सोमवार, 28 अप्रैल 2014

'मोदी ' संघ का मास्टर स्ट्रोक


सत्यजीत चौधरी
    चुनावी बिसात पर तेजी से चालें चली जा रही हैं। शह और मात के इस खेल में सेहरा किसके सिर बंधेगा, इसका फैसला तो 16 मई को होगा, लेकिन अलग तरह से लड़े जा रहे इस चुनाव ने कई चीजें बदलकर रख दी हैं। राष्ट्रीय फलक पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का उदय इनमें एक बड़ी घटना है। मोदी आए और बहुत ही कम समय में उन्होंने सोच से लेकर लड़ाई के तरीके तक बदल डाले। 13 सितंबर, 2013 को भाजपा द्वारा मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद कई बड़े बदलाव दिखे हैं। खुद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के ढांचे में बढ़ा परिवर्तन दिखने लगा है। संघ के गणवेश को लेकर नाक-भौं सिकोडऩे वाला युवा वर्ग अब संघ की विचारधारा का कायल होता जा रहा। संघ की शाखाआें में युवाआें की सहभागिता में वृद्धि दर्ज की गई है। 
 
 दरअसल देखा जाए तो मोदी के पक्ष में जो हवा चल रही है, उसके पीछे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की दो साल की मेहनत और रणनीति का बड़ा रोल है। संघ ने पिछले दो साल में जमीनी स्तर पर यूपीए सरकार में भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल बनाया, उसने जनता में कांग्रेस और उसके घटक दलों के प्रति नाराजगी बढ़ी। खास बात यह है कि संघ ने कुल मिलाकर 120 सीटों वाले उत्तर प्रदेश और बिहार पर खास तौर से फोकस किया। इस काम में संघ के आनुषांगिक संगठनों, खास तौर से विद्यार्थी परिषद और भारतीय जनता युवा मोर्चा ने बड़ी भूमिका अदा की। आज अगर युवाआें का एक बड़ा वर्ग मोदी का दीवाना है तो उसका श्रेय संघ की युवाआें को जागृत करने की रणनीति को जाता है। 

सोमवार, 21 अप्रैल 2014

तार-तार होता आप का तिलिस्म !

सत्यजीत चौधरी 
" आप अगर आप न होते तो भला क्या होते, लोग कहते हैं कि पत्थर के मसीहा होते "
      भारत के राजनीतिक इतिहास में शायद ही किसी एेसी पार्टी का उल्लेख मिले जिसका जन्म दूसरी पार्टियों का होश फाख्ता करने वाला हो और तेजी से जवानी की सीढ़ी चढ़ते हुए जो होश खोकर अपना सत्यानाश करा बैठे। जी हां, आम आदमी पार्टी की बात हो रही है। संक्षेप में कहें तो रामराज के खाके के साथ प्रस्तुत हुई आप का तिलिस्म बड़ी तेजी से तार-तार हो रहा है। तस्वीर धीरे-धीरे नहीं, बल्कि बड़ी तेजी से साफ हो रही है। पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल में एक खास तरह का उतावलापन है, जो बताता है कि उन्हें भ्रष्टाचार और राजनीतिक कदाचार के खात्मे और आडंबरविहीन साफ-सुथरे सिस्टम की स्थापना के वजाये कुर्सी की अधिक चिंता है। यही बेचैनी उनकी कोर टीम के सदस्यों में भी दिखाई दे रही है।
      आम आदमी पार्टी करप्शन के खिलाफ एक ठोस ब्यू प्रिंट के साथ हाजिर हुई थी। भ्रष्टाचारी को चौराहे पर सरेआम फांसी पर लटका देने, वसूली सुनिश्चित करने से लेकर जेल में डाल देने का एेलान करने वाली आम आदमी पार्टी की इस वैचारिक आक्रामकता के प्रति युवा वर्ग और शहरी आबादी का एक तबका आकर्षित भी हुआ, लेकिन समय के साथ मुलम्मा उतरता चला गया। पार्टी के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताआें पर जब भ्रष्टाचार के आरोप सही पाए गए तो उन्हें सिर्फ पार्टी से निष्कासित कर काम चला लिया गया। इसी से पता चलता है कि आप की कथनी और करनी में कितना अंतर है। बाकी जगह भी तो यही होता है। किसी पर भ्रष्टाचार का आरोप सही पाया जाता है तो उसे निलंबित या ज्यादा से ज्यादा निष्कासित कर दिया जाता है। सवाल यह उठता है कि दूसरों के भ्रष्टाचार के खिलाफ आप के तीखे तेवर आखिर अपने लोगों के भ्रष्टाचार पर नरम क्यों है?