सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

रशीद मसूद की अग्नि परीक्षा !

सत्यजीत चौधरी
 राजनीति और रुतबे का चोली—दामन का साथ है। दोनों का काम एक-दूसरे के बिना नहीं चलता। समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान और मुलायम सिंह का हाथ छुड़ा कांग्रेस का साथ पकड़ने वाले काजी रशीद मसूद पर यह जुमला एकदम फिट बैठता है। आजम काफी पहले घर लौट आए थे, जबकि रशीद मसूद ऐन विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हुए। अब दोनों नेताओं को खुद को साबित करना होगा। अगले दो चरणों में होने जा रहे मतदान में सिद्ध हो जाएगा कि इस दोनों नेताओं के पाले बदलने या घर लौटने के फैसले कितने सही थे और वे अपनी पार्टियों के कितने काम आ सके हैं।
दरअसल आजम और काजी रशीद का मामला एक सिक्के के दो पहलू की तरह है। आजम खान कल्याण सिंह की पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह से दोस्ती खटक रही थी। पिछले लोकसभा चुनाव में आजम की नहीं सुनी गई। अमर सिंह से खटपट बढ़ गई थी, लिहाजा उन्होंने सपा को अलविदा कह दिया। कुछ दिन बाद अमर सिंह भी सपा से निकल गए या निकाल दिए गए। पार्टी में पैदा हुए इस वैक्यूम को झट रशीद मसूद ने भर लिया और मुलायम के सेकेंड मैन बन गए। उनका रुतबा बढ़ गया। इस बीच, पार्टी को अहसास हुआ कि बाहर रहकर आजम काफी तोड़फोड़ कर रहे हैं और विधानसभा चुनाव में वह मुस्लिम वोट बैंक को बिदका देंगे। यादव फैमिली में राय—मशविरा हुआ और आजम को मनाने की कवायद शुरू हो गई। इधर आजम को किसी ने चारा नहीं डाला था, लिहाजा वह पार्टी में लौट आए। आजम के लौटते ही रशीद मसूद का रुतबा दप से बुझ गया। आजम की पूछ होने लगी और काजी साहब के फैसले पलटे जाने लगे। इसके बाद घुटन इतनी बढ़ी कि रशीद मसूद ने नया घर तलाशना शुरू कर दिया। 
इस बीच, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक कद्दावर मुस्लिम लीडर की तलाश कर रही कांग्रेस ने रशीद मसूद को लपक लिया। अब उन्हें पार्टी में बड़ी इज्जत बख्शी जा रही है। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी उन्हें साथ लिए घूम रहे हैं। रशीद मसूद के भतीजे इमरान को कांग्रेस ने टिकट दे दिया।

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

जाट आरक्षण पर राजनीति एक तीर से दो निशाने

सत्यजीत चौधरी 
   कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना का यह सटीक उदाहरण है। यानी जाट आरक्षण को लेकर आंदोलन हरियाणा के हिसार में हो रहा है और परेशान उत्तर प्रदेश में अजित सिंह हो रहे हैं। हांलाकि छोटे चौधरी पके हुए सियासतदां हैं। उलझन जाहिर नहीं होने दे रहे हैं, लेकिन वह जानते हैं कि हरियाणा में भड़काए गए इस आंदोलन से यूपी जाट लैंड अछूता नहीं रहेगा। 
हरियाणा में जारी इस आंदोलन की स्क्रिप्ट भी अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति वाले यशपाल मलिक ने ही लिखी है। यह बात दीगर है कि हरियाणा में जाट आंदोलन कोई दर्जनभर खांचों में बंट चुका है। कभी यशपाल मलिक के सिपहसालार रहे हवा सिंह सांगवान अब अपना अलग आंदोलन चला रहे हैं। इसके अलावा कई छोटे-छोटे संगठन अपनी ढफली अपने राग के साथ सक्रिय हैं।

‘ओलंपिक 2012’ के लिए भारत का ‘ओपेक्स 2012’

