मंगलवार, 31 जनवरी 2012

मुद्दों की आक्सीजन पर जिंदा सियासी पार्टियां

सत्यजीत चौधरी
उत्तर प्रदेश समेत पांचों राज्यों में चुनाव अभियान ने रफ्तार पकड़ ली है। वादों और इरादों का बाजार गर्म है। मुद्दों पर धार चढ़ाई जा रही है। इस बार सभी दलों के पास एक साझा मुद्दा है—भष्टाचार। इसके अलावा कुछ स्थानीय मुद्दे हैं। कहने का मतलब यह है कि चुनाव कैसा भी हो, बिना मुद्दों के नहीं लड़ा जाता। चुनाव अगर एवरेस्ट है तो मुद्दे आॅक्सीजन। जहां तक उत्तर प्रदेश का सवाल है, यहां राजनीति हमेशा से ही बड़े और गंभीर मुद्दों के इर्द-गिर्द परिक्रमा करती है। मुद्दे नेताओं को जिंदा रखते हैं। ये अगर खत्म हो जाएं तो उनकी राजनीति के आगे बढ़ा सवालिया निशान लगने का खतरा पैदा हो जाता है। उत्तर प्रदेश में सियासी पार्टियों ने ऐसे मुद्दे गढ़े जिनके राष्टÑव्यापी प्रभाव रहा। राममंदिर, मंडल कमीशन जैसे कुछ मुद्दे ऐसे रहे जिन्होंने देश को धधका दिया। हरित प्रदेश पश्चिमी यूपी के एक बड़े हिस्से के लिए पिछले कई सालों से लॉलीपॉप का काम कर रहा है। इसके अलावा प्रदेश में गन्ना, भूमि अधिग्रहण, खाद-बीज-डीजल की महंगाई, सुशासन, सर्वजन हिताय जैसे मुद्दे राजनेताओं के चहेते रहे हैं।
अब लाख टके का सवाल यह पैदा होता है कि अगर ये मुद्दे खत्म हो जाएं तो क्या होगा। ये खत्म हुए तो कई पार्टियो के आगे फुलस्टाप लग जाएगा। शायद यही वजह है कि चुनाव में किसी पार्टी के लिए को मामला मुद्दा रहता है, लेकिन उस पार्टी के सत्ता में आते ही वह मसला बन जाता है। फिर मसला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है, ताकि पार्टी, सरकार और राजनीति चलती रहे। भाजपा ने यूपी और केंद्र में सत्ता दिलाने वाले राम मंदिर मुद्दे का यही हश्र किया। रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह की सियासत के प्राण हरित प्रदेश नाम के मुद्दे में बसते हैं। वह कई दशकों से इस मुद्दे पर सियासत कर रहे हैं। कई बार केंद्र में मंत्री बने। वह मंत्री बनने के लिए केंद्र और राज्य में राजनीति मित्र बदलते रहे, लेकिन मुद्दे का दामन नहीं छोड़ा। उन्होंने केंद्रींय मंत्री के रूप में हरित प्रदेश को अमली जामा पहनाने के लिए अपने गठबंधन के सखाओं पर दबाव डाला ही नहीं। 
समाजवादी पार्टी के प्राण मुसलमानों में बसते हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद वह मुसलमानों पर कितनी मेहरबान रह जाती है, सब जानते हैं। उल्टे कल्याण सिंह से दोस्ती गांठकर मुलायम सिंह मुस्लिम समाज के बाबरी मस्जिद रूपी जख्म पर नमक छिड़कने से नहीं चूके नहीं। कांग्रेस भी पीछे नहीं है। अल्पसंख्यकों को लेकर केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने न जाने कितनी कमेटियां बना लीं, लेकिन उनकी सिफारिशों पर खुद अमल कर पाई और न ही राज्यों से करा पाई। 
बसपा ने पिछला चुनाव सर्वजन पर लड़ा था। इन पांच सालों के दौरान इस सर्वजन ने कितना सुख •ाोगा, किसी से छिपा नहीं है। थानों में दलित महिंलाओं के बलात्कार के मामलों ने पूरे प्रदेश को हिला कर रख दिया था।
भाजपा भी मुद्दों को लेकर गंभीर नहीं है। एक जमाने में रामनाम की माला जपने वाली पार्टी आज शाम उत्तर प्रदेश में अपना चुनावी घोषणापत्र जारी किया। राम का नाम बस रस्मन लिया गया और मंदिर के प्रण की औपचारिकता निभाई गई। पार्टी ने अपने घोषणापत्र में कहा है कि अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़ा है। श्रीराम हमारी गौरव तथा गरिमा के प्रतीक हैं। लेकिन दुख की बात है कि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) औ वामपंथी दलों की छद्म धर्मनिरपेक्षता और वोट की राजनीति के कारण इसका विरोध हो रहा है।साथ ही पार्टी ने एक नया धार्मिक शिगूफा छेड़ा। सरकार बनी तो प्रदेश में हर गरीब परिवार को एक अदद गाय मुहैया कराएगी। साथ ही मथुरा और वृंदावन में आध्यात्मिक डिज्नीलैंड का निर्माण।

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