सत्यजीत चौधरी
राजनीति और रुतबे का चोली—दामन का साथ है। दोनों का काम एक-दूसरे के बिना नहीं चलता। समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान और मुलायम सिंह का हाथ छुड़ा कांग्रेस का साथ पकड़ने वाले काजी रशीद मसूद पर यह जुमला एकदम फिट बैठता है। आजम काफी पहले घर लौट आए थे, जबकि रशीद मसूद ऐन विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हुए। अब दोनों नेताओं को खुद को साबित करना होगा। अगले दो चरणों में होने जा रहे मतदान में सिद्ध हो जाएगा कि इस दोनों नेताओं के पाले बदलने या घर लौटने के फैसले कितने सही थे और वे अपनी पार्टियों के कितने काम आ सके हैं।
दरअसल आजम और काजी रशीद का मामला एक सिक्के के दो पहलू की तरह है। आजम खान कल्याण सिंह की पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह से दोस्ती खटक रही थी। पिछले लोकसभा चुनाव में आजम की नहीं सुनी गई। अमर सिंह से खटपट बढ़ गई थी, लिहाजा उन्होंने सपा को अलविदा कह दिया। कुछ दिन बाद अमर सिंह भी सपा से निकल गए या निकाल दिए गए। पार्टी में पैदा हुए इस वैक्यूम को झट रशीद मसूद ने भर लिया और मुलायम के सेकेंड मैन बन गए। उनका रुतबा बढ़ गया। इस बीच, पार्टी को अहसास हुआ कि बाहर रहकर आजम काफी तोड़फोड़ कर रहे हैं और विधानसभा चुनाव में वह मुस्लिम वोट बैंक को बिदका देंगे। यादव फैमिली में राय—मशविरा हुआ और आजम को मनाने की कवायद शुरू हो गई। इधर आजम को किसी ने चारा नहीं डाला था, लिहाजा वह पार्टी में लौट आए। आजम के लौटते ही रशीद मसूद का रुतबा दप से बुझ गया। आजम की पूछ होने लगी और काजी साहब के फैसले पलटे जाने लगे। इसके बाद घुटन इतनी बढ़ी कि रशीद मसूद ने नया घर तलाशना शुरू कर दिया।
इस बीच, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक कद्दावर मुस्लिम लीडर की तलाश कर रही कांग्रेस ने रशीद मसूद को लपक लिया। अब उन्हें पार्टी में बड़ी इज्जत बख्शी जा रही है। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी उन्हें साथ लिए घूम रहे हैं। रशीद मसूद के भतीजे इमरान को कांग्रेस ने टिकट दे दिया।