सत्यजीत चौधरी
 लंदन में आयोजित होने जा रहे ओलंपिक खेलों के लिए इस बार भारत ने ज्यादा मजबूती के साथ मेडलों पर निशाना लगाने की योजना तैयार कर ली है। भारतीय खेल प्राधिकरण ने ओलंपिक में जाने वाले भारतीय खिलाड़ियों को निखारने से लेकर उन्हें लंदन तक पहुंचाने के लिए की जाने वाली तैयारी को ओपेक्स 2012 का नाम दिया है। खास बात यह है कि ओपेक्स यानी आपरेशन एक्सीलेंस फोर ओलंपिक के लिए सांई ने अपनी पूरी कार्ययोजना तैयार कर सरकार को भेज दी है। इस बार ओलंपिक की तैयारियों के मद्देनजर इस प्लान को बेस्ट माना जा रहा है।

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

हाशिए पर हरित प्रदेश

सत्यजीत चौधरी, 
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 28 फरवरी के चुनावी महासंग्राम के लिए सबने कमर कस ली है, लेकिन इस बार हरित प्रदेश से लेकर जमीन व जनता से जुड़े अन्य मुद्दे गौण दिखाई दे रहे हैं। पश्चिम उत्तर प्रदेश को पृथक राज्य बनाने के लिए संघर्ष करते आ रहे राष्ट्रीय लोकदल ने कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन करके इस मुद्दे को हाशिए पर पहुंचा दिया है। इसका कारण सीधा है कि जब चुनावी कार्ड खेलने के लिए मायावती सरकार ने उत्तर प्रदेश को चार हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव केंद्र की कांग्रेसनीत सरकार को भेजा, तो केंद्र से यह प्रस्ताव वापस भेज दिया गया। ऐसे में रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह भी यह कहने को मजबूर हैं कि अलग राज्य के लिए कांग्रेस पहले से ही दूसरा राज्य पुनर्गठन आयोग गठित करने की बात कह रही है। हरित प्रदेश की उत्तर प्रदेश के बंटवारे की मांग बेशक मायावती के प्रधानमंत्री को पत्र लिखने के बाद गरमाई हो, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाज के हर वर्ग के लोग अलग राज्य की मांग के लिए आंदोलन करते रहे हैं, जिनका नेतृत्व मुख्य रूप से रालोद ने किया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वकील इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लाने के लिए कई दशक से मांग करते आ रहे हैं।

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

सबसे बड़े प्रदेश की तकलीफ

सत्यजीत चौधरी 
     उत्तर प्रदेश की चुनावी रणभेरी के बारे में एक कहावत चरितार्थ है कि यहां सुबह का सूरज नई उम्मीद लेकर आता जरूर है, लेकिन रात के अंधेरे में जो बदलाव होते हैं, वह पलभर में पूरी सत्ता और राजनीतिक पार्टियों पर भारी साबित होते हैं। सबसे पहले इसे दुनिया के नजरिए से देखते हैं। अगर उत्तर प्रदेश को देश मान लिया जाए, तो लोकतंत्र के लिहाज से यह दुनिया के 172 देशों में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक चुनाव है। उत्तर प्रदेश में 41 मुख्यमंत्री बदल चुके हैं।
इनमें से केवल गोविंद बल्लभ पंत, संपूर्णानंद और मायावती ने ही सत्ता के पांच साल पूरे किए हैं। 33वां चुनाव देख रही यूपी की जनता ने 16 विधानसभा और 17 लोकसभा के चुनाव में हिस्सेदारी की है। यह संख्या पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे पुराने राज्यों से भी ऊपर है। इतना बड़ा राज्य, इतने मतदाता और इतनी बड़ी संख्या में नेता हों, तो भला राजनीति चरम पर होगी ही। इस बार भी राजनीतिक उठापटक तेज है। जाति, धर्म व समुदाय के वोट पर कब्जे की कवायद है, तो नए फंडे भी हैं, जिनमें राजनीतिक लोग कामयाबी की किरण देख रहे हैं।

