सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

रशीद मसूद की अग्नि परीक्षा !

सत्यजीत चौधरी
 राजनीति और रुतबे का चोली—दामन का साथ है। दोनों का काम एक-दूसरे के बिना नहीं चलता। समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान और मुलायम सिंह का हाथ छुड़ा कांग्रेस का साथ पकड़ने वाले काजी रशीद मसूद पर यह जुमला एकदम फिट बैठता है। आजम काफी पहले घर लौट आए थे, जबकि रशीद मसूद ऐन विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हुए। अब दोनों नेताओं को खुद को साबित करना होगा। अगले दो चरणों में होने जा रहे मतदान में सिद्ध हो जाएगा कि इस दोनों नेताओं के पाले बदलने या घर लौटने के फैसले कितने सही थे और वे अपनी पार्टियों के कितने काम आ सके हैं।
दरअसल आजम और काजी रशीद का मामला एक सिक्के के दो पहलू की तरह है। आजम खान कल्याण सिंह की पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह से दोस्ती खटक रही थी। पिछले लोकसभा चुनाव में आजम की नहीं सुनी गई। अमर सिंह से खटपट बढ़ गई थी, लिहाजा उन्होंने सपा को अलविदा कह दिया। कुछ दिन बाद अमर सिंह भी सपा से निकल गए या निकाल दिए गए। पार्टी में पैदा हुए इस वैक्यूम को झट रशीद मसूद ने भर लिया और मुलायम के सेकेंड मैन बन गए। उनका रुतबा बढ़ गया। इस बीच, पार्टी को अहसास हुआ कि बाहर रहकर आजम काफी तोड़फोड़ कर रहे हैं और विधानसभा चुनाव में वह मुस्लिम वोट बैंक को बिदका देंगे। यादव फैमिली में राय—मशविरा हुआ और आजम को मनाने की कवायद शुरू हो गई। इधर आजम को किसी ने चारा नहीं डाला था, लिहाजा वह पार्टी में लौट आए। आजम के लौटते ही रशीद मसूद का रुतबा दप से बुझ गया। आजम की पूछ होने लगी और काजी साहब के फैसले पलटे जाने लगे। इसके बाद घुटन इतनी बढ़ी कि रशीद मसूद ने नया घर तलाशना शुरू कर दिया। 
इस बीच, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक कद्दावर मुस्लिम लीडर की तलाश कर रही कांग्रेस ने रशीद मसूद को लपक लिया। अब उन्हें पार्टी में बड़ी इज्जत बख्शी जा रही है। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी उन्हें साथ लिए घूम रहे हैं। रशीद मसूद के भतीजे इमरान को कांग्रेस ने टिकट दे दिया।
इसमें कोई शक नहीं कि पश्चिम यूपी में काजी साहब बड़ा नाम हैं और कांग्रेस के लिए रात—दिन एक भी किए हुए हैं, लेकिन क्या मुस्लिम वोटरों को खींचकर कांग्रेस के पाले में ला पाएंगे, यह ,लाख टके का सवाल है। अब तक समाजवादी पार्टी में रहकर वह भड़काओ और जोड़ो की राजनीति करते रहे हैं। बाबरी विध्वंस ने उनकी सियासी उछाल को ऊंचाई बख्शी थी। समाजवादी पार्टी में इस तरह की राजनीति को बुरा नहीं माना जाता, लेकिन अब कांग्रेस रशीद मसूद की यह पॉलीटिकल टैक्टिस को पचा पाएगी।
रशीद मसूद की राजनीति कर्मभूमि सहारनपुर में विभाजन के वक्त भी दंगे नहीं हुए थे। हिंदू और मुसलमान घी—शक्कर की घुल—मिल कर रह रहे थे। बाबरी कांड के दौरान और विध्वंस के बाद सभी सियासी पार्टियों ने सांप्रदायिकता के बीज बोए। कुछ ने फसल काटी, लेकिन कुछ के खेत सूख गए। सपा में रहते हुए रशीद मसूद भी बीज बोया था। नफरत की खाद और सियासत के पानी से खेत सींचा था, लेकिन वह फसल से महरूम रह गए। 2002 में भाजपा विधानसभा चुनाव में सहारनपुर सीट पर करारी हार मिली थी, लेकिन 2007 में रशीद मसूद की वजह से भाजपा जीत गई। सपा और उसके प्रत्याशी संजय गर्ग दोनों हार गए। इसके एक साल बाद रशीद मसूद की सांप्रदायिक नीतियों का विरोध करते हुए संजय गर्ग और जगदीश राणा बसपा में चले गए। कहा तो यहां तक जा रहा है कि सहारनपुर सीट से संजय और मुजफराबाद सीट से जगदीश राणा की शिकस्त में रशीद मसूद की भीतरघाती भूमिका थी।
इस चुनाव में भी रशीद मसूद ने अपनी मनमर्जी से कांग्रेस में टिकट बांटे है। टिकट बंटवारे पर उनके बंदरबाट ने कइयों को बिदकाया, लेकिन यशपाल चौधरी को आपे से बाहर कर दिया। वह दुखड़ा लेकर राहुल गांधी के दरबार तक जा पहुंचे। जब यशपाल की कांग्रेस ने नहीं सुनी तो इस बुजुर्ग नेता ने मुलायम का दामन थाम लिया। और बेटे रुद्रसेन के लिए गंगोह सीट से टिकट भी हासिल कर लिया।
रशीद मसूद के खेल का मुजरा कर रही समाजवादी पार्टी ने तुरुप का पत्ता चला। आजम खान की सलाह पर बेहट सीट पर जामा मस्जिद के शाही इमाम अब्दुल्ला बुखारी के दामाद उमर को टिकट दे दिया। जाहिर है कि शाही इमाम से नाम जुड़ा होने की वजह से बेहट में मुस्लिम वोटों का रुझान उमर की तरफ होगा। यानी रशीद की तरकीबों को झटका। रशीद से शाकुम्भरी का राजपरिवार भी खुश नहीं। इस शाही खानदान के सदस्य आदित्य विक्रम राणा को तब झटका लगा, जब रशीद मसूद ने उनका टिकट काटकर बेहट से नरेश सैनी को प्रत्याशी बनवा दिया।
गौरतलब है कि 2009 के लोकसभा चुनाव में सपा सहारनपुर विधानसभा और मुजफ्फरनगर जिले में सभी  सीटों पर हार गई थी। यह चुना काजी साहब की अलमबरदारी में लड़ा गया था। कांग्रेस भी  जानती है कि उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कामयाबी तभी  मिलेगी, जब सपा और बसपा के जनाधार में तोड़फोड़ की जाए। रशीद मसूद इस काम के लिए मुनासिब व्यक्ति हैं। अब देखना रोचक होगा कि सपा के मुस्लिम वोट बैंक को रशीद कैसे कांग्रेस के लिए कंवर्ट करते हैं।

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