शनिवार, 6 अप्रैल 2013

विकास के लिए जरूरी है सही ऊर्जा स्रोत की खोज

सत्यजीत चौधरी
    सिर पर सवार सूरज अग्नि वर्षा कम करने को तैयार नहीं है। पारा नई-नई ऊंचाइयां गढ़ रहा है। राजधानी दिल्ली से लेकर सबसे पिछड़े राज्य बिहार में बिजली की किल्लत से हाहाकार मचा हुआ है। बिजली नहीं है तो पानी भी नदारद है, लिहाजा जनता जर्नादन प्यास से भी बिलबिला रही है। ऐसी ही हालत कुछ देश की आर्थिक सेहत की है। गंभीर संकट से गुजर रहे देश में रुपए और सकल घरेलू उत्पाद का गिरना यह बता रहा है कि देश की आर्थिकसेहत किस खतरनाक हद तक गिर चुकी है। पिछले एक पखवाड़े से तमाम आर्थिक परेशानियां, रुपए के अवमूल्यन और गिरती उत्पाद दर को भूलकर हमारे सियासतदां राष्ट्रपति चुनने की कवायद में जुटे हैं। स्टैंडर्ड एंड पूवर्स की रेटिंग चेतावनी को नजरंदाज कर सरकार निश्चिंत है कि हालात सुधार लिए जाएंगे, लेकिन सरकार चाहे जितनी बेफिक्र हो, हकीकत तो यह है कि आर्थिक नाकामियों, बढ़ती महंगाई और सरकार की अस्थिर हालत ने जनता को गहरे अवसाद में डाल दिया है। पेट्रोल की बढ़ी कीमतों से जनता अभी उबरी भी नहीं थी कि प्रचंड गर्मी में उसे बिजली और पानी के संकट ने घेर लिया है।

यातनागृह में तब्दील होते शिक्षा के मंदिर


यातनागृह में तब्दील होते शिक्षा के मंदिर
सत्यजीत चौधरी

    अंग्रेजी में एक कहावत बहुत प्रचलित थी, स्पेयर द रॉड एंड स्पॉयल द चाइल्ड । यानी बच्चे को बर्बाद करना हो तो छड़ी का सहारा छोड़ दो। पश्चिम के अधिसंख्य देशों ने बहुत पहले इस फार्मूले पर अमल बंद कर दिया है और स्कूलों में बच्चों को शारीरिक दंड और मानसिक यातना दिए जाने के खिलाफ कड़े कानून बना दिए हैं। सुधार और अनुशासन के नाम पर बच्चों को दिए जाने वाले दंड को अंग्रेजी में कारपोरल पनिशमेंट कहा जाता है। बदकिस्मती से हमारे देश में बच्चों को कारपोरल पनिशमेंट से बचाने के लिए कानून तो बन गया है, लेकिन दंड देने की प्रथा अब भी कायम है। अनुशासन के नाम पर कभी—कभी सजा की तमाम हदें और मर्यादाएं तोड़ डाली जाती हैं। बच्चों को एक-दूसरों से पिटवाना, उन्हें स्वमूत्रपान के लिए मजबूर करना, अंधेरे कमरे में बंद कर देना, इतना पीटना कि उसके कान का पर्दा फट जाए, जैसी सजाएं आये—दिन सुर्खियां बनती हैं। कुछ दिन पूर्व राजस्थान के भीलवाड़ा के एक ग्रामीण क्षेत्र में सरकारी स्कूल में 38 बच्चियों के बाल काटे जाने की घटना ने एक बार फिर हमारे शिक्षा प्रणाली के आगे सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। जिले के सुवाणा ब्लॉक में बोरड़ा गांव के बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय की इन मासूमों का कुसूर सिर्फ इतना था कि दो चोटी कर आने के लिए प्रिंसिपल के फरमान की उन्होंने अनदेखी की थी। प्रिंसिपल और तीन टीचरों ने मिलकर रोती—बिलखती 35 लड़कियों के बालों पर कैंची चला दी। बाद में जब अभिभावकों ने विरोध किया तो प्रिंसिपल को सस्पेंड और तीनों टीचरों को एपीओ कर दिया गया, लेकिन जिन बच्चियों के साथ यह अमानवीय व्यवहार किया गया है, वे ताउम्र इस कसैली यादों के साथ जिएंगी।