मंगलवार, 31 जनवरी 2012

मुद्दों की आक्सीजन पर जिंदा सियासी पार्टियां

सत्यजीत चौधरी
उत्तर प्रदेश समेत पांचों राज्यों में चुनाव अभियान ने रफ्तार पकड़ ली है। वादों और इरादों का बाजार गर्म है। मुद्दों पर धार चढ़ाई जा रही है। इस बार सभी दलों के पास एक साझा मुद्दा है—भष्टाचार। इसके अलावा कुछ स्थानीय मुद्दे हैं। कहने का मतलब यह है कि चुनाव कैसा भी हो, बिना मुद्दों के नहीं लड़ा जाता। चुनाव अगर एवरेस्ट है तो मुद्दे आॅक्सीजन। जहां तक उत्तर प्रदेश का सवाल है, यहां राजनीति हमेशा से ही बड़े और गंभीर मुद्दों के इर्द-गिर्द परिक्रमा करती है। मुद्दे नेताओं को जिंदा रखते हैं। ये अगर खत्म हो जाएं तो उनकी राजनीति के आगे बढ़ा सवालिया निशान लगने का खतरा पैदा हो जाता है। उत्तर प्रदेश में सियासी पार्टियों ने ऐसे मुद्दे गढ़े जिनके राष्टÑव्यापी प्रभाव रहा। राममंदिर, मंडल कमीशन जैसे कुछ मुद्दे ऐसे रहे जिन्होंने देश को धधका दिया। हरित प्रदेश पश्चिमी यूपी के एक बड़े हिस्से के लिए पिछले कई सालों से लॉलीपॉप का काम कर रहा है। इसके अलावा प्रदेश में गन्ना, भूमि अधिग्रहण, खाद-बीज-डीजल की महंगाई, सुशासन, सर्वजन हिताय जैसे मुद्दे राजनेताओं के चहेते रहे हैं।

सोमवार, 30 जनवरी 2012

चारू चौधरी संभालेंगी जयंत के चुनाव की कमान

सत्यजीत चौधरी
 रालोद नेता और सांसद जयंत चौधरी के चुनाव लड़ने के ऐलान के साथ ही मथुरा की मांठ सीट एक वीआईपी सीट में तब्दील हो गई है। अब यह चुनाव रालोद के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। सूत्र बताते हैं कि स्थानीय नेताओं के दबाव में भावुक होकर जयंत ने हां तो कर दी है, लेकिन कांग्रेस के साथ पहले से टाईअप कार्यक्रम के चलते जयंत को प्रदेश में कई विधानसभा क्षेत्रों में चुनावी सभाएं करनी हैं। ऐसे में वह मांठ में ज्यादा समय नहीं दे पाएं। मुश्किल से वह चार-पांच दिन ही मांठ में दे पाएंगे। चर्चा है कि इस स्थिति में जयंत की पत्नी श्रीमती चारू चौधरी पति की मदद में आगे आई हैं। वह पति के लिए वोट मांगेंगी। चारू मांठ विधानसभा क्षेत्र की महिलाओं के बीच प्रचार के साथ ही कार्यकर्ताओं की कमान भी संभालेंगी। 

रविवार, 29 जनवरी 2012

मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखता एक सियासी कुनबा

सत्यजीत चौधरी
      करीब—करीब अपनी हर चुनावी सभा में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी एक बात बड़ी प्रमुखता से कहते हैं-सरकार बने या न बने, मैं उत्तर प्रदेश से जाना वाला नहीं। यह राहुल की मूक स्वीकारोक्ति है कि पिछले तीन दशक से भी ज्यादा समय से उत्तर प्रदेश में सत्ता वापसी का ख्वाब पाले बैठे कांग्रेसी इस विधानसभा चुनाव में भी कुछ ज्यादा नहीं करें। लेकिन प्रदेश के चुनावी समर में कांग्रेस के साथ जूझ रहे रालोद के नेता मुंगेरी लाल के हसीन सपनों से बाहर निकलने को तैयार नहीं हैं। वे पार्टी महासचिव और मांट से नए—नए प्रत्याशी बने जयंत चौधरी को यूपी के भावी डिप्टी सीएम के रूप में देख रहे हैं। शायद जयंत को यह भाषा अच्छी लग रही है, यही वजह है कि वह अब हर चुनावी सभा में दोहराने लगे हैं कि कांग्रेस—रालोद की साझा सरकार बनेगी और मुख्यमंत्री का चुनाव दोनों दलों के निर्वाचित विधायक करेंगे। इसके उलट हालात यह हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सीट शेयरिंग और प्रत्याशियों के चयन को लेकर रालोद नेतृत्व के खिलाफ कम से कम दर्जन भर स्थानों पर मोर्चा खुला हुआ है।

शनिवार, 28 जनवरी 2012

न कोटा, न अन्ना, यहां का मुद्दा सिर्फ गन्ना

सत्यजीत चौधरी
 उत्तर प्रदेश की चुनावी रणभेरी में एक ओर जहां मायावती तमाम दागी मंत्रियों को हटाकर अन्ना हजारे के नक्शे कदम पर चलने का प्रयास कर इस बार भी  लखनऊ की कुर्सी पर कब्जा बरकरार रखने को बेताब हैं तो दूसरी ओर समाजवादी पार्टी भी  तमाम भरष्टाचार के मामलों के साथ आगे आ रही है। कांग्रेस और भाजपा भी  इन्हीं मुद्दों के इर्द गिर्द अपनी राजनीतिक चाल चल रहे हैं लेकिन भष्टाचार और अन्ना से इतर कुछ गन्ना पैदावार वाले क्षेत्र ऐसे भी हैं, जहां का मुख्य मुद्दा गन्ना है। उनके गन्ने के दाम पर लगातार राजनीतिक रोटियां सेंकी जाती हैं। इस बार भी कुछ ऐसे ही प्रयास किए जा रहे हैं।

सोमवार, 16 जनवरी 2012

मुलायम के लिए कम नहीं हैं चुनौतियाँ

सत्यजीत चौधरी  
    चुनावी डुगडुगी पिट चुकी है। चारों तरफ सुनो—सुनो, चुनो—चुनो का शोर है। उत्तर प्रदेश में सभी राजनीतिक दल कमर कसकर चुनावी समर में कूद चुके हैं। खुद को कूतने और दूसरों को आकने की कसरत जोरों पर है। हाथी और साइकिल गलियों-मोहल्लों में निकल चुके हैं। हाथ भी वरदहस्त की मुद्रा में लोगों को रिझा रहा है। कमल खिलने को बेताब है। हैंडपंप भी प्यास बुझाने का बादा कर रहा है। मीडिया ने भी तैयारियां शुरू कर दी हैं। सर्वे और पोल्स के लिए आंकड़े जुटाने टीमें निकल चुकी हैं।

रविवार, 15 जनवरी 2012

प्रत्याशी जी सावधान, जासूस पीछे लगा हो सकता है!

सत्यजीत चौधरी 
  कहते हैं जो जीता वही सिंकदर। पराजय शब्द कोई भी  अपनी डिक्शनरी में नहीं रखना चाहता। राजनीति कर अपनी रोजी—रोटी चलाने वाले नेता तो बिल्कुल भी  नहीं। उत्तर प्रदेश में चुनाव की इस बेला में प्रत्याशी अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए तरह—तरह के टोटके आजमा रहे हैं। इस हाईटेक दौर में कई नेताओं ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स फेसबुक और ट्वीटर पर अकाउंट बनाकर अपनी प्रोफाइल से वोटरों को रिझा रहे हैं। कुछ ने और आगे जाकर जासूसों का सहारा ले लिया है। यानी विरोधियों की कमियों और ताकत का पता लगाने के साथ अपनी खामियों को दुरुस्त करने के लिए डिटेक्टिव एजेंसियों का सहारा ले रहे हैं।

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

पैसा, शोहरत और अपराध में यूपी नंबर वन

सत्यजीत चौधरी
पैसा, शोहरत और अपराध, आज की राजनीति के यह तीन ऐसे चेहरे हैं जिनके बिना जनता के बीच नेता गुमनाम सा कहा जा सकता है। पांच राज्यों यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में इस साल चुनाव होने जा रहे हैं। पांच राज्यों का चुनावी विश्लेषण किया है एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और नेशनल इलेक्शन वाच ने। इस विश्लेषण में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। सबसे अहम बात यह है कि उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती, बाकी चार राज्यों के मुख्यमंत्रियों की अपेक्षा सबसे ज्यादा अमीर है। दूसरी बात यह सामने आई है कि अपराध के मामले में भी यूपी ही नंबर वन है। खास बात यह है कि यूपी के विधायक भी सबसे ज्यादा करोड़पति हैं। एडीआर की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ही सबसे ऊपर आती हैं। मायावती की कुल संपत्ति 87.27 करोड़ रुपए है जबकि मणिपुर के मुख्यमंत्री आक्राम इबोबी सिंह की संपत्ति सबसे कम केवल छह लाख नौ हजार रुपए है।

