गुरुवार, 9 जून 2011

..और ऐसे ही जुदा हो गया देश पर फिदा शख्स

सत्यजीत चौधरी 
  महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में पैदा होकर कला की दुनिया में कदम रखने की हिम्मत जुटाने वाले भारत के पिकासो मकबूल फिदा हुसैन का लंदन में निधन हो गया। इसके साथ ही एक कला का कद्रदान अपने वतन लौटने की हसरत दिल में लेकर हमेशा के लिए इस दुनिया से विदा हो गया। कई वजह से विवादों में रहे मकबूल फिदा हुसैन निर्वासित जीवन जी रहे थे। उनके निधन पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सहित कई हस्तियों ने दुख जताया।
   सफेद दाढ़ी वाले मकबूल फिदा हुसैन के हाथ में आज भी जब रंगों की कूंची आती तो जैसे पलभर में एक कालयजी कला का नमूना सबके सामने आ जाता। उम्र इतनी होने के बावजूद उनकी कला अपने आप में एक आदर्श थी। कभी फिल्मों में पोस्टर बनाने वाले एमएफ हुसैन ने कब ब्रश थाम लिया, खुद उन्हें भी याद नहीं। जिस साल भारत आजाद हुआ, उस साल हुसैन के करियर को भी नई दिशा मिल गई जब वह मुंबई के प्रतिष्ठित प्रोग्रेसिव कलाकार के रूप में शामिल हो गए। 32 वर्ष की आयु में हुसैन भारत के सबसे बड़े चित्रकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए। रंगों के इस खेल में पता नहीं कब सांप्रदायिकता और रास्ट्रीयता के रंग जुड़ गए और पूरे कैनवस को फीका कर गए। कभी  जूते न पहनने वाले हुसैन ने आखिरी वक्त तक खुद को सीखने वाले कलाकार के तौर पर बनाए रखा। हालांकि उन्हें भारत के पिकासो की तुलना दी जाती थी लेकिन अपनी इस कामयाबी का घमंड उनको दूर तक भी नहीं छूता था। माधुरी दीक्षित की हंसी पर फिदा होने वाले मकबूल फिदा हुसैन ने उनकी इतनी पेंटिंग बनाई कि उनकी दीवानगी साफ झलकती थी।

   हुसैन के बारे में एक बात और प्रचलित थी कि वह कभी जूते नहीं पहनते थे। एक बात और जो उनके बारे में कही जा सकती है कि वह अपनी कला से ज्यादा कई बार अपने विवादों से भी सुर्खियों मे रहे। पहली बार वर्ष 1996 में हिंदू देवी देवताओं के आपत्तिजनक चित्र बनाने को लेकर विवादों में आए हुसैन की एक कलाकृति 1970 में एक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। तब वह सबके लिए अनजान थे और किसी को यह जानकारी नहीं थी कि यह कल का भारत का पिकासो कहलाएगा। उनकी इस पेंटिग के खिलाफ आठ आपराधिक मामले दर्ज किए गए। पूरे देश में उनके खिलाफ आवाज उठने लगी। विरोध प्रदर्शन हुए, इसके बाद हुसैन एक विवाद कलाकार के रूप में स्थापित हो गए। इसके बाद से लगातार वह किसी न किसी वजह से विवादों में रहे। 1998 में बजरंग दल ने मकबूल फिदा हुसनै के घर पर हमला कर दिया , जिस पर शिवसेना ने भी अपना समर्थन दिया। वर्ष1999 में उनकी लंदन में पेंटिंग की प्रदर्शनी रद्द करनी पड़ी क्योंकि उसे लेकर भारत में काफी विवाद हो गए थे। वर्ष 2006 में उनके खिलाफ हिंदू संप्रदाय को भड़काने के आरोप में गैर जमानती वारंट जारी किया गया। 90 की उम्र में हुसैन के लिए यह इतना बड़ा सिरदर्द हो गया कि उन्हें भारत छोड़ना पड़ा। भारतीय अदालतों में चलते मुकदमे और कुछ लोगों का विरोध हुसैन को तोड़ गए। उनकी कला भी प्रभावित हो गई और उन्हें कतर में शरण लेनी पड़ी। बाद में कतर ने उन्हें नागरिकता भी दे दी। हालांकि आखिर के कुछ साल हुसैन ज्यादातर ब्रिटेन में ही रहे। हुसैन के चित्र कहीं न कहीं लोकतंत्र की भावना को कुरेदते रहे हैं। उनके चित्र इस बात का भी उदाहरण है कि कला राजनैतिक नहीं होते हुए भी कैसे राजनैतिक रूप ले लेती है। साथ ही अश्लील की सीमा पर भी सवाल उठाती है। प्रोग्रेसिव आर्ट को आधार बना कर शुरू हुआ एमएफ हुसैन का फलक लोकप्रियता और विवादों की भेंट चढ़ा। हुसैन का जन्म 17 सितंबर 1915 में पंढरपुर में हुआ था। उन्हें 1991 में पद्म विभूषण भी मिला था। राम कथा पर जो सीरीज उन्होंने हैदराबाद में बनाई थी वो स्मरणीय है। ज्यादा समय विवादों में रहने के कारण अपनी मातृभूमि से प्यार करने वाले, उस कला के कद्रदान को आखिरी सांस अपने गांव में नसीब नहीं हुई। 

कोई टिप्पणी नहीं: