाद कुर्मी और सपा के वोट बैंक मुस्लिमों को तोड़ने में सफल हो जाते हैं तो कांग्रेस का लखनऊ की कुर्सी का बीस साल का इंतजार समाप्त हो सकता है। हालांकि फिलहाल यह इतना आसान दिखाई नहीं दे रहा है।
उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों को अपना सबसे अहम वोट बैंक मानने वाली कांग्रेस अब कुर्मी वोट बैंक पर भी अपनी नजरे गड़ा रही है। नीतीश कुमार की तर्ज पर कांग्रेस ने योजना बनाई है कि वह मुलायम सिंह यादव के यादव-मुस्लिम वोट बैंक को तोड़ने के साथ ही कुर्मी वोट बैंक को भी  बटोरकर दिल्ली की सत्ता पर अपना कब्जा जमा सकती है। उत्तर प्रदेश विधानसभा  की कुल 403 विधानसभा  सीटों में से तकरीबन सौ सीटें कुर्मी वोट बैंक की कही जा रही हैं। कांग्रेस ने कुर्मी-मुस्लिम वोट बैंक वाली कुल 95 विधानसभा  सीटों को चिन्हित कर लिया है। अब पार्टी का अगला निशाना इन 95 सीटों के मुस्लिमों के साथ ही तकरीबन बीस हजार कुर्मी वोटों पर है। कांग्रेस के केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा को कुर्मी समुदाय का चेहरा माना जाता है। इसलिए पार्टी की ओर से दिए जाने वाले टिकटों में से इन 95 सीटों पर नाम सूची चिन्हित करने की जिम्मेदारी बेनी प्रसाद वर्मा को ही सौंपी गई है। बाकी की तकरीबन 300 विधानसभा सीटों में से भी  107 सीटें ऐसी चिन्हित की गई हैं, जहां कुर्मी-मुस्लिम वोट बैंक की संख्या 50 हजार से ऊपर है। यह कांग्रेस के लिए जीत का एक बड़ा हथियार साबित हो सकते हैं। चुनावी तैयारियों में लगे पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि गत लोकसभा चुनावों में जनता ने यह साबित कर दिया है कि पार्टी की ओर से जमीनी तौर पर अब काफी कार्य किया जा रहा है। खासतौर से कुर्मी, मुस्लिम जैसे समुदायों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। ऐसे में वोटरों का भी  कांग्रेस पर भरोसा कायम रहना लाजिमी है। दूसरी ओर कांग्रेस युवराज भी अपने अपनी रैलियों में समुदाय विशेष पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। हाल की एक रैली में वह सैम पित्रोदा का उदाहरण दे चुके हैं जो कि एक विशकर्मा थे। उनका तर्क है कि जाति या समुदाय से कुछ नहीं होता है, बस जरूरत है विकास के लिए हम कांग्रेस का साथ दें। हाल ही में यूपी के सहारनपुर जिले में आयोजित हुई रैली में भी वह अंसारी, रांई, कुरैशी, तेली, मलिक, मोमिन, मंसूरी, रंगरेज, सैफी और गाडा जैसे समुदायों को अपने भाषण और मंच का हिस्सा बना चुके हैं। खासतौर से इनमें से पिछड़ा वर्ग में आने वाले तमाम समुदाय आज भी उनके भाषणों में सबसे वरीयता पर दिखाई देने लगे हैं जो कि पार्टी के झुकाव की ओर इशारा करता है। बहरहाल, फिलहाल कांग्रेस पूर्व कानपुर के क्षेत्र में मुस्लिम-कुर्मी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय, मुस्लिम और ज्यादातर पिछड़ी जातियों को साथ लेकर रालोद के साथ मिलकर चुनाव लड़ने जा रही है। पार्टी की यह योजना कितनी सफल होगी, यह तो चुनाव नतीजे बताएंगे लेकिन फिलहाल कांग्रेस नीतीश कुमार के बहाने सत्ता के ख्वाब संजो रही है।

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