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

दागी फिर मैदान में

सत्यजीत चौधरी
 मिशन यूपी का आगाज हो चुका है। पार्टियों में दिन रात प्रत्याशियों के नामों पर अंतिम मुहर लगाने के लिए माथापच्ची चल रही है। कई पार्टियों ने अपनी चुनाव प्रत्याशियों की सूचियां जारी कर दी हैं। भले ही अन्ना हजारे लगातार भष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद कर जनलोकपाल की बात कर रहे हों या फिर पार्टियों के बीच लोकपाल बिल को लेकर राजनीति चरम पर हो लेकिन एक बार फिर आपराधिक छवि के प्रत्याशी सभी  राजनीतिक पार्टियों के लिए प्रथम वरीयता पर दिखाई दे रहे हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के नेशनल इलेक्शन वॉच के सर्वेक्षण में कुछ ऐसी ही चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। पार्टियों की ओर से जिन प्रत्याशियों के नामों को अंतिम रूप दिया गया है, उनमें 77 प्रतिशत प्रत्याशी आपराधिक छवि के हैं तो 38 प्रतिशत प्रत्याशियों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले लंबित हैं।

सोमवार, 9 जनवरी 2012

सीईसी के आदेश के बाद मूर्ति युद्ध छिड़ने का अंदेशा

सत्यजीत चौधरी
   नोएडा और लखनऊ में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की प्रतिमाएं और उनकी पार्टी बसपा के चुनाव चिह्न से मिलती—जुलती हाथी की मूर्तियों को ढकने के चुनाव आयोग के फरमान के बाद पूरे देश में स्टेचू वॉर यानी मूर्ति युद्ध छिड़ने का अंदेशा पैदा हो गया है। उत्तर प्रदेश की आग अब पंजाब के पटियाला शहर पहुंच चुकी है। वहां अकाली दल के पूर्व मंत्री सरदारा सिंह कोहली की प्रतिमा को लेकर विवाद शुरू हो गया है। इसका सूत्रपात किया है अकाली दल के ही एक स्थानीय पार्षद सोहन लाल जलोटा ने। उन्होंने चुनाव आयोग को इस बारे में चिट्ठी लिख मारी कि शहर के आराधना चौक के पास पूर्व अकाली मंत्री की मूर्ति लगाई गई है। उनका कहना है कि ठीक है कि वह अकाली दल के पार्षद हैं, लेकिन नियम तो नियम होते हैं। उनका कहना है कि अब यह चुनाव आयोग का काम है कि वह तय करे कि यह आचार संहिता का मामला है या नहीं।

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

दाग अच्छे नहीं हैं

सत्यजीत चौधरी
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने चुनाव की घोषणा होने के बावजूद अपने मंत्रिमंडल से कई मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। जनता के सामने यह संदेश देने की कोशिश की गई कि मायावती का यह स्टंट भष्टाचार के खिलाफ बन रहे माहौल में एक अच्छा चुनावी फंडा कहा जा सकता है लेकिन पर्दे के पीछे की सच्चाई चौंकाने वाली है। इस सच्चाई से अब पर्दा उठ रहा है और मायावती का एक पंथ दो काज का फंडा भी  सामने आ रहा है। फिलहाल मायावती भले ही कुछ भी दावे करे लेकिन सच्चाई यह है कि दागदार होने की वजह के साथ ही पिछले विधानसभा  चुनावों में इन हटाए गए मंत्रियों में से ज्यादातर कम मतों से विजयी हुए थे जो कि इस बार बसपा के लिए मुश्किलों भरे हो सकते थे।

गुरुवार, 5 जनवरी 2012

माया की ‘माया’ से बचना आसान न होगा

सत्यजीत चौधरी
उत्तराखंड में चुनाव की अधिसूचना जारी हो चुकी है। उत्तर प्रदेश के लिए चार दिन बाद हो जाएगी। यह एक संसदीय औपचारिकता है। बात यह है कि दोनों राज्यों में चुनाव की बिसात बिछ चुकी है। मुद्दे रूपी मोहरे चले जा रहे हैं। चुनाव को लेकर पार्टियां उत्साह में है, लेकिन इस बार चौतरफा चल रहे सीईसी के डंडे से सहमी हुई भी हंै। लाख कोशिश है कि आचार संहिता का आदर बना रहे, लेकिन चूक हो ही जा रही है। कांग्रेस पहले ही मिशन यूपी को लेकर जी-जान से जुट चुकी है तो उत्तराखंड में भाजपा के हौसले पहले से ही खंडूरी की सरकार की पाक-साफ छवि की वजह से बुलंद दिखाई दे रहे हैं। हालांकि कांग्रेस या भाजपा की ओर से केवल ऊपरी तौर पर सोच बदली और रखी जाती है जबकि बसपा का जमीनी जुड़ाव दरकिनार नहीं किया जा सकता। यह बात काबिलेगौर है कि बसपा आज भी धरातल पर सपा, कांग्रेस और भाजपा से ज्यादा मजबूत कही जा सकती है। ऐसे में मायावती को हल्के में लेकर चलना राजनीतिक पार्टियों की भारी भूल साबित हो सकती है। मायावती उत्तर प्रदेश ही नहीं पंजाब और उत्तराखंड में भी निर्णायक भूमिका में सामने आ सकती है।

