शनिवार, 31 दिसंबर 2011

वैश्विक विरोध और आम आदमी

सत्यजीत चौधरी
     अमेरिका और यूरोप के कई देशों में इस साल सर्दियों की मस्ती नहीं है, गुस्से की गर्माहट है। खून जमा देने वाली सर्द हवाओं के बीच लोग क्रिसमस मनाने के लिए नहीं, बल्कि पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ सड़कों पर डेरे डाले बैठे हैं। लंदन के एक चर्चयार्ड में सेंट पॉल्स कैंप के आंदोलनकारियों को हटाने के लिए सरकार कोर्ट की शरण में जा पहुंची है। अमेरिका में भी विरोध -प्रदर्शन जारी हैं। शेयर मार्केट, मुक्त बाजार और पूंजीवादी अर्थतंत्र के विरुद्ध लोगों की नाराजगी सातवें आसमान पर है। यों कह सकते हैं कि लंबे समय के बाद दुनियाभर में बहुसंख्यक कामकाजी आबादी अल्पसंख्यक पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ उठ खड़ी हुई है। यह एक फीसद अमीरों के खिलाफ निनान्बे फीसद आम आदमी की जंग है।
हर तरफ लोग गुस्से से लबालब हैं। लंदन के पूंजीवाद विरोधी प्रर्दानकारियों ने खनन क्षेत्र की बड़ी कंपनी एक्स्ट्रॉटा के मुख्यालय पर धावा बोला और कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को निशाना बनाने की कोशिश की। 

...तो फिर याद आए मुसलमान

सत्यजीत चौधरी
लोकसभा के चुनाव हों या राज्यों में विधानसभा के, उनकी डुगडुगी बजते ही मुसलमान एकदम से वाजिब और अव्वल हो जाते हैं। यूपी समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के ऐलान के साथ फिर सब पार्टियों को मुसलमानों की याद सताने लगी है। पहला पत्ता चला मायावती ने। उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों को आरक्षण देने की मांग की थी। केंद्र ने मायावती को जवाब भेजा कि जैसे कि अन्य राज्यों में है, उत्तर प्रदेश सरकार भी अपने यहां मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए स्वतंत्र हैं। गेंद पाले में वापस देख मायावती ने चुप्पी साध ली। इस बीच, यूपीए सरकार ने तुरुप का पत्ता चला और सरकारी नौकरियों और शिक्षा में मुस्लमानों को 4.5 फीसद का आरक्षण देकर शेष दलो को भौचक्का कर दिया।

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

किसान दिवस : रस्मों की अदायगी

सत्यजीत चौधरी 
    दीगर रस्मों की तरह हर साल चौधरी चरण सिंह की जयंती 23 दिसंबर को किसान दिवस मनाकर हम रस्म की अदायगी करते हैं। उनकी समाधि पर कुछ फूल—मालाएं चढ़ाई जाती हैं। कुछ सेमिनार होते हैं। बाकी अगले साल।किसानों के मसीहा चौधरी साहब के अंदर ताउम्र एक खांटी किसान आबाद रहा, लेकिन खेती के उन्नत तरीकों और काश्त की मार्केटिंग के आधुनिक पैटर्न के वे शुरू से कायल रहे। वह कहा करते थे कि अन्नदाता (किसान) सुखी तो देश सुखी। काश्तकार से जुड़ी समस्याओं के निराकरण के लिए चरण सिंह के सुझए रास्तों पर अमल किया गया होता, तो देश और किसान दोनों खुशहाल होते।

