रविवार, 3 अप्रैल 2011

प.बंगाल समेत पांचों राज्यों की विधानसभाओं में दागियों का बोलबाल!

-तमिलनाडु व केरल में हैं सबसे ज्यादा आपराधिक विधायक
-चुनाव नजदीक आते ही याद आते हैं सुधार 

सत्यजीत चौधरी
 सत्ता की इमारत के निर्माण के दौरान पहले •ाूले-•ाटके कोई दागी र्इंट लग जाती थी।  अब हालत यह है कि खोटी र्इंटें तलाश कर लगाई जाती हैं। पश्चिमी बंगाल समेत देश के जिन पांच राज्यों में इस महीने विधानस•ाा चुनाव होने हैं, उन विधानसभाओं में दागियों की कमी नहीं है, और स•ाी पांचों राज्यों में आपराधिक छवि वाले विधायकों की संख्या 204 है, जिसमें केरल और तमिलनाडु में सर्वाधिक दागी विधायक शामिल हैं। 

केंद्रीय चुनाव आयोग लगातार चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष और स्वतंत्र बनाने की कवायद में लगातार राजनीतिक दलों के साथ माथा-पच्ची करता आ रहा है। इसी प्रयास में चुनाव आयोग ने तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल, असम और पश्चिम बंगाल में आगामी अप्रैल और मई माह में होने वाले चुनावों की तैयारी के लिए •ाी स•ाी राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बैठक करके चुनावों में धनबल और अपराधीकरण से दूर रखने की अपील की है। हालांकि स•ाी राजनीतिक दल राजनीति को आपराधिकरण से दूर रखने की दुहाई देते हैं लेकिन उम्मीदवारों के चयन में स•ाी बड़े व छोटे दल आपराधिक छवि वाले व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बनाने में कतई पीछे नहीं है। नेशनल 
    इलेक्शन वॉच और एडीआर देश में होने वाले चुनावों में उम्मीदवारों को लेकर सर्वेक्षण करती आ रही है, जिसने चुनाव आयोग के साथ मिलकर निष्पक्ष, स्वस्थ्य और लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया के लिए अनेक अ•िायान •ाी चलाये हैं। एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफॉर्म के राष्टÑीय समन्वयक अनिल बैरवाल ने उक्त पांचों राज्यों के इलेक्शन वॉच समन्वयकों से सर्वेक्षण के बाद मिली रिपोर्ट के आधार पर बताया कि पांचों राज्यों में कुल 824 विधायकों में से 813 विधायकों के वर्ष 2006 में हुए चुनाव के लिए उम्मीदवारों द्वारा दाखिल शपथपत्रों को अध्ययन किया गया है, जिसमें से 204 विधायक ऐसे हैं जिनकी छवि आपराधिक हैं। इसमें केरल में 140 में से 69, तमिलनाडु में 234 में से 77, पुडुचेरी में 30 में से छह, पश्चिम बंगाल में 294 में से 45 तथा असम में 126 में से सात विधायक दागियों की सूची में शामिल हैं। 204 दागियों में 83 विधायक ऐसे हैं जिनके खिलाफ संगीन मामले लंबित हैं। ऐसे संगीन मामलों में शामिल विधायकों में केरल में 18, तमिलनाडु में 25, पुडुचेरी में पांच, पश्चिम बंगाल में 30 तथा असम में पांच का आंकड़ा सामने आया है। जहां तक धनाढ्य विधायकों का सवाल है उसमें पुडुचेरी का प्रतिशत सबसे ज्यादा है, जिसमें 30 में से नौ विधायक करोड़पतियों की फेरहिस्त में शामिल हैं। तमिलनाडु में 57, असममें 16, केरल में आठ, तथा पश्चिम बंगाल में सात समेत पांचों राज्यों में कुल 97 विधायक करोड़पति हैं। वहीं पांचों राज्यों में कुल मिलाकर 79 महिला विधायकों का प्रतिशत 9.5 है, जिसमें केरल में सात, तमिलनाडु में 22, असम में 13 तथा पश्चिम बंगाल में 37 महिलाएं विधानस•ाा में प्रतिनिधित्व कर रही हैं।
    हमारे यहां आग लगने पर कुआं खोदने की पुरानी परंपरा है। जब •ाी लोकस•ाा या किसी विधानस•ाा के चुनाव नजदीक आते हैं, नेताओं को चुनाव सुधार याद आते हैं। पिछले दिनों इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में ‘क्या •ाारतीय राजनीति में ईमानदारी सं•ाव है’ विषय पर आयोजित व्याख्यान में केंद्रीय •ाारी उद्योग मंत्री प्रफुल पटेल ने कहा है कि देश में वार्ड पार्षद तक का चुनाव धन-बल के प्र•ााव से मुक्त नहीं है। पटेल का कहना था कि बीते कुछ वर्षो में चुनावों में धन-बल का इस्तेमाल बढ़ा है। जिससे व्यवस्था में •ा्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है। राज्यस•ाा में नेता विपक्ष अरुण जेटली ने •ाी कहा कि चुनावों के वित्तपोषण की अपारदर्शी व्यवस्था एक बड़ी समस्या है।
तो ये स•ाी नेता मानते हैं कि धन-बल चुनाव का जरूरी हिस्सा बन गए हैंं। चुनाव आयोग चाहता है कि खर्च निर्धारित सीमा में हो,  लेकिन इसका पालन कहां हो रहा है। पांच राज्यों में विधानस•ाा चुनाव के संदर्•ा में आयोग ने जो नए निर्देश जारी किए हैं उनमें से एक चुनावी खर्चों को चेक से •ाुगतान करने के निर्देश हैं। नियमानुसार विधानस•ाा चुनाव में प्रति क्षेत्र 16 लाख रुपए से अधिक खर्च नहीं होने चाहिए। इससे पहले तो खर्च की सीमा विधानस•ाा में दस लाख और लोकस•ाा में 25 लाख रुपए थी। लेकिन इनका पालन नहीं होता है। यह बात जनता •ाी जानती है और चुनाव आयोग •ाी, लेकिन कुछ कर नहीं सकते क्योंकि नियमानुसार जो खर्च उम्मीदवार आयोग में जमा कराते हैं वह बड़ा मनोरंजक है। 2009 के लोकस•ाा चुनाव के बाद 99 फीसदी उम्मीदवारों ने खर्च ब्योरा दिया है,  उसमें सीमा के पचास प्रतिशत तक ही खर्च करने की जानकारी दी गई है।
काले रूप में पैसा चुनाव में अपराधियों के इस्तेमाल पर •ाी खर्च किया जाता है, यह •ाी सब जानते हैं। चुनाव आयोग खर्च सीमा की लाख घेराबंदी करे, नेता छेद निकाल ही लेते हैं। 

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