मुश्किल में भाजपा

सत्यजीत चौधरी
हर कदम पर बचकर चलना ही अब भाजपा के लिए मुसीबत साबित होता दिखाई दे रहा है। पार्टी की ओर से पांच राज्यों के चुनाव के मद्देनजर कुछ ऐसे निर्णय लिए गए हैं जो कि अब गले की फांस बनते जा रहे हैं। पहले से ही बसपा के पूर्व नेता और मायावती के खासमखास बाबू सिंह कुशवाहा को पार्टी में शामिल कर अपनी फजीहत करा चुकी भाजपा ने अब एक और विवादित नेता को पार्टी का टिकट थमा दिया है। सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना घोटाले में मुख्य तौर पर सामने आए पूर्व सांसद साक्षी महाराज को भी  अब भाजपा ने अपने आंगन की छांव दे दी है। दूसरी ओर पूर्व क्रिकेटर व सांसद नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर सिद्धू को भी  पार्टी ने चुनाव का टिकट दिया है। भाजपा के हाल के फैसलों को लेकर राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ ने सख्त नाखुशी जाहिर कर दी है।

बुधवार, 4 जनवरी 2012

मसूद को लोकल मसलों से निकलना होगा

सत्यजीत चौधरी
   चौधरी अजित सिंह से हाथ मिलाना और काजी रशीद मसूद को पार्टी में लाना कांग्रेस की एक ही योजना का हिस्सा है। मतलब यह कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट और मुस्लिम वोट बैंक को साधना, लेकिन जिस तरह से मसूद लोकल मसलों में उलझते जा रहे हैं, उससे कांग्रेस में निराशा है। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस चाह रही है कि मसूद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 75 विधानसभा क्षेत्रों में जाएं और मुसलमानों को बताएं कि कांग्रेस ही उनकी सच्ची हितैषी है। सच्चर समिति की सिफारिसो  के अनुरूप केंद्र सरकार ने जो योजनाएं बनाई हैं, उनपर रोशनी डालें। कांग्रेस की योजना रशीद मसूद और सोमवार को रालोद में शामिल याकूब कुरैशी के संयुक्त दौरे शुरू कराने की है, ताकि दोनों मिलकर सहारनपुर और मेरठ में अपने साथ मुस्लिम मतों के एक बड़े हिस्से को जोड़ सकें लेकिन गंगोह सीट को लेकर मसूद का अड़ियल रवैया गुर्जरों के नेता यशपाल सिंह से उनकी टकराहट अब कांग्रेस को अखरने लगी है।

नीतीश कुमार बने कांग्रेस के आदर्श !

सत्यजीत चौधरी
   बिहार की आरजेडी चीफ लालू प्रसाद यादव के वोट बैंक में सेंध लगाकर मुस्लिम और यादव वोट बैंक के सहारे से बिहार की सत्ता हासिल करने वाले सीएम नीतीश कुमार अब यूपी में कांग्रेस के लिए आदर्श साबित होने जा रहे हैं। पार्टी ने नीतीश कुमार की तर्ज पर केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा को अपना वोट बैंक देखकर चल रही है। माना जा रहा है कि अगर बेनी प्रसाद कुर्मी और सपा के वोट बैंक मुस्लिमों को तोड़ने में सफल हो जाते हैं तो कांग्रेस का लखनऊ की कुर्सी का बीस साल का इंतजार समाप्त हो सकता है। हालांकि फिलहाल यह इतना आसान दिखाई नहीं दे रहा है।