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

सात समंदर पार भी मेरठ की खुशबू का अहसास

सत्यजीत चौधरी
 एक हस्तिनापुर मेरठ में बसता है जो इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में अंकित है और एक हस्तिनापुर सात समंदर पार भी बसता है, जहां की खुशबू और भारतीय अंदाज बरबस ही लोगों को अपना दीवाना बना लेता है। यहां न केवल भारतीय देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं, बल्कि 12 एकड़ में बने इस हस्तिनापुर में हर रोज माहौल भक्तिमय होता है।
    यहां एक दर्जन से ज्यादा भारतीय देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के साथ ही अर्जेटीना के भी कई देवी- देवताओं की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। खास बात यह है कि वहां भी भगवान गणोश, कृष्ण, सूर्य, नारायण और शिव की प्रतिमाओं के लिए अलग से मंदिरों का निर्माण किया गया है। चूंकि यह हस्तिनापुर है, इसलिए यहां भी पांडवों के मंदिर मौजूद हैं।

रविवार, 18 दिसंबर 2011

राजनीतिक हड़बड़ी नहीं धैर्य का कमाल

सत्यजीत चौधरी
    पिता से मिली विरासत में जिन चीजों को अजित सिंह ने बड़े जतन से संभाला है, वह है धैर्य। कोई भी सियासी सुनामी आए, अजित सिंह निरपेक्ष बने रहते हैं। फिर अचानक दांव चलकर सबको चौंका देते हैं। कभी किसी ने छोटे चौधरी को राजनीतिक हड़बड़ी में नहीं देखा। देश की राजनीति में वह सबको जानते हैं और सब उनको। वह सबको आजमा चुके हैं और सब उनको। फिर भी सियासी पार्टियां उनसे गठबंधन करने को बेचैन रहती हैं।

बुधवार, 14 दिसंबर 2011

बदलेगा अल्पसंख्यक समाज

सत्यजीत चौधरी
18 दिसंबर को पूरे देश में ‘माइनॉरिटी राइट्स दिवस’ मनाया जाएगा। 1992 से शुरू हुआ यह सिलसिला अपने 20वें साल के प्रवेश में खास हो गया है। इसके साथ ही अल्पसंख्यकों से जुड़े शिक्षा, रोजगार और अन्य मुद्दे भी तेजी पकड़ेंगे। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से पूर्व इस दिन का महत्व बढ़ जाता है। संभवत: इसीलिए केंद्र सरकार की ओर से एक बार फिर अल्पसंख्यकों को रिझने की कोशिश शुरू हो गई है।
अल्पसंख्यकों को सुविधाओं में बढ़ोतरी के मकसद से केंद्र ने सच्चर समिति का गठन किया था। इस समिति की सिफारिशों को अमल में लाने की कवायद शुरू हो गई है। इन सिफारिशों पर अमल किया गया, तो दस साल बाद अल्पसंख्यक तबका ज्यादा शिक्षित, ज्यादा कामयाब और ज्यादा रोजगार वाला हो सकता है।

कांग्रेस ने बढ़ाई सपा की बेचैनी

सत्यजीत चौधरी,
सपा की तिलमिलाहट इस समय चरम पर है।समाजवादी पार्टी को कांग्रेस ने दो बड़ी चोट दी है। पहला, रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाकर और दूसरा सपा के वोट बैंक में सेंध लगाकर नाराज चल रहे बुजुर्ग नेता रशीद मसूद को अपने पाले में शामिल कर। उधर, मुलायम सिंह यादव भी कांग्रेस को करारा झटका देने के मूड में हैं। सूत्रों का कहना है कि सपा केंद्र सरकार से समर्थन वापसी समेत कई अन्य विकल्पों पर विचार कर रही है।

