शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

दाग अच्छे नहीं हैं

सत्यजीत चौधरी
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने चुनाव की घोषणा होने के बावजूद अपने मंत्रिमंडल से कई मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। जनता के सामने यह संदेश देने की कोशिश की गई कि मायावती का यह स्टंट भष्टाचार के खिलाफ बन रहे माहौल में एक अच्छा चुनावी फंडा कहा जा सकता है लेकिन पर्दे के पीछे की सच्चाई चौंकाने वाली है। इस सच्चाई से अब पर्दा उठ रहा है और मायावती का एक पंथ दो काज का फंडा भी  सामने आ रहा है। फिलहाल मायावती भले ही कुछ भी दावे करे लेकिन सच्चाई यह है कि दागदार होने की वजह के साथ ही पिछले विधानसभा  चुनावों में इन हटाए गए मंत्रियों में से ज्यादातर कम मतों से विजयी हुए थे जो कि इस बार बसपा के लिए मुश्किलों भरे हो सकते थे।
  मायावती चुनावी चर्चाएं शुरू होने के साथ ही अपने दागी मंत्रियों से दूर हटने की कोशिशों में लग गई। जब पानी सिर पर आता दिखाई दिया तो उन्होंने एक पल में ही अपने पूरे बीस मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। गहराई से मायावती के इस स्टंट का अध्य्यन किया जाए तो एक और चौंकाने वाली बात सामने आती है। सबसे चौंकाने वाली यह है कि जिन मंत्रियों को मायावती ने बाहर का रास्ता दिखाया है, उनमें से ज्यादातर ने कम मतों से चुनाव जीता था। जो कि अब पार्टी के लिए दुखदाई साबित हो सकते थे। पिछले दिनों बसपा की ओर से जारी हुई प्रत्याशियों की सूची में दस मंत्री और कई विधायकों को इस बारी पार्टी टिकट नहीं दिया गया है। इनमें से एक बिजनौर के विधायक शाहनवाज राणा ने तुरंत रालोद का दामन थाम लिया। गत चुनावों में शाहनवाज राणा को समाजवादी पार्टी के कुंवर भारतेंद्र ने कड़ी टक्कर दी थी, जिसमें शाहनवाज राणा केवल 577 मतों से विजयी हुए थे। बरेली विधानसभा  सीट से विधायक और वक्फ मंत्री रहे शाहजी इस्लाम अंसारी को भी  पार्टी ने टिकट इसलिए नहीं दिया, क्योंकि 2007 के विधानसभा चुनावों में वह अपने प्रतिद्वंदि भाजपा के बहोरान लाल मोर्य से महज 1,130 मतों से विजयी हुए थे। आयुर्वेद मंत्री और भिगा सीट से विधायक दद्दन मिश्रा को भी  मायावती ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है, क्योंकि दद्दन अपने कांग्रेसी प्रतिद्वंदी मोहम्मद असलम से केवल 91 मतों से विजयी हुए थे। बसपा ने विधायक डीपी यादव को भी बाहर का रास्ता दिखाने के साथ ही पार्टी टिकट से भी  दूर कर दिया, क्योंकि वह अपने समाजवादी पार्टी के प्रतिद्वंदी ओमकार सिंह से महज 109 मतों से विजयी हुए थे। फिलहाल वह सपा में अपना ठिकाना तलाश रहे हैं। इलाहाबाद की हांडिया सीट से विधायक और उच्च शिक्षा मंत्री रहे राकेश धर त्रिपाठी से भी  मायावती ने तौबा कर ली है, क्योंकि 2007 के विधानसभा  चुनावों में वह अपने समाजवादी पार्टी के प्रतिद्वंदी महेश नारायण सिंह से महज 1,342 मतों से विजयी हुए थे। बैंसगांव विधानसभा  सीट से विधायक और तकनीक शिक्षा मंत्री रहे सदल प्रसाद से भी  मायावती ने तौबा कर ली है, क्योंकि वह गत चुनावों में अपने प्रतिद्वंदी भाजपा के संत प्रसाद से महज 2,284 मतों के कम फासले से विजयी रहे थे। लोकायुक्त जांच शुरू होने के बाद इस्तीफा देने को मजबूर माध्यमिक शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्रा को भी  मायावती ने दोबारा टिकट नहीं दिया है। वह भी अपने प्रतिद्वंदी अपना दल की रीता सिंह से महज 2,731 वोटों के कम फासले से चुनाव जीते थे। मुरादनगर सीट से निर्दलीय चुने गए विधायक कृषि शिक्षा एंव कृषि शोध मंत्री राजपाल त्यागी को भी  पार्टी का टिकट नहीं मिला है। वह गत चुनावों में अपने बसपा के प्रतिद्वंदी वहाब से महज 3020 मतों के फासले से चुनाव जीते थे। मायावती की माया को समझने में कई राजनीतिक दलों ने भले ही भूल की हो लेकिन मायावती का मानना है कि ऐसे दाग अच्छे नहीं है जो कि भष्टाचार के आरोप के साथ ही अपने जनता के बीच भी  कम मतों से विजयी हो पाए हों। माना जा रहा है कि मायावती का यह एक कदम उनकी लखनऊ की कुर्सी बचाए रखने में अहम साबित हो सकता है। 

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