मंगलवार, 22 अगस्त 2017

पत्रकार राजपाल पारवा के खिलाफ फर्जी मुकदमें से आक्रोश

- कथित स्वयंभू नेता ने लिखवाया झूठा व मनघंड़त मुकदमा
- पत्रकारों ने काली पट्टी बांध निकाला मार्च, आज देंगे धरना 
शामली: शामली के वरिष्ठ व मान्यता प्राप्त पत्रकार राजपाल पारवा के खिलाफ झूठे व फर्जी मुकदमें दर्ज कराने से पत्रकारों में आक्रोश है। पत्रकारों ने अन्याय के खिलाफ एकजुटता से मजबूत आवाज उठाते हुए प्रकरण में निष्पक्ष जांच कराने व झूठे मुकदमें दर्ज कराने वाले कथित स्वयंभू जातिय नेता पर मुकदमा दर्ज कराने की मांग की है। पत्रकारों ने सायं को जिलाधिकारी इंद्र विक्रम सिंह को ज्ञापन देकर निष्पक्ष जांच की मांग की। इसके साथ ही त्वरित कार्रवाई न होने पर बुधवार यानि आज 10 बजे से कलक्ट्रेट में लोकतांत्रित तरीके से धरने का निर्णय लिया गया। 
मंगलवार को नगरपालिका परिषद में जिले के समस्त पत्रकारों की बैठक का आयोजन किया। बैठक में मान्यता प्राप्त पत्रकार व दैनिक जनवाणी के जिला प्रभारी राजपाल पारवा के खिलाफ स्वयंभू कथित जातिय नेता आशुतोष पांडेय के कोतवाली शामली में झूठा, निराधार व मनगढंत मुकदमा दर्ज कराने पर गहरा आक्रोश व्यक्त किया गया। पत्रकारों ने एकजुट होकर पत्रकार राजपाल पारवा के खिलाफ हुए फर्जी मुकदमें के खिलाफ आर-पार की लड़ाई लड़ने का निर्णय लिया। इसके उपरांत पत्रकारों ने हाथों पर काली पट्टी बांधकर पैदल मार्च करते हुए जिला कैंप
कार्यालय में पहुंचकर डीएम इंद्र विक्रम सिंह को ज्ञापन सौंपते हुए निष्पक्ष जांच कराकर मुकदमों को समाप्त व फर्जी मुकदमें दर्ज कराने वाले के खिलाफ मुकदमें दर्ज कराने की मांग की। पत्रकारों ने चेतावनी दी कि यदि उन्हें त्वरित गति से न्याय न मिला तो बुधवार को सुबह 10 बजे से कलक्ट्रेट में धरने दिया जाएगा। इस अवसर पर पत्रकार आनंद प्रकाश, लोकेश पंडित, नीरज भार्गव, प्रवीण वशिष्ठ, शाहनवाज
राणा, दिनेश भारद्वाज, राहुल राणा, वरूण पंवार, अमित शर्मा, पंकज प्रजापति, पंकज मलिक, श्रवण शर्मा, कवरपाल सिंह, पंकज वालिया, डा. ओमपाल सिंह, नदीम अहमद, भूदेव शर्मा, दीपक शर्मा, सागर कौशिक, संजीव वालिया, वसी खान, सुधीर चौहान, संदीप इंसा, राजेश कुमार, अनवर अंसारी, दिनेश गहलोत, विनय बालियान, सरफराज अली, श्याम वर्मा, अमित तरार, पंकज जैन, नरेंद्र चिकारा, आकाश मलिक, सूरज चौधरी, सचिन शर्मा, रवि सुलानिया, अमित मोहन गुप्ता समेत 250 पत्रकार शामिल रहे। 
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शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

11 फरवरी को तय होगा जाटो का मूड : चौधरी अजित सिंह के प्रति वफ़ा या मोदी में आस्था

     
      11 फरवरी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में जाट अहम रोल अदा करने जा रहे हैं. इस बात का अहसास भाजपा को पहले से ही हो गया था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाकी हिस्सों में रहने वाले जाटों के एक तबक़े ने अब तक मोदी का साथ नहीं छोड़ा है, लेकिन अब भगवा पार्टी को लेकर उनका उत्साह उस स्तर का नहीं रह गया है, जितना पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त था। शायद यही वजह कि पार्टी वेस्ट यूपी में जाटों के बड़े वोट बैंक को  हाथ से जाने नहीं देना चाहती ।
    जाटों को वापस अपने पाले में लाने के लियें भाजपा की तमाम कसरतें नाकाम हो चुकी हैं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 19 जिलों में जाट हैं और उत्तर प्रदेश में 60 -70 जाट निर्णायक सीटें हैं जिन पर तकरीबन 40 प्रतिशत से अधिक जाट वोट है। 
     
