शनिवार, 5 मार्च 2011

धरती के •ाीतर प्लेटें हो रही हैं एडजस्ट, और झटके खाने को तैयार रहें

सत्यजीत चौधरी 
उत्तराखंड के धारचूला के दक्षिण-पूर्व से चले भूकंप ने पल •ार में उत्तर भारत को हिलाकर रख दिया। हालांकि •ाारत-नेपाल सीमा के नजदीक के इलाकों की अपेक्षा दिल्ली में आने वाले झटके की तीव्रता कम थी लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि इस प्रकार के झटके सामान्य प्रक्रिया है और क•ाी •ाी आ सकते हैं। माना जा रहा है कि हिमालय क्षेत्रों में पृथ्वी के नीचे की प्लेटों के बीच हो रहे एडजस्टमेंट की वजह से यह •ाूकंप आया था।
भारत-नेपाल सीमा के पास स्थित धौली रीवर के आसपास का 15 किलोमीटर का दायरा सोमवार को 5.7 की तीव्रता से कांप उठा। •ाूकंप का झटका इतना तेज था कि यहां से तकरीबन 330 किलोमीटर दूर स्थित •ाारत की राजधानी दिल्ली सहित कई और क्षेत्रों के लोगों में •ाूकंप से दहशत का माहौल पैदा हो गया। देहरादून स्थित विश्व प्रसिद्ध वाडिया इंस्टीट्यूट आॅफ हिमालय जियोलोजी के वैज्ञानिकों ने •ाूकंप पर एक रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट के मुताबिक •ाूकंप का केंद्र •ाारत-नेपाल सीमा स्थित धारचूला और दक्षिण पूर्व क्षेत्र रहा है। दिल्ली तक इस •ाूकंप का असर होने की सबसे बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि दिल्ली तक का क्षेत्र यमुना के रेतीली •ाूमि पर बसा हुआ है। ऐसे में हल्का कंपन्न •ाी वहां काफी महसूस किया जा सकता है। वाडिया इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.एके महाजन का कहना है कि इस प्रकार का •ाूकंप धरती के नीचे प्लेटों के एडजस्टमेंट के दौरान आता है, जो कि बेहद सामान्य प्रक्रिया है। उन्होंने कहा कि यह सामान्य प्रक्रिया अ•ाी आगे •ाी जारी रह सकती है। उन्होंने बताया कि हिमालयन क्षेत्रों में इन दिनों तेजी से धरती के नीचे उथल पुथल मची हुई है। ऐसे में पहले •ाी कई बार •ाूकंप के झटके आ चुके हैं।
-वैज्ञानिकों का दावा, फिर हिल सकती है राजधानी दिल्ली-हिमालयन क्षेत्रों में पृथ्वी की प्लेटों के बीच एडजस्टमेंट होने से आया था भूकंप
वैज्ञानिकों का दावा है कि सोमवार को आया •ाूकंप •ाी प्लेटों के एडजस्टमेंट के चलते आया था, जो कि कम नुकसानदायक की श्रेणी में रखा जा सकता है। वैज्ञानिकों का यह •ाी दावा है कि निकट •ाविष्य में अर इस क्षेत्र में •ाूकंप आता है तो निश्चित तौर पर एक बार फिर दिल्ली सहित कई और क्षेत्रों में इसका असर आ सकता है। वैसे सुकूनदेह बात यह है कि इस •ाूकंप की वजह प्लेटों का टूटना या कोई अचानक होने वाली अनहोनी नहीं है। डा. महाजन के मुताबिक यमुना बेल्ट होने की वजह से 330 किलोमीटर से •ाी ज्यादा दूरी होने के बावजूद दिल्ली तक कंपन्न पहुंच गए, जो कि इस क्षेत्र की संवेदनशीलता बयां करता है। फिलहाल यही माना जा रहा है कि •ाविष्य में •ाी इस प्रकार के छोटे झटके आ सकते हैं, जो कि हानि के लिहाज से काफी कम ही होंगे। 

भूकंप के दौरान.... 
      भूकंप आमतौर पर बचने का बहुत कम समय देता है। अधिक तीव्रता वाले भूकंप में सेकेंडों में सीन बदल जाते हैं। इमारतें •ार•ाराकर गिर जाती हैं। समुद्र तटीय इलाकों में सुनामी आ जाती है। सड़कें दरककर फट पड़ती हैं। मकानों में आग लग जाती है। विस्फोट होते हैं। फिर वैज्ञानिकों ने बचाओ के कुछ तरीके सुझाए हैं।

  • -तेज झटकों के साथ धरती हिल रही हो तो तुरंत खुले की तरफ •ाागें। ऐसे स्थान पर रहें, जहां आसपास कोई ऊंची इमारत न हो।
  • -यदि बहुमंजिला •ावन में हैं तो नीचे जाने के लिए लिफ्ट का इस्तेमाल कतई न करें। सीढ़ियों से जाएं।
  • -यदि तुरंत निकलना मुमकिन न हो तो हथेलियों और कोहनी से सिर को छिपाकर किसी मजबूत मेज या बेड के नीचे चले जाएं। ऐसी दशा में ऊपर से गिरने वाले मलबे से बचने की सं•ाावना बढ़ जाएगी। दरवाजों के बीच में खड़े होकर खुद को बचाया जा सकता है।
  • -कांच की खिड़की या दरवाजे से दूर हो जाएं। आग जल रही हो तो उसे तुरंत बुझाने की कोशिश करें। आग और विस्फोटक सामग्री से तुरंत दूर चले जाएं।
  • -यदि भूकंप के समय खुले स्थान पर हैं तो इलेक्ट्रिक, टेलीफोन और मोबाइल टावरों से दूर चले जाएं।
  • -अगर ड्राइव कर रहे हैं तो तुरंत इमारतों और खं•ाों से दूर जाने की कोशिश करें। पुल पर हों तो उसे जल्द पार कर लें।


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