बुधवार, 15 मई 2013

जाट आरक्षण का टूटता, बिखरता भटकता रण

सत्यजीत चौधरी
  
अब यह समझना मुश्किल हो गया है कि जाट ज्यादा भोले हैं या आरक्षण के मुद्दे पर उनका कथित नेतृत्व कर रहे नेता और सरकारें ज्यादा चालाक। आजाद भारत के इतिहास अब तक इतना भटका, बिखरा और संदेहों से भरा कोई आंदोलन नहीं हुआ है। इस आंदोलन का सबसे दुखद पहलू है इसका कोई असली माई-बाप न होना। लगातार पैदा हो रहे नेता आंदोलन की ताकत लगातार बंट और बिखरा रहे हैं। पर्दे के पीछे चल रही चल रहीं दुरभि संधियां आंदोलन की रीढ़ पर सतत वार कर रही हैं।
    जाट आरक्षण की मांग को लेकर अपनी दुकानों के साथ ढेरों नेता मैदान में हैं। दो—तीन बड़े संगठनों जैसे अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति (पार्ट वन और पार्ट टू) और संयुक्त जाट आरक्षण संघर्ष समिति के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में ढेरों जाट संगठन उग आए हैं। हद तो यह है कि हाल में ही दिल्ली स्थित मावलांकर हॉल में अखिल भारतीय जाट महासम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमे पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवर सिंह और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ के अलावा हरियाणा का मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने शिरकत की। हरियाणा और पंजाब के कई पूर्व और मौजूदा मंत्री सम्मेलन में मौजूद थे। इस दौरान समुदाय के नेताओ ने आरक्षण की लड़ाई को धार देने के लिए आंदोलन की कमान तेज-तर्रार नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय सिंह को सौंपने का निर्णय लिया। यानी आरक्षण के मुद्दे पर एक और जाट नेता का उदय।
    दरअसल जाट आरक्षण आंदोलन की बासी—सी हो चली कढ़ी में एक बार फिर उबाल लाने की कोशिश की जा रही है। इस आंदोनल का स्वरूप शुरू से ही उग्र रहा है। कभी दिल्ली को पानी की सप्लाई रोककर तो कभी निषेध को तोडक़र कांग्रेस अध्यक्ष के आवास की तरफ कूच कर जाट नेता लगातार उद्दंड तेवर दिखाते रहे हैं। हाल में दिल्ली स्थित जंतर-मंतर पर एक गुट ने दूसरे को धरने को हाईजैक करने की कोशिश की। हाल में ही केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के सरकारी आवास में कुछ जाट आंदोलनकारियों ने घुसकर तोडफ़ोड़ की।