हाल के दिनों में यह बात तो साफ़ हो गई है 2013 को लेकर जाटों और मुसलमानों में पश्चाताप सा है. खास तौर से जाटों को लगता है कि उनका इस्तेमाल किया गया है. यही कारण है कि जाट अपने सबसे बड़े नेता चौधरी चरण सिंह के परिवार में फिर आस्था जता रहे हैं . जनवरी में जाट नेता यशपाल मलिक की आगुवाही में खरड़ गाँव में हुई जाट महापंचायत ने नरेंद्र मोदी की पार्टी को वोट करने की मनाही कर दी थी. ऐसा अपना मुख्यमंत्री बनाने के लिए नहीं बल्कि बीजेपी को मजा चखाने के मकसद से किया गया .
       उत्तर प्रदेश में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को लेकर जाटों के अंदर आज भी सम्मान और श्रद्धा का भाव है। जानकारों की मानें तो 50 से 90 के दशक तक जाटों ने हमेशा चौधरी चरण सिंह का साथ दिया। चरण सिंह के निधन के बाद उनके बेटे अजित सिंह जाट नेता के तौर पर उभरे लेकिन मुजफ्फरनगर दंगे के बाद समीकरण पूरी तरह से बदल गया। केंद्र से जाट आरक्षण मिलने के बावजूद भी वेस्ट यूपी का जाट वोटर रालोद छोड़कर भाजपा के साथ आ गया था. लेकिन आरक्षण और गन्ने भुगतान को लेकर केंद्र सरकार के रवैये से जाट खासा खफा हैं। शुक्रवार को बिजनौर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जाटों को मानने की कोशिश की , मोदी ने अपने संबोधन में चौधरी चरण सिंह का जिक्र बार बार किया। साथ ही आश्वासन दिया कि भाजपा सरकार बनने पर हर जिले में किसानों की मदद के लिए चौधरी चरण सिंह किसान कल्याण कोष बनाया जाएगा। इसके साथ ही पीऍम ने जाट बेल्ट के किसानों को भी साधने की कोशिश की। उनहोंने यूपी में भाजपा सरकार बनते ही गन्ना किसानों का पूरा भुगतान करवाने की बात कही। साथ ही छोटे किसानों के कर्ज माफ करने का भी ऐलान किया। अब देखना होगा कि 11 फरवरी को जाट क्या मूड दिखाते हैं. चौधरी अजित सिंह के प्रति वफा दिखते हैं या मोदी में आस्था दिखाते हैं

बुधवार, 20 अप्रैल 2016

हौसले को सलाम

     
हौसले का नाम है सीमा तोमर। एक तरफ निचले स्तर सुविधाआें के बीच खुद को साबित करने के लिए पसीना बहाती प्रतिभाएं हैं तो दूसरी तरफ अदना—सी उपलब्धियों के नाम पर इतराते बड़े घरानों के बच्चे। एक आेर सुविधा सपन्न शूटिंग रेंज में आेलंपिक गोल्ड मेडलिस्टों से निशानेबाजी सीखकर वाहवाही बटोरने वाले शूटर हैं तो दूसरी तरफ सीमा तोमर हैं, जिन्होंने अपने गांव की शूटिंग रेंज में बेसिक गन से शूटिंग सीखी और ट्रैप शूटिंग में कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताआें में भारत का मान बढ़ाया। सीमा ने कभी किसी से शिकायत नहीं की। अर्जुन की तरह मछली की आंख पर निशाना साधने का दमखम रखने वाली सीमा के पास न तो द्रोणाचार्य सरीखा कोई गुरु है और न सुविधाआें से लैस कोई शूटिंग रेंज। केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार से उन्हें बस आश्वासन भर मिले हैं। साइप्रस के निकोसिया में शॉटगन वीमन ट्रैप प्रतियोगिता में नॉक आउट चरण मात्र एक अंक से चूककर इस अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता से बाहर होने का गम भुलाकर सीमा तोमर ब्राजील विश्वकप में दमखम आजमाने में जुटीं हैं। ब्राजील के लिए रवानगी के समय सीमा से सत्यजीत चौधरी की संक्षिप्त बातचीत।
1. आप शूटर कैसे बनीं? 

शुरू से ही बंदूक से खेलने का शौक था। फिर मां के बाद मौका मिला तो खेलना शुरू कर दिया।

 2. आप कॉलेज की ओर से जैवलिन थ्रो और शॉटपुट जैसी स्पर्धाओं में भाग लेती थी। जैवलिन थ्रो की आप बेस्ट स्टेट प्लेयर रही और इसमें नेशनल लेवल तक आप खेली, फिर इस ओर रुझान कैसे हुआ?
 
खेलों में रूचि थी इसलिए थ्रो में भाग लिया लेकिन अंत में मुझे लगा कि यह मेरे लिए सर्वश्रेष्ठ नहीं है। इसके अलावा, घर में लाइसेंस वाली बंदूक थी, उससे बहुत लगाव था। उसे साफ करना, चलाना सीखाना.... पहली बार जब यह खेल देखा तभी लगा कि मुझे भी यह करना चाहिए।
3. इस मुकाम तक कैसे पहुंची, इसके बारे में कुछ बताइए?
    खेलने का मौका मिला तो पहले एयर राइफल से ही शुरू किया। गांव में ही अभ्यास करते थे और अच्छा प्रदर्शन भी किया। उसके बाद आर्मी के एक जनरल वासुदेव हम आठ निशानेबाजों को इंदौर ले गए। वहां हमें आर्मी के लोगों के साथ निशानेबाजी की। उसके दो साल मैंने एयर राइफल छोड़कर ट्रैप शॉटगन को चुना। तब लगा कि मुझे इसी की तलाश थी।
4. इस दौरान आपके प्रेरणास्रोत कौन रहे?
जब मैं छोटी थी तो जसपाल राणा का नाम बहुत सुना था। इसके बाद मां ने ज्यादा उम्र में शुरुआत की, उससे भी मैं प्रभावित हुई।
5. अभ्यास के लिए आप कितना समय देती है? इसके अलावा एक शूटर के लिए क्या चीज जरूरी है?
जब प्रतियोगिता नजदीक होती है तो सप्ताह में पांच दिन अभ्यास और रोजाना चार घंटे अभ्यास करते हैं। इसके लिए आपका शरीर दुरुस्त और दिमाग शांत होना चाहिए।
6. आपकी शिक्षा-दीक्षा कहां हुईं?
मेरी पढ़ाई-लिखाई पूरी तरह से अपने ही क्षेत्र में संपन्न हुई है। जीवाना बागपत महिला कॉलेज से स्कूल की पढ़ाई की और फिर चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ से स्नातक की शिक्षा हासिल की। 
7. अपनी दिनचर्या के बारे में बताइए?
सुबह शूटिंग रेंज जाना तो बहुत जरूरी है। उसके बाद दोपहर में कुछ देर आराम करना और शाम को जिम जाना। बाकी खाली समय में थोड़ा सोना, खाना और टीवी देखना।
8. सरकार से कितनी मदद मिल रही है?
सरकार से जितनी मदद मिलनी चाहिए उतनी नहीं मिलती।
9. जो युवा इस क्षेत्र में अपना कॅरियर बनाना चाहते है, उनके लिए कुछ कहना चाहेगी?
मैं कहना चाहूंगी कि कोई भी मौका बहुत मुश्किल से मिलता है, जो भी मौका मिले उसमें अपना सौ प्रतिशत देना चाहिए। कड़ी मेहनत और खुद पर भरोसे के बिना कुछ हासिल नहीं होता।

बुधवार, 28 मई 2014

राम भरोसे केदारनाथ के दर्शन

सत्यजीत चौधरी
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छांह
एक पुरुष, भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह।
       महान कवि जयशंकर प्रसाद के कालजयी महाकाव्य कामायनी के चिंता सर्ग की ये दो लाइनें पिछले साल भी दिमाग में कौंधी थीं, जब जल प्रलय ने उत्तराखंड के एक बड़े हिस्से को झिंझोड कर मलबे में तब्दील कर दिया था। इस साल जब केदारनाथ की वाॢषक यात्रा शुरू हुई तो मेरे अंदर बैठा मनु (कामायनी का मुख्य चरित्र) बेचैन हो उठा। चल पड़ा हिमगिरि के उत्तुंग शिखर की तरफ, ताकि देख सके कि प्रकृति द्वारा लहूलुहान पुरुष अपने जख्मों को कितना भर पाया है। ढेरों सवाल थे। बाबा केदारनाथ की नगरी तक जाने वाले वे रास्ते और पुल क्या फिर बन पाए, जिन्हें बाढ़ बहा ले गई थी? वैकल्पिक पैदल मार्ग कैसा है और उसपर कैसी सुविधाएं हैं? जिन धर्मशालाओं और गेस्ट हाउसों को बाढ़ बहा ले गई थी, क्या वे फिर से आबाद हो पाए हैं? क्या तीर्थयात्रियों की ठहरने, खाने—पीने और स्वास्थ्य सेवा फिर से बहाल हो पाई है?

