शनिवार, 14 मई 2011

रफ्ता-रफ्ता बढ़ गई ममता दीदी जीत की ओर


सत्यजीत चौधरी

आखिर साढ़े तीन दशक बाद पश्चिमी बंगाल का लालगढ़ टुकड़े-टुकड़े हो गया। खुद को अजेय समझने वाला लेफ्ट फ्रंट  विधानस•ाा चुनावों में करारी शिकस्त के बाद चोट सहला रहा है और सोच रहा है कि यह क्या हो गया। बदलाव की यह इबारदत लिखी है ममता बनर्जी ने। पिछले कई साल से वाम मोर्चे के किले की एक-एक र्इंट खिसका रही ममता ने देश के चुनावी इतिहास में एक रिकॉर्ड बनाया है।
  • -गॉड फादर के बिना ममता ने छुए सत्ता के नए आयाम
  • -वर्षों पुराना इतिहास बदलकर इतिहास महिला बन गई ममता बनर्जी 


      ममता के बारे में कहा जाता है कि वह तुनक मिजाज हैं। जल्द आपा खो देती हैं। लापरवाही उन्हें पसंद नहीं। जिद्दी हैं, अपनी बात मनवाकर ही मानती हैं, लेकिन पश्चिमी बंगाल में विधानसभा के लिए मतदान की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ममता का एक और रूप सामने आया। लोगों ने ंिबंदास ममता के दर्शन किए। ममता जो तेज वॉल्यूम पर संगीत सुन रही थीं। चित्र बना रही थीं। बच्चों को कहानियां सुना रही थीं और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के साथ सराकर के स्वरूप पर चर्चा कर रही थीं।
     भारतीय राजनीति में गॉड फादर के बिना शिखर तक पहुंचना नामुमकिन है। सोनिया गांधी को सियासत के गुर स्व. राजीव गांधी ने सिखाए। मायावती ने कांशीराम से राजनीति का ककहरा सीखा। उमा  भारती के लिए गोविंदाचार्य चाणक्य बने। महबूबा मुफ्ती ने पिता से सियासत के दांव—पेच सीखे, लेकिन ममता ने एकला चलो... के शांत गान के साथ बंगाल के इस जादू ने रेल मंत्री और फिर पश्चिमी बंगाल के मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया। लोकस•ाा के कुछ पुराने सदस्यों से अनौपचारिक बातचीत में पता चला कि 1985 में जब ममता पहली बार चुनकर लोकस•ाा पहुंचीं तो उनकी टूटी—फूटी हिंदी सुनकर सदस्य हंसते थे। कई बार कमेंट्स हुए तो ममता मुस्कराकर रह गर्इं। अंग्रेजी •ाी उनकी माशा अल्लाह थी, लेकिन इतने सालों में ममता ने दोनों  भाषाओं पर अच्छी पकड़ बनाकर लोगों के मुंह बंद कर दिए। रेल बजट पेश करने का ममता का अंदाज निराला है। लालू की तरह वह •ाी शेर और कविताओं का बड़ी खूबसूरती से इस्तेमाल करने में माहिर हो चुकी हैं।
     अकसर संसद के गलियारे में ममता की मायावती से तुलना की जाती है। दोनों एक ही मामूली जमीन से उठकर कामयाबी के शिखर तक पहुंचीं। जो लोग ममता को करीब से जानते हैं, उनका कहना है कि दीदी पूरी तरह से सादगी की प्रतिमूर्ति हैं। सादी सूती बंगाली साड़ी। बाल एक बार सुबह संवार लिये तो रात तक बिखरकर बेतरतीब हो जाएं तो फिकर नॉट। कोई मेक अप नहीं। ममता किसी के यहां रुककर जो मिला खा लेने पर यकीन रखती हैं।  परफ्यूम नहीं, डिजाइनर चप्पल नहीं। जेवर के नाम पर कुछ नहीं। इसके विपरीत मायावती जेवरात से लकदक रहती हैं। पर्स या हैंड बैग •ाी महंगा वाला रखती हैं। पानी हमेशा आरओ का ही पीती हैं। ममता घर वालों के साथ फर्श पर बैठकर रविंद्र संगीत गाकर अपना जन्मदिन मनाती हैं तो मायावती का बर्थडे पूरे तामझाम के साथ सरकारी खर्च पर मनाया जाता है। महंगा केक कटता है। ब्यूरोक्रेट्स कीमती तोहफे लाते हैं। तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री और अन्नाद्रमुक की मुखिया जय ललिता के पास हीरों के कई-कई सेट्स हैं। एक चप्पल पैर में डालने के बाद वह उसे देखना पसंद नहीं करतीं।  
     एक बात जो ममता को जयललिता, शीला दीक्षित और मायावती से अलग करती है, वह है साफ-सुथरी छवि। उनपर  भरष्टाचार का एक  भी  आरोप नहीं लगा है। जया, माया और शीला की तुलना में ममता कहीं नाजुक तबियत वाली हैं। बांग्ला साहित्य और रविंद्र संगीत से उनका गहरा जुड़ाव है। उनकी बनार्इं कलाकृतियों को देखकर लगता ही नहीं कि ऐसे मर्म स्पर्शी विचार किसी राजनीतिज्ञ के मन में उठ सकते हैं। उनकी पेंटिंग्स लाखों में बिकती है।

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