सोमवार, 12 दिसंबर 2011

अब छोटे चौधरी के सामने बड़ी चुनौतियां

सत्यजीत चौधरी
      चौधरी अजित सिंह एक बार फिर सुर्खियों में हैं, उन्हीं वजहों से जिनसे वह अकसर रहते हैं, यानी गठबंधन। लंबे अर्से के बाद छोटे चौधरी कांग्रेस और कांग्रेस छोटे चौधरी को आजमाने जा रहे हैं। इस बार मामला कई कोणों से दिलचस्प है। अजित सिंह ने ऐसे मौके पर कांग्रेस का हाथ थामा है, जब केंद्र सरकार करप्शन और उसे लेकर देश•ार में हो रहे विरोध की वजह से मुसीबत में है। उत्तर प्रदेश विधानसभा  के चुनाव भी सिर पर हैं और लाख कोशिशों के बावजूद राहुल गांधी का जादू सिर पर चढ़ने को तैयार नहीं है। कांग्रेस अजित की मदद से यूपी में कुछ सीटों पर निशाना साधने की सोच रही है। तीसरा मामला क्रेडिड का है। जाट अजित सिंह पर निसार हैं और उनके सिवा किसी और को अपना नेता मानने को तैयार नहीं हैं। जाटों को आरक्षण देने के मुद्दे पर सरकार पर भारी दवाब है। अजित सिंह चाहते हैं कि केंद्र उनकी शर्त पर जाटों के लिए आरक्षण की घोषणा करे।

रविवार, 11 दिसंबर 2011

यह दिल्ली है, हिंदुस्तान का दिल

                                              " राजधानी के सौ साल पर विशेष " 
सत्यजीत चौधरी
यह दाग की देहली है यहां हर कूचे , हर गली में गालिब की रूह बसती है। मीर की शायरी यहीं परवान चढ़ी। यह हिंदुस्तान का दिल है। यह दिल्ली है। कभी यह इंद्रप्रस्थ हुआ करती थी, राजाओं की राजधानी। मुगलों ने भी पसंद किया। बाद में अंग्रेजों ने इस शहर की खूबसूरती में चार चांद लगाए। सौ साल पहले जहां ट्रामें दौड़ा करती थीं, वहां अब मेट्रो दौड़ रही है। विभिन्न राज्यों से आए लोगों ने इसे अपनी भाषा और संस्कृति से और खूबसूरत बनाया। 
 इन सौ सालों के दौरान दिल्ली फलती और फैलती गई, लेकिन इंसानी नसों के तरह फैली पतली गलियां और तंग कूचों में आज भी पुरानी रवायतें आबाद हैं। आज भी चांदनी चौक में परांठों वाली गली से व्यंजनों की उठती खुशबू लोगों को अहसास दिलाती है कि अब भी उनकी विरासत का काफी कुछ सुरक्षित है। गली कासिम जान और कूचा चुहिया मेम साहब का में अब भी बकरियां मिमयाती हैं और बिरयानी और कबाब की खुशबू तबियत खुश कर देती है। चांदनी चौक और सदर बाजार आज भी दिल्ली ही नहीं पूरे उत्तर भारत की जरूरत को पूरा करते हैं। 
दिल्ली की पुरानी हवेलियों को बिल्डरों की नजर लग गई। अस्सी के दशक से एक-एक कर हवेलियों पर बिल्डर काबिज होते चले गए। एक वक्त ऐसा भी आया, जब बल्लीमारान में गालिब की हवेली पर कोयले की टाल खुल गई थी।

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

..ताकि चलता रहे विकास का पहिया

सत्यजीत चौधरी
जी में आता है ये मुर्दा चांद-तारे नोच  लूं
इस किनारे नोच लूं, उस किनारे नोच  लूं
एक-दो का जिक्र क्या, सारे के सारे नोच लूं
ऐ गम—ए—दिल क्या करूं, ऐ वहशत—ए—दिल क्या करूं....!!!

       असरारुल हक मजाज यानी मजाज लखनवी की नज्म के इस टुकड़े से यह लेख शुरू करने के पीछे मंशा सिर्फ यह है कि देश में मौजूदा हालात काफी कुछ उनकी जुनूनी कैफियत से मेल खा रहे हैं। महंगाई,बेजोरगारी और अनिश्चितता ने आम भारतीय में कुछ ऐसी ही झुंझलाहट और तड़प भर दी है। आजादी के बाद से लेकर अब तक ऐसी स्थिति कभी पैदा नहीं हुई थी। बुनियादी ढांचागत क्षेत्र में भारी गिरावट, वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में आर्थिक विकास दर का घटकर 6.9 रह जाना और इस सबके के चलते महंगाई का आसमान पर बैठकर नीरो की तरह बांसुरी बजाना बेचैन कर देने वाली घटनाएं हैं।

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

महंगाई, काला धन, एफडीआई...हंगामा, और संसद की आठ बैठकें समाप्त

-अब केवल 12 बैठक शेष, लोकपाल से लेकर कई और महत्वपूर्ण विधेयक अटके
-महंगाई और काला धन भी बन रहे हैं संसद की कार्रवाई में रोड़ा
सत्यजीत चौधरी
     संसद के शीतकालीन सत्र में अन्ना ही नहीं पूरे भारत का सपना जनलोकपाल की तर्ज पर सरकारी लोकपाल लाने का देखा जा रहा था। इसी आश्वासन के बाद अन्ना ने रामलीला मैदान की सरजमीं से अपना अनशन खत्म कर देश को जीत की बधाई दी थी। माना जा रहा था कि संसद की शीतकालीन सत्र में लोकपाल बिल पास कर अन्ना ही नहीं पूरे देश की जनता के साथ एक इंसाफ होगा। लेकिन केंद्र सरकार के एफडीआई पर अड़ियल रवैये, भरष्टाचार, महंगाई और कालाधन जैसे मामलों की वजह से अभी तक आठ बैठकें हंगामे की भेंट चढ़ चुकी हैं। इस सत्र में कुल 20 बैठकों का आयोजन होना था, ऐसे में आठ बैठकों का बेकार जाना कई महत्वपूर्ण विधेयकों को लंबित की सूची में डाल सकता है।

डांवाडोल रुपये पर सवार बाजार

सत्यजीत चौधरी 
"भारत की अर्थव्यवस्था में यह मंदी का दौर है। इसका कोई आसान समाधान नहीं है। असर बढ़ सकता है। विदेश में जो हो रहा है, उसके मद्देनजर सरकार बेहतर काम नहीं कर पा रही है। किसी तरह के बड़े प्रयास करके सरकार घाटा बढ़ाना नहीं चाहती। योजना आयोग के उपाध्यक्ष का साफ संकेत है कि वित्तीय घाटा अभी और बढ़ सकता है।"
   एक बार फिर शेयर बाजार, बेजारी के आलम में है। रात को खरीदे जाने वाले शेयर सुबह होते ही कितने का चूना लगा दें, अंदाजा लगाना भी मुश्किल हो गया है। सुपर पॉवर अमेरिका का शेयर बाजार हो या चीन का, हर जगह मंदी ने निवेशकों को गम देना शुरू कर दिया है। इस बीच भारत में रुपये की घटती वैल्यू ने निवेशकों से लेकर आम जनता तक के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिका का डॉलर तेजी से मजबूत हो रहा है, जिससे रुपया कमजोर हो रहा है। ‘यूरो’ भी रुपये की माफिक तेजी से कमजोर पड़ रहा है। यूरोप की आर्थिक स्थिति के दीवालिया होने से लगातार अमेरिका को मजबूती मिल रही है। मतलब यह नहीं है कि अमेरिका की आर्थिक स्थिति ज्यादा मजबूत होने से डॉलर मजबूत हो रहा है। दरअसल, डॉलर और यूरो के बीच ऐसा तालमेल है, कि एक मजबूत तो दूसरा कमजोर होता है। पिछले दिनों अमेरिकी डॉलर की गिरती वैल्यू के लिए यूरो की मजबूती मुख्य वजह थी। डॉलर की मजबूती की एक और मुख्य वजह है कि दुनियाभर में जितना निवेश हो रहा है, वह डॉलर में ही किया जा रहा है। पूरा कारोबार अंत में डॉलर पर आकर टिक गया है। डॉलर की ताकत तभी बढ़ती है, जब उसके मुकाबले बाकी लगभग 192 देशों की मुद्राएं कमजोर होने लगती हैं।