शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

स्कूल तक नहीं पहुंच पाती हैं यूपी की नौ फीसदी से ज्यादा कन्याएं

सत्यजीत चौधरी
  यह सही है कि उत्तर प्रदेश में महिलाओं ने कुछ तरक्की की है लेकिन यह भी  सच है कि प्रदेश में अब भी  नौ फीसदी से ज्यादा बालिकाएं स्कूल तक नहीं पहुंच पा रही हैं। सरकार की ओर से तमाम योजनाएं चलाए जाने के बावजूद बालिका शिक्षा में यह पिछड़ापन एक नया सवाल बनकर सबके सामने आ गया है। दूसरी ओर प्रदेश में पांच वर्ष तक की उम्र के स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या बढ़ी है लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि अ•िा•ाावकों में सरकारी के बजाए प्राइवेट स्कूलों के प्रति आकर्षण ज्यादा देखने को मिल रहा है। यह बातें स्वंयसेवी संस्था ‘असर’ की रिपोर्ट में खुलकर सामने आई हैं।
      शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय स्वंयसेवी संस्था की ओर से देश के 14 हजार से ज्यादा गांवों के तीन लाख से ज्यादा परिवारों और करीब सात लाख बच्चों पर शिक्षा से संबंधित सर्वेक्षण किया गया है। इसके तहत वि•िान्न पहलुओं पर जनता से पूछताछ की जाती है और उसके आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक 6 से 14 वर्ष आयु के 96.5 प्रतिशत बच्चों को देश•ार के विद्यालयों में दाखिला है, जिसमें से करीब 71.1 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूलों में और 24.3 प्रतिशत बच्चे प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक हर सूबे की अपनी शिक्षा को लेकर मजबूरियां और गलतियां सामने आई हैं, इसमें उत्तर प्रदेश को लेकर सामने आए आंकड़ें चौंकाने वाले हैं। प्रदेश में पांच वर्ष तक के बच्चों की दाखिले में वृद्धि अब 55.7 से बढ़कर 73.1 फीसदी हो गई है। जबकि पंजाब में सबसे अधिक 68.3 से बढ़कर 79.6 प्रतिशत तक हुई है। गत वर्ष की तुलना में देश•ार में यह आंकड़ा 54.6 से बढ़कर 62.8 तक पहुंच गया है जो कि एक राहतजनक बात है। सर्वेक्षण के तहत बच्चों के पढ़ पाने की क्षमता •ाी परखी गई। पढ़ पाने की क्षमता में बच्चों में कोई विशेष सुधार तो सामने नहीं आया है। देश में कक्षा पांच के तकरीबन 53.4 प्रतिशत बच्चे ही कक्षा दो का पाठ पढ़ पाते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में कक्षा 1 के ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ी है जो अक्षरों को पहचान सकते हैं। इसी प्रकार आंध्र प्रदेश, गुजरात, असम, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बंगाल के कक्षा पांच के उन बच्चों की संख्या में इजाफा हुआ है जो कक्षा 2 का पाठ तसल्ली से पढ़ पाते हैं।
      प्राइवेट स्कूलों में दाखिले का आकर्षण •ाी अ•िा•ाावकों में काफी देखने को मिल रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2009 में प्राइवेट स्कूलों में जाने वाले देश के ग्रामीण बच्चों की संख्या 21.8 प्रतिशत थी जो कि वर्ष 2010 में बढ़कर 24.3 प्रतिशत तक पहुंच गई। इस दौरान आंध्र प्रदेश में इस आंकड़े में सबसे ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई है जबकि उत्तर प्रदेश में •ाी इसमें कुछ बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है। असर की इस रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाली बात यह है कि बच्चे अब रोजमर्रा के हिसाब में •ाी काफी कमजोर हैं। सर्वेक्षण में मेन्यूकार्ड से संबंधित सवाल, केलेंडर पढ़ना, आयतन और क्षेत्रफल जैसे सवाल पूछे गए तो इसमें बच्चे काफी कमजोर पाए गए। उत्तर प्रदेश के छात्रों में यहां •ाी फिसड्डीपन रहा जबकि बिहार और केरल के छात्र सबसे अव्वल रहे। दूसरी ओर अप्रैल 2010 में लागू किए गए शिक्षा का अधिकार अधिनियम के मामले में •ाी स्कूल कानून के मानकों पर खरे नहीं उतरे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 62 प्रतिशत विद्यालयों में खेल का मैदान, 50 प्रतिशत में चार दीवारी, 90 प्रतिशत में शौचालय मौजूद था, लेकिन इनमें से आधे विद्यालयों में शौचालय प्रयोग में लाने के लायक नहीं थे। रिपोर्ट में समग्र रूप में वर्ष 2007 से लेकर 2010 तक ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों की स्कूलों में उपस्थिति में कोई विशेष अंतर नहीं आया है। ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में छात्रों की उपस्थिति का आंकड़ा तकरीबन 73 फीसदी है।


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