गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

जाट आरक्षण पर राजनीति एक तीर से दो निशाने

सत्यजीत चौधरी 
   कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना का यह सटीक उदाहरण है। यानी जाट आरक्षण को लेकर आंदोलन हरियाणा के हिसार में हो रहा है और परेशान उत्तर प्रदेश में अजित सिंह हो रहे हैं। हांलाकि छोटे चौधरी पके हुए सियासतदां हैं। उलझन जाहिर नहीं होने दे रहे हैं, लेकिन वह जानते हैं कि हरियाणा में भड़काए गए इस आंदोलन से यूपी जाट लैंड अछूता नहीं रहेगा। 
हरियाणा में जारी इस आंदोलन की स्क्रिप्ट भी अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति वाले यशपाल मलिक ने ही लिखी है। यह बात दीगर है कि हरियाणा में जाट आंदोलन कोई दर्जनभर खांचों में बंट चुका है। कभी यशपाल मलिक के सिपहसालार रहे हवा सिंह सांगवान अब अपना अलग आंदोलन चला रहे हैं। इसके अलावा कई छोटे-छोटे संगठन अपनी ढफली अपने राग के साथ सक्रिय हैं।
खैर, यशपाल मलिक राजनीतिज्ञ नहीं हैं, लेकिन सियासी आइडिये के मामले में वह अच्छे-अच्छों की कान कतरने की महारत रखते हैं। उन्होंने उस वक्त हरियाणा में आरक्षण की आग सुलगाई जब उत्तर प्रदेश में चुनाव के दो चरण शेष रह गए। दोनों चरणों में जाट लैंड वाले हिस्से भी आते हैं। श्री मलिक अगर उत्तर प्रदेश में धरना—प्रदर्शन और जाम आयोजित करते तो चुनाव आयोग की कोप का भाजन बनना पड़ता। उन्होंने सोचा तोते की गर्दन कहीं से मरोड़ी जाए, दर्द तो जादूगर (अजित सिंह) को ही होगा, लिहाजा उन्होंने हिसार को चुना। तीर सही निशाने पर लगा है। विपक्ष ने अजित सिंह को घेरना शुरू कर दिया है। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मोहन सिंह का कटाक्ष काबिल—ए—गौर है कि सत्ता में एंट्री मारते समय अजित सिंह ने जाटों के लिए आरक्षण की हिमायत कर दी थी, लेकिन अब मौनी बाबा बन गए हैं।
वैसे देखा जाए तो जाटों और अजित सिंह को अलग कर नहीं देखा जा सकता। अजित की कुल जमा ताकत जाट ही हैं। जाट लैंड से हमेशा उनकी पाट्री राष्टÑीय लोकदल को विधानसभा या लोकसभा की सीटें मिलती हैं। जाटों में उनकी इज्जत के पीछे वह खुद न होकर उनके पिता स्व. चौधरी चरण सिंह हैं। बड़े चौधरी के इस छोरे पर जाट अब तक जान छिडकते आ रहे थे, लेकिन लगता है कि तिलिस्म अब टूट रहा है। अजित सिंह की जाटों से दूरी बढ़ाने में यशपाल मलिक भी महती भूमिका अदा कर रहे हैं। 
अगर यशपाल मलिक के पॉलीटिकल प्रोफाइल को खंगाला जाए तो शुरू में वह एक समग्र जाट आंदोलन का नेतृत्व करते दिखे थे। वह जाट युवाओं की बात करते थे। उनके लिए बढ़िया पब्लिक स्कूल खोलने के ख्वाब बुनने दिखाई देते थे। जाट बच्चों को अपराध की भटकन से खींचकर रोजगार से जोड़ने का खाका खींचते दिखाई देते थे। साथ—साथ वह जाटों के लिए आरक्षण की बात भी करते चलते थे, लेकिन संगठन में वह बरगद की छाए रहे। जिस नेता ने पनपने की कोशिश की, उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया। हवा सिंह सांगवान, एचपी सिंह परिहार , बाबु अमन सिंह और पुष्पेन्द्र सिंह समेत कई वरिष्ठ नेताओं ने श्री मलिक की नीतियों के खिलाफ बगावत की और उन्हें छोड़कर चले गए, लेकिन अपनी राजनीतिक कौशल से श्री मलिक ने जल्द नए पियादे पैदा कर लिए।
इन्हीं यशपाल मलिक की निगाहें अब अगर अजित सिंह के सिंहासन पर हैं पर तो इसमें हैरत नहीं होनी चाहिए, क्योंकि चौधरी चरण सिंह की विरासत संभालने के बाद से अजित सिंह सिर्फ सत्ता की परिक्रमा करते दिखाई दे रहे हैं। वह जाट आरक्षण की बात करते तो हैं, लेकिन सिर्फ जरूरत पड़ने पर। जैसे इस बार केंद्र में शामिल होने के बाद अजित सिंह ने सिर्फ एक बार जाटों को आरक्षण दिए जाने के मामले में पहल दिखाई है। वह कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह के साथ इस मामले को लेकर गृह मंत्री पी. चिदंबरम से मिले थे, लेकिन फिर उन्होंने चिर-परिचित मौन।
अब हालत यह है कि हरियाणा में अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के बैनर तले हिसार में रेलवे ट्रैक पर भडारा लगा है, रागिनियां गार्इं जा रही हैं। भाषण हो रहे हैं। इस मामले में अब इनेलो के मुखिया ओमप्रकाश चौटाला भी जाटों के समर्थन में मैदान में कूद चुके हैं। यह बात दीगर है कि अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति की हरियाणा में हवा निकालने के लिए भी बड़ी संख्या में विरोधी जुट गए हैं। अखिल भारतीय जाट महासभा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश मान ने तो यहां तक कह दिया है कि जाट आरक्षण के नाम पर राज्य में वर्चस्व की राजनीति हो रही है तथा यापाल मलिक गुट जाटों को को आरक्षण के नाम पर हरियाणा को आग में झोंकना चाहता है।
दरअसल देखा जाए तो इस आंदोलन से यशपाल मलिक एक तीर से दो निशाना साध रहे हैं। पहला विधानसभा चुनाव में अजित सिंह को हवा निकालना और दूसरा पिछले साल मय्यड़ जाट आंदोलन में फंसे नेताओं के खिलाफ मुकदमे वापस लेना।

कोई टिप्पणी नहीं: