बुधवार, 8 जून 2011

भाजपा रूपी जहाज पर उमा भारती की रि-लैंडिंग

सत्यजीत चौधरी
 कहते हैं आजमाए हुए को नहीं आजमाना चाहिए, लेकिन भाजपा में तो यह जैसे परंपरा—सी बन गई है। नेता पार्टी से निकाले जाते हैं और जब जरूरत पड़ती है, फिर तलब कर लिए जाते हैं। फिलहाल भगवा फायर ब्रांड उमा भारती को पार्टी ने याद किया है। उमा भी  तमाम कड़ुवी—कसैली यादे बिसराकर एक बार फिर घर लौट आर्इं हैं। पिछले छह साल से भाजपा से बाहर चल रही उमा की वापसी की अटकलें काफी समय से लगाई जा रही थीं। मंगलवार को पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने उमा का मुंह मीठा कराकर भाजपा में स्वागत किया। अब देखना है कि यह मिठास कब तक कायम रहती है।
       बहरहाल, उमा भारती को उत्तर प्रदेश विधानसभा  की कमान सौंपने के लिए लाया गया है। दरअसल पार्टी को समझ में नहीं आ रहा है कि यूपी में भाजपा के हिसाब से माहौल कैसे बनाया जाए। पार्टी यह अच्छी तरह से जानती है कि साध्वी को भाजपा की परिधि में बांधे रखना कितना दुष्कर है। वह मिनटों में किसी की भी  ऐसी—तैसी करने का दमखम रखती हैं, चाहे वह वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ही क्यों न हों। पिछले छह साल के दौरान मध्य प्रदेश में रहकर उमा भारती ने लोक हित के ढेरों काम किए, लेकिन उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा का सूखापन नहीं गया। प्राण कहीं भाजपा में अटके रहे। तभी तो पार्टी में शामिल होते वक्त उन्होंने भाजपा मुख्यालय पर मौजूद प्रेस के सामने सूरदास को उधृत किया और कहा
—मेरो मन अनत कहां सुख पावै, जैसे उड़ि जहाज कौ पंछी पुनि जहाज पै आवै॥

       इस साल जनवरी की एक सर्द सुबह उमा ने नेपाल में कहा था कि वह उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए एक ब्लैंक चेक हैं, वहां जैसा चाहे भाजपा उनका इस्तेमाल कर सकती है। तो उमा के हिसाब से गडकरी ने चेक पर रकम भर दी है। उमा को उत्तर प्रदेश की महती जिम्मेदारी सौंपी गई है। वह लखनऊ रहकर चुनाव अभियान की दिशा और दशा तय करेगी।
     तीन मई, 1959 को मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में लोधी राजपूत परिवार में जन्मी उमा भारती राजनीति में प्राय: एक विवादित महिला के रूप में जानी गई हैं। गुस्सा उनकी नाक पर रहता है और काम में हस्तक्षेप उन्हें बरदाश्त नहीं। उमा जबान पर लगाम की कायल नहीं। बोलती हैं तो तमाम सीमाएं तोड़ देती हैं। 1992 में बाबरी विवाद से लेकर अब तक उनपर सांप्रदायिक जुमलेबाजी के ढेरों आरोप लगे। कर्नाटक में सांप्रदायिकता फैलाने तथा दंगे भडक़ाने के आरोप में उमा को 23 अगस्त, 2004 को मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री का पद तक छोड़ना पड़ा था। खुद को साध्वी कहने में फख्र महसूस करती हैं, लेकिन सियासी चाह आले दर्जे की है। 1999 में जब अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने मंत्रिमंडल में उन्हें जगह दी तो पार्टी के शीर्ष नेताओं के विरोध के बावजूद उमा एक साथ कई-कई विभाग हथियाने में कामयाब रहीं।
     अब उमा भारती यूपी जा रही हैं, जहां उनकी महत्वाकांक्षी से टकराने के लिए कई दिग्गज पहले से मौजूद हैं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही से लेकर सीनियर लीडर कलराज मिश्र तक को उमा को साधना होगा। भाजपा से खार खाये बैठे कल्याण सिंह दूसरे फैक्टर हैं, जिनसे लोध वोट बैंक को लेकर तकरार हो सकती है। दूसरे उमा का सामना कांग्रेस की यूपी हेड रीता बहुगुणा जोशी से होगा। बोलने के मामले में वह भी उमा से कम नहीं हैं। फिर उमा भारती को मायावती को फेस करना होगा, जो मुख्यमंत्री हैं और पूरे फार्म में हैं।भाजपा से वह भी खार खाए बैठी हैं।
     यह तो तय है कि पार्टी उमा को चुनाव गियरअप करने के लिए भेज रही है। मुख्यमंत्री के रूप में किसे पेश किया जाएगा, इसपर पार्टी ने चुप्पी साध रखी है। उमा को भाजपा में फिर से शामिल कर यूपी की जिम्मेदारी सौंपने के पीछे पार्टी की मंशा एकदम साफ है। उमा की घर वापसी पर प्रेस के सामने गडकरी ने साफ-साफ कहा कि भाजपा राम मंदिर बनाएगी, क्योंकि कोर्ट ने भी  इसका रास्ता साफ कर दिया है। जाहिर है कि राममंदिर का शंखनाद साध्वी उमा भारती से बेहतर कौन फूंक सकता है।       

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