मंगलवार, 14 जून 2011

किसने बुझाई ज्योति, सवाल हैं कई !

सत्यजीत चौधरी
    ज्योतिर्मय डे को खतरों से खेलने का जुनून था। किसी की नहीं सुनते थे। क्राइम रिपोर्टिंग उनको थ्रिल देता था। बताया जाता है कि मुंबई में कोई बड़ी वारदात हो जाती तो कभी-कभी पुलिस उसे वर्क आउट करने में ज्योतिर्मय की मदद लेती थी। बड़े आर्गनाइज्ड गैंग और उनकी मोडस आॅपरेंडी डे की टिप्स पर रहती थी। घर वालों ने समझाया, सहकर्मियों ने आगाह किया, लेकिन डे धुन के पक्के थे। हाल के दिनों में वह महाराष्टÑ में सक्रिय तेल माफिया के करतूतों का ब्योरा इकट्ठा करने में लगे थे। सूत्र तो यहां तक कहते हैं कि डे दाऊद इब्राहीम और छोटा राजन के देश छोड़ने के बाद मुंबई अंडरवर्ल्ड में दोनों माफिया डॉन प्रॉक्सी चेहरों को बेनकाब करने में जुटे थे। एक सच यह भी है कि मुंबई में बिना पुलिस की मिलीभगत के न तो एक्सटार्शन का कारोबार चल सकता है और न ही हफ्ता वसूली। यह भी हो सकता है कि इस हत्याकांड में खुद किसी पुलिस वाले की भूमिका हो।
    शक की सुई अब अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर अनिल महाबोले पर भी घूम रही है। हत्याकांड में एसीपी अनिल महाबोले का नाम चर्चा में आने के बाद आनन-फानन में उनका तबादला भी कर दिया गया है। इसकी एक वजह यह भी बताई जा रही है कि जेडे ने अपनी एक खबर में साफतौर पर लिखा था कि एसीपी के तार सीधे तौर पर अंडरवर्ल्ड से जुड़े हैं। जेडे को कुछ ऐसे कागजात हाथ लगे थे, जिससे यह साफ था कि महाबोले का दाऊद के रिश्तेदारों के घर तक आना जाना है।
     शायद यही वजह है कि उनकी मौत के चार दिन बाद भी पुलिस कातिलों को लेकर अंधेरे में है। पुलिस ने चश्मदीदों की मदद से डे के कातिल का एक स्केच जारी किया है।
     सच के लिए इस साल अपनी जान गंवाने वाले डे पहले पत्रकार नहीं है। इससे पहले, 23 जनवरी को छत्तीसगढ़ के रायपुर में दैनिक नई दुनिया के पत्रकार उमेश राजपूत को बड़ी बेदर्दी से मौत के घाट उतार दिया गया था। उससे और पहले, 2 दिसम्बर, 2010 की एक सर्द रात दैनिक भास्कर के पत्रकार सुशाील पाठक को बिलासपुर में सत्य लिखने के सजा मौत मिली थी। द फ्री स्पीच हब की एक रिपोर्ट मौजूदा साल में भारत में पत्रकारों पर 14 हमले हो चुके हैं। पत्रकारों के उत्पीड़न में कई बार पुलिस भी अपराधियों तरह व्यवहार करती दिखी। इस साल 19 मई को ज्योतिर्मय डे के सहकर्मी रहे ताराकांत द्विवेदी को मुंबई में जीआरपी ने गोपनीयता कानून के तहत गिरफ्तार किया था। द्विवेदी का कुसूर यह था कि उन्होंने एक साल पहले 26/11 के बाद सुरक्षा के लिए खरीदे गए अत्याधुनिक हथियारों के लापरवाहपूर्ण रख-रखाव पर एक लेख लिख मारा था।
     द्विवेदी की गिरफ्तारी पर डे ने हंगामा खड़ा कर दिया था। उन्होंने जीआरपी के इस कदम को लेकर महाराष्टÑ के गृह मंत्री आरआर पाटिल से मुलाकात की थी। बताया जाता है कि उस दौरान डे ने एंटी करप्शन ब्यूरो की उस रिपोर्ट का खुलासा किया था, जिसमें पुलिस और अंडरवर्ल्ड के संबंधों पर तीखी टिप्पणी की गई थी। उस वक्त डे ने डीजल में मिलावट के काले कारोबारियों का जिक्र करते हुए पुलिस अधिकारियों के साथ उनके रिश्तों का हवाला दिया था।
    यूनेस्को की एक रिपोर्ट चौंकाने वाली नजीरें पेश करती है। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2006 से साल 2009 तक दुनिया में 247 पत्रकार अपने फरायज को पूरा करने में जांबहक हुए। इन तीन सालों में हिंदोस्तान के छह नामानिगारों को सच लिखने की कीमत जान देकर अदा करनी पड़ी।
     वैसे पाकिस्तानी पत्रकार सलीम शहजाद और ज्योतिर्मय  की हत्या के बीच समानता बताते हुए एक मीडिया अधिकार समूह ने कहा कि जुर्म के ताकतवर गिरोहों को बेनकाब करने के जुनून ने दोनों पत्रकारों की जान ली। ‘साउथ एशिया मीडिया कमीशन इंडिया’ ने महाराष्टÑ सरकार से कहा कि डे की हत्या की वजहों की जांच करने में वह कोई कसर न छोड़े।
     ‘साउथ एशिया फ्री  मीडिया एसोसिएशन’ (एसएएफएमए) के तहत काम करने वाले इस कमीशन ने हत्या की विशेष एजेंसियों से जांच कराने, आरोपियों को फौरन गिरफ्तार करने तथा उन्हें सजा दिलाने के लिए जल्द से जल्द मुकदमा चलाए जाने की मांग की है।

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