बुधवार, 4 मई 2011

रालेगन से दिल्ली तक

-आज के गांधी की संज्ञा दी जाती है अन्ना हजारे को
-अपने पथरीले गांव रालेगन को दुनिया के फलक पर दिलाई एक अलग पहचान

सत्यजीत चौधरी 
 लोग उन्हें आज के गांधी की संज्ञा देते हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंकते हुए उन्होंने एक छोटे से गांव रालेन से दिल्ली तक का सफर करके सरकार और दुनिया को दिखा दिया है कि अगर मन में सचाई के लिए लड़ने का जज्बा हो तो कारवां खुद ही बन जाता है। आज अन्ना किसी पहचान का मोहताज नहीं हैं लेकिन इससे पहले उन्होंने देश और समाज के लिए जो किया है, वह काबिलेतारीफ है। अपनी जिंदगी को दूसरों के लिए कुर्बान करने का जज्बा रखने वाला यह शख्स यंू ही भारतीय जनता का आज का गांधी नहीं बन गया है, बल्कि इसके पीछे है, उनका त्याग और बलिदान।
     अन्ना ने मंगलवार से भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी मुहिम के तहत दिल्ली के जंतर-मंतर पर आमरण अनशन शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा है कि अगर लोकपाल विधेयक की तर्ज पर भ्रष्टाचार विरोधी कानून लागू नहीं किया कया तो वह आमरण अनशन जारी रखेंगे। अन्ना का यह कोई पहला आंदोलन नहीं है। इससे पहले •ाी वह अपने कामों से दुनिया को नतमस्तक होने पर मजबूर कर चुके हैं। उन्होंने अपने हौंसले और जज्बे के दम पर हमेशा शराब के नशे में डूबे रहने वाले अपने पथरीले गांव रालेगन सिद्धि को दुनिया के सामने एक रोल मॉडल के तौर पर पेश करके दिखा दिया है कि यह आज का गांधी दुनिया बदलने की कुव्वत रखता है। इस काम के लिए •ाारत सरकार ने उन्हें पद्म•ाूषण से भी  सम्मानित किया। सूचना के अधिकार की लड़ाई में •ाी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 
अन्ना जैसी हस्ती का अतीत भी  काफी रोमांचक और सीख देने वाला है। 15 जून 1938 को महाराष्टÑ के अहमद नगर के •िांगर कस्बे में जन्मे अन्ना का बचपन बहुत गरीबी में गुजरा। पिता मजदूर थे और दादा फौज में थे। दादा की पोस्टिंग •िांगनगर में थी। वैसे अन्ना के पुरखों का गांव अहमद नगर जिले में ही स्थित रालेगन सिद्धि में था। दादा की मौत के सात साल बाद अन्ना का परिवार रालेगन आ गया। अन्ना के छह •ााई हैं। परिवार में तंगी का आलम देखकर उनकी बुआ उन्हें मुम्बई ले गईं। वहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। परिवार पर कष्टों का बोझ देखकर वह दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये की पगार में काम करने लगे। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो •ााइयों को •ाी रालेगन से बुला लिया। छठे दशक के आसपास वह फौज में शामिल हो गए। उनकी पहली पोस्टिंग बतौर ड्राइवर पंजाब में हुई। यहीं पाकिस्तानी हमले में वह बाल-बाल बच •ाी गए। इसी दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से उन्होंने विवेकानंद की एक किताब ‘कॉल टु दि यूथ फॉर नेशंस’ खरीदी और उसको पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी समाज को समर्पित कर दी। उन्होंने गांधी और विनोबा को •ाी पढ़ा। 1970 में उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प किया। मुम्बई पोस्टिंग के दौरान वह अपने गांव रालेगन आते-जाते रहे। जम्मू पोस्टिंग के दौरान 15 साल फौज में पूरे होने पर 1975 में उन्होंने वीआरएस ले लिया और गांव में आकर डट गए। उन्होंने गांव की तस्वीर ही बदल दी। उन्होंने अपनी जमीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी। आज उनकी पेंशन का सारा पैसा गांव के विकास में खर्च होता है। वह गांव के मंदिर में रहते हैं और हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते हैं। आज गांव का हर शख्स आत्मनिर्•ार है। आस-पड़ोस के गांवों के लिए •ाी यहां से दूध आदि जाता है। गांव में एक तरह का रामराज है। गांव में तो उन्होंने रामराज स्थापित कर दिया है। अब वह अपने दल-बल के साथ देश में रामराज की स्थापना की मुहिम में निकले हैं। माना जा रहा है कि अन्ना की यह मुहिम सरकारों के लिए काफी बड़ा चैलेंज है। पहले ही दिन केंद्र सरकार का नरम रुख देखकर महसूस किया जा रहा है कि अन्ना की इस मुहिम में कारवां तेजी से बन रहा है।

कोई टिप्पणी नहीं: