रविवार, 29 मई 2011

यादें आज भी जिंदा हैं..................


चौधरी चरण सिंह की पुण्यतिथि पर विशेष


सत्यजीत चौधरी
      वक्त बीत जाता है लेकिन यादें नहीं जाती। अपनी पाक-साफ और हक की लड़ाई के लिए अपनी जान लगा देने वाले देश के सातवें प्रधानमंत्री आज हमारे बीच में नहीं हैं। उनकी यादें और उनकी राजनीति के प्रति समर्पण की भावना आज भी उनकी माफिक हमारे बीच जिंदा है। भारत के सातवें प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह की पुण्यतिथि के बीच आज की उनका जनता के प्रति समर्पण उस अगुवाई को तरसता है। हालांकि इस बीच कई किसानों के हितैषी आए लेकिन चौधरी चरण सिंह की भरपाई नहीं हो पाई। नतीजतन आज कई किसान बेरुखी और बेबसी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं।

-भारत के सातवें प्रधानमंत्री के बाद बेरंग हो गई किसानों और जाटों की राजनीति- भूमि अधिग्रहण से लेकर तमाम मामलों में एक लीडर के लिए तरस रहे हैं किसान
 
 चौधरी चरण सिंह का जन्म एक जाट परिवार में 23 दिसंबर 1902 में हुआ था। आजादी के समय उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। आजादी के बाद वह राम मनोहर लोहिया के ग्रामीण सुधार आंदोलन में लग गए। इस आंदोलन ने उन्हें जमीनी स्तर पर न केवल जनता की सेवा करने का मौका दिया बल्कि पाक साफ राजनीति में उनकी एक अलग पहचान •ाी बना दी। अपनी इसी पहचान के दम पर वह 28 जुलाई 1979 को भारत के प्रधानमंत्री बन गए। 14 जनवरी 1980 तक वह भारत के प्रधानमंत्री रहे। उनके बाद इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाया गया। स्व. चौधरी चरण सिंह भारत के सातवें प्रधानमंत्री थे और उन्होंने अपनी मेहनत और किसान हितैषी होकर भारत की जनता का दिल जीत लिया। किसानों कि हित में चौधरी चरण सिंह के स्तर की राजनीति करने वाले नेताओं की काफी कमीं थी। इसलिए स्व. चौधरी को आज भी सब याद करते हैं।

    आज चौधरी चरण सिंह की पुण्यतिथि पर यह जान लेना आवश्यक है कि किसानों के हितैषी के परलोक सिधारने के बाद से अब तक कोई अगुवाई करने वाला नेता नहीं मिल पाया है। हालांकि यह अलग बात है कि किसानों की समस्याएं अब केवल एक औपचारिकता भर रह गई है। अपनी राजनीति चलाने के लिए कई पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं ने खूब राजनीति तो जरूर की लेकिन स्व. पूर्व प्रधानमंत्री की माफिक किसानों के हित में कोई नतीजा सामने नहीं आ पाया है। आज किसान भूमि अधिग्रहण से लेकर तमाम तरह की समस्याओं से  दो-चार हो रहे हैं। कहीं उनकी फसलें बर्बादी की ओर बढ़ रही हैं तो कहीं कर्ज बढ़ने से उनकी जिंदगी दांव पर लग गई है। सरकारें खामोश हैं और प्रशासन चुप्पी ओढ़े हुए हैं। किसानों का हितैषी होने का दावा करने वाले नेता लाख जतन करने के बावजूद उस आयाम को नहीं छू सकते, जो कि स्व. चौधरी ने किया था।

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