सत्यजीत चौधरी
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जाट आरक्षण का राग छेड़कर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने फिर से इस मुद्दे में उबाल ला दिया है। केंद्रीय नौकरियों में ओबीसी कोटे के तहत जाटों को रिजर्वेशन दिए जाने के मांग कर रहे खांटी जाट, कार्पोरेटी जाट, सियासी जाट और दीगर जाट अब चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार इसपर फैसला ले ले। आश्वासन का च्यूइंगम अब जाट नहीं चबाने वाले।
वैसे बारीकी से देखा जाए तो पिछले कई सालों से जाट आंदोलन एक ही स्थान पर कदमताल कर रहा है। केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस से लेकर प्रमुख विपक्षी दल भाजपा और उत्तर प्रदेश में अजित सिंह से लेकर मायावती तक चाहते हैं कि जाटों को आरक्षण सुनिश्चित किया जाए। लेकिन साथ ही ये सभी पार्टियां यह भी जानती हैं कि जाटों को आरक्षण का आश्वासन तो दिया जा सकता है, लेकिन हकीकत में ऐसा किया गया तो उत्तर प्रदेश लपटों से घिर जाएगा। इस हकीकत को अजित सिंह बखूबी समझ रहे हैं और शायद यही वजह है कि इस मुद्दे पर वह चुप्पी साधे बैठे हैं, पर जाट राजनीति की दुकान चलाने वाले सक्रिय हैं। इनमें से सबसे ज्यादा एक्टिव हैं कार्पोरेटी जाट नेता। केंद्र के साथ अपने संघर्ष को विराम देने के बावूद कार्पोरेटी जाट नेता धड़ाधड़ दौरे कर रहे हैं। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की खाक छानते फिर रहे हैं। दरअसल दौरे करते रहने कुछ कार्पोरेटी जाट नेताओं की मजबूरी है। मिसाल के तौर पर अखिल भारतीय जाट संघर्ष समिति को लें। नेतृत्व के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश और हरियाणा में समिति का एक-बटा दो और दो बटा चार हो चुका है। बची—खुची सियासी जमीन को बचाए रखने के लिए दौरे करना जरूरी हो गया है।