मंगलवार, 3 जनवरी 2012

बसपा, भ्रष्टाचार और बगावत

सत्यजीत चौधरी
पांच साल पहले जब मायावती ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई थी तो उनके तेवर और ईमानदार छवि, दोनों ही जनता के दिलो दिमाग में चलती थी। पांच साल बीतने के साथ ही जनता के बीच मायावती की घटी लोकप्रियता बयां करती है कि कहीं न कहीं बसपा का ग्राफ इस बार घटा है। अपनी इज्जत को बरकरार रखने के लिए हालांकि मायावती ने एक या दो नहीं 20 मंत्रियों और दूसरे नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इनमें से कुछ को पार्टी से भी  निस्कासित कर दिया है तो कुछ का ओहदा उनसे छीन लिया गया है। हालांकि जिन लोगों को ओहदा छीना गया है, वह खुद ही अब बसपा का साथ छोड़कर दूसरे दलों में शामिल होने लगे हैं। इनमें से अभी  तक कुल चार पूर्व मंत्री भाजपा में शामिल हो चुके हैं।

सोमवार, 2 जनवरी 2012

भाजपा की दूसरी सूची में रिश्ते-नातों का खास ख्याल

सत्यजीत चौधरी 
राजनीति में सब जायज है। अब बात अगर रिश्तों नातों की हो और टिकट न मिले तो बात ही क्या। बाबू सिंह कुशवाहा को लेकर अपनी किरकिरी करा चुकी भारतीय जनता पार्टी ने दूसरी सूची में रिश्तों नातों को वरीयता दी है। पार्टी में अपनी सेवाएं दे चुके कई पुराने नेताओं के परिजनों को भी टिकट देते समय ध्यान में रखा गया है तो दूसरी ओर कई दूसरी पार्टियों के पुराने दिगगजों को भी । फिलहाल सूची को लेकर एक बार फिर गहमागहमी का हाल पैदा हो गया है। खास बात यह है कि अपनी सूची को लेकर उत्तराखंड में पहले ही भाजपा किरकिरी करा चुकी है।

विवाद, हाजी याकूब और दल बदलू राजनीति

सत्यजीत चौधरी
    कुरैशी बिरादरी में एक अलग ही शान रखने वाले हाजी याकूब कुरैशी का राजनीतिक कैरियर हमेशा से ही विवादों से घिरा हुआ रहा है। पहले मोहम्मद साहब का कार्टून बनाने वाले का सिर कलम करने पर ईमान देने का बयान आने के बाद पिछले साल एक बार फिर सिख समुदाय को लेकर उन्होंने आपत्तिजनक टिप्पणी की। इस टिप्पणी ने उन्हें बसपा से बाहर कर दिया। राजनीतिक मंच की तलाश में जुटे रहे हाजी याकूब ने पहले अपने बेटे इमरान को रालोद में जगह दिलाई। रिश्तों में मधुरता आने के साथ ही चुनाव से ऐन वक्त पहले हाजी याकूब ने अब अपने साथ कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर रालोद ज्वाइन कर ली है। इससे मेरठ की राजनीति में एक अलग भूचाल आने के साथ ही मायावती के लिए इसे एक बड़े झटके के तौर पर भी  देखा जा रहा है।

छोटे दल, बड़ी चुनौती

-यूपी की सियासत में अपनी ताल ठोंक रहे हैं छोटे और धार्मिक आधार पर बने दल

सत्यजीत चौधरी
 उत्तर प्रदेश में चुनावी महासंग्राम के बीच लगातार कई नए-नए राजनीतिक समीकरण सामने आना शुरू हो गए हैं। एक ओर जहां बड़े राजनीतिक दल अंदरूनी कलह और राजनीति का शिकार हो रहे हैं तो दूसरी ओर समाज या धर्म प्रधान छोटे दल भी उत्तर प्रदेश की सियासी माहौल में बड़ी चुनौती के तौर पर उभर रहे हैं। इन छोटे दलों को दूसरी पार्टियां हालांकि अपने लिए एक वोट पाने का जरिया मानती हैं लेकिन यह अगर एक हो जाएं तो किसी भी पार्टी के अरमानों पर पानी फेर सकते हैं। यूपी की राजनीतिक गलियारों में इन दिनों कुछ ऐसे ही दल उभर आए हैं, जो मिलकर एक नया भूचाल लाने की तैयारी कर रहे हैं।