शनिवार, 17 मई 2014

अब मोदी होने का मायने-मतलब 

सत्यजीत चौधरी
    तमाम पूर्वानुमानों को ध्वस्त करते हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रचंड बहुमत लाकर साबित कर दिया कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लडऩे का उसका फैसला एकदम सही था। इस चुनाव में जनाकांक्षाके प्रतीक बनकर उभरे मोदी ने जीत के लिए जान लड़ा दी और नतीजे अनुकूल से कहीं ज्यादा आए। चुनाव के दौरान और नतीजों के बाद मोदी लार्जर देन लाइफ बनकर उभरे। अब मोदी की बड़ी तस्वीर से कहीं बड़ी वे उम्मीदें हैं, जो पूरे देश ने लगा रखी हैं। यानी अच्छे दिन की आस, जिसका वादा पार्टी और मोदी प्रचार के दौरान करते रहे हैं।
       पहले हमें जनाकांक्षा को समझना होगा। याद करें अन्ना का आंदोलन। 2011 में इस आंदोलन की सुगबुगाहट शुरू हुई और 2012 तक आंदोलन जवान हो गया। लोग सिस्टम से खफा थे। भ्रष्टाचार, विकास, महंगाई, नक्सलवाद, महिलाओं की सुरक्षा, कश्मीर, सडक़, बिजली और पानी जैसे मुद्दों पर सरकार की चुप्पी युवाओं से भरे भारत को निराश कर रही थी। बस यही टर्निंग प्वाइंट था, जिसे भाजपा और संघ ने भांपा और उतार दिया मोदी को मैदान में। कांग्रेस लोगों के गुस्से को समझ ही नहीं पाई। आंदोलन में अरविंद केजरीवाल के कूदने और उसे राजनीतिक स्वरूप देने की कोशिशों के चलने अन्ना मुहिम से अलग हो गए। दिल्ली के चुनाव में के केजरीवाल ने अन्ना की वैचारिक विरासत को कैश कर लिया। फिर अपने ही ऊंटपटांग फैसले के चलते हाशिये पर चले गए। मैनेजमेंट के माहिर मोदी चुपचाप पब्लिक की पल्स को समझते रहे। फिर 2013 में जब आम चुनाव का ऐलान हुआ तो मोदी पूरे होमवर्क के साथ मैदान में कूद पड़े। 2जी—3जी घोटालों, कॉमवेल्थ घपले और कोलगेट स्कैम की पर्तों को उघाड़ते मोदी ने महंगाई और अव्यवस्था से परेशान लोगों के सामने अन्ना के दर्द को अपनी शब्दावली के साथ पेश किया। लोगों को लगा कि मसीहा आ गया है।

सोमवार, 12 मई 2014

कुर्सी से पहले पड़ोसियों को साधने की कवायद

सत्यजीत चौधरी       
     लोकसभा चुनाव के नतीजे आने में अभी काफी समय है, लेकिन चरण दर चरण मतदान के बाद जीत के विश्वास से लबरेज नरेंद्र मोदी मेराथन रैलियों के बीच घरेलू और विदेश नीतियों को समझने और समझाने में भी जुट हुए हैं। विदेश नीति को विशेष रूप से फोकस कर रहे हैं। पड़ोसियों के दिमाग में उपज रहे संशय के बादलों को छांटने के साथ ही वह होमवर्क भी कर रहे हैं, ताकि जिम्मेदारी मिलने के साथ ही बेहतर रिश्तों की तरफ कदम बढ़ाया जा सके। 
     
        भाजपा को अगर केंद्र में सरकार बनाने का मौका मिलता है तो मोदी के लिए सबसे मुश्किल काम होगा अमेरिका को साधना। ओबामा प्रशासन ने अभी तक खुलकर कोई ऐसा संकेत नहीं दिया है कि मोदी के नेतृत्व में बनने वाली सरकार के प्रति उसका क्या रवैया होगा। पाकिस्तान के साथ ठहरी बातचीत को फिर से पटरी पर लाना और विश्वास बहाली का माहौल तैयार करना मोदी के लिए दूसरी बड़ी चुनौती होगी। मोदी ने इस चुनौती से निपटने की तैयारी अभी से शुरू कर दी है। अंग्रेजी समाचारपत्र द हिंदू की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि नरेंद्र मोदी के दो सलाहकारों ने हाल में पाकिस्तान का दौरा कर वहां मुस्लिम लीग के नेताओ से बातचीत की थी। पाकिस्तान मुस्लिम लीग—नवाज ही की वहां केंद्र और पंजाब प्रांत में सत्ता है। पाकिस्तान में आधिकारिक सूत्रों के हवाले से इस मुलाकात के बारे में द हिंदू ने लिखा है कि मोदी के दोनों अज्ञात दूतों ने मुस्लिम लीग के नेताओ से क्या बातचीत की, इसका खुलासा नहीं हो सका, लेकिन भारत में मौजूदा चुनावी परिदृश्य और भविष्य को लेकर मिल रहे संकेतों के मद्देनजर ये मुलाकात काफी अहम है। दूतों को भेजकर मोदी ने यह साफ करने की कोशिश की है कि अगर वह प्रधानमंत्री बनते हैं तो भारत—पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय रिश्तों पर वह ग्रेनेड फेंकने नहीं जा रहे हैं।