सोमवार, 2 जनवरी 2012

छोटे दल, बड़ी चुनौती

-यूपी की सियासत में अपनी ताल ठोंक रहे हैं छोटे और धार्मिक आधार पर बने दल

सत्यजीत चौधरी
 उत्तर प्रदेश में चुनावी महासंग्राम के बीच लगातार कई नए-नए राजनीतिक समीकरण सामने आना शुरू हो गए हैं। एक ओर जहां बड़े राजनीतिक दल अंदरूनी कलह और राजनीति का शिकार हो रहे हैं तो दूसरी ओर समाज या धर्म प्रधान छोटे दल भी उत्तर प्रदेश की सियासी माहौल में बड़ी चुनौती के तौर पर उभर रहे हैं। इन छोटे दलों को दूसरी पार्टियां हालांकि अपने लिए एक वोट पाने का जरिया मानती हैं लेकिन यह अगर एक हो जाएं तो किसी भी पार्टी के अरमानों पर पानी फेर सकते हैं। यूपी की राजनीतिक गलियारों में इन दिनों कुछ ऐसे ही दल उभर आए हैं, जो मिलकर एक नया भूचाल लाने की तैयारी कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के चुनावी मौसम में एक नए दल का नाम शामिल हो गया है। इत्तेहा फ्रंट के नाम से वजूद में आए इस मोर्चे में पीस पार्टी, भारतीय समाज पार्टी, कौमी एकता दल, अपना दल, इत्तेहाद-ए-मिल्लत कौंसिल, बुंदेलखण्ड कांग्रेस, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, इंडियन नेशनल लीग, भारतीय युवा कल्याण पार्टी, भारतीय जनसेवा पार्टी, नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी और राष्टÑीय परिवर्तन मोर्चा शामिल हैं। यह सभी छोटे-छोटे स्तर के दल मिलकर अब इत्तेहाद पार्टी का रूप ले रहे हैं। खास बात यह है कि यह नई पार्टी उत्तर प्रदेश की सभी 403 विधानसभा सीटों पर चुनाव भी लड़ने जा रही है। ऐसे में मुस्लिम और क्षेत्र विशेष पर आधारित वोटों की राजनीति करने वाली पार्टियों के लिए कुछ मुश्किलात पैदा हो जाएं तो कोई आतिश्योक्ति न होगी। इत्तेहाद फ्रंट का मकसद है कि बसपा और सपा सहित सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियां राज्य को खाने में लगी हैँ, ऐसे में इस भष्टाचार के खिलाफ वह आवाज बुलंद करने जा रहे हैं। 
इत्तेहाद फ्रंट की स्थापना आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य और शैक्षणिक संस्था नदवा लखनऊ के अध्यापक मौलाना सैयद सलमान हुसैनी नदवी की अध्यक्षता में हुई है। आपको याद दिला दें कि इससे पूर्र्व उत्तर प्रदेश में ही पांच से ज्यादा छोटे धार्मिक आधार पर राजनीतिक करने वाले दल राष्टÑीय लोकदल में शामिल हो चुके हैं। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह एक बार फिर मुस्लिम वोट बैंक को पक्का करने के मकसद से दिल्ली जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी से मिल चुके हैं। सपा का मानना है कि मौलाना बुखारी से बात को मुस्लिम वोट बैंक के नजरिए से बेहतर आंका जा सकता है। दूसरी ओर राष्टÑीय स्वयं सेवक संघ जैसे संघ भी अब छोटे दलों के भरोसे ही यूपी की राजनीति में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश कर रही है। इन छोटे दलों का अस्तित्व में आना अभी सभी पार्टियों के लिए एक चुनौती के तौर पर उभर रहा है।

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