सोमवार, 20 जून 2011

वित्त मंत्रालय मे जासूसों कि सेंध !


- विकिलीक्स के दावे से जुड़ सकता है वित्त मंत्रालय का मामला 

सत्यजीत चौधरी
 देश के वित्त मंत्रालय से आई एक खबर ने सबको हिलाकर रख दिया है। एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक की इस खबर के मुताबिक कुछ महीने पहले वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने शक जाहिर किया था कि उनके दफ्तर की जासूसी कराई जा रही है। वित्त मंत्री ने तब प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस मामले की खुफिया तरीके से जांच कराने का आग्रह किया था। इस खुलासे के बाद इंटरनेट साइट विकिलीक्स के उस रहस्योद्घाटन को बल मिला है, जिसमें दावा किया गया था कि अमेरिकी प्रशासन ने भारत समेत विश्व के विभिन्न  देशों के राजनयिकों और सरकारी अधिकारियों की जासूसी करने के निर्देश जारी किए थे।हालांकि खबर छपने और हंगामा मचने के बाद प्रणब दा ने सफाई दी कि इस मामले की आईबी से जांच कराई गई थी, लेकिन उस जांच में कुछ नहीं मिला था।

     अखबार (इंडियन एक्सप्रेस) के मुताबिक वित्त मंत्री ने अपने खत में लिखा था कि उनके दफ्तर में 16 अहम जगहों पर चिपकने वाले पदार्थ (एडेसिव) दिखे थे। उन्होंने शक जाहिर किया था कि हो सकता है मंत्रालय के कामकाज पर नजर रखने की कोशिश की जा रही है।
    जिस 16 स्थानों पर एडेसिव के निशान पाए गए थे, वे खासे महत्वपूर्ण हैं। उनमें वित्त मंत्री का कार्यालय, उनके सलाहकार अमिता पॉल का दफ्तर, निजी सचिव मनोज पंत का दफ्तर और वित्त मंत्री द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले दो कॉन्फ्रेंस रूम शामिल थे। प्रणब मुखर्जी ने इस बात से इनकार किया था कि ऐसे संकेत नहीं मिले हैं, जिससे लगता हो कि चिपकाने वाले पदार्थ के साथ किसी माइक्रोफोन या किसी अन्य सेंसर वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरण को फिट किया गया हो।
चिपकने वाले पदार्थों की मजूदगी का पता तब चला था जब सेंट्रल बोर्ड आॅफ डाइरेक्ट टैक्सेस (सीबीडीटी)  ने निजी जासूसों की एक कुशल टीम से वित्त मंत्रालयल की जांच कराई थी। सीबीडीटी के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि वित्त मंत्री के टेबल पर तीन जगहों पर चिपकने वाले पदार्थ पाए गए थे, जिनमें से एक पर ऐसे निशान मिले थे, जिससे किसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के चिपकाए जाने का शक पैदा हुआथा।
बाद में जब आईबी ने मामले की जांच की तो चिपकने वाले पदार्थ को महज च्यूइंगम करार दिया था। यह बात दीगर है कि खुफिया वि•ााग ने अबतक इस बारे में रिपोर्ट नहीं दी है।
     इस मामले में विवादास्पद पहलू यह है कि   सीबीडीटी का दावा है कि चिपकने वाले पदार्थ जानबूझ कर दफ्तर में लगाए गए थे। वित्त मंत्री के आॅफिस में जासूसी की आशंका की खबर के बाद कई सवाल हैं जो सरकार के कामकाज पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। इनमें सबसे बड़ा सवाल है कि वित्त मंत्रालय जैसी संवेदनशील जगह पर प्राइवेट जासूसों को क्यों लगाया गया, जबकि देश में आईबी और सीबीआई जैसी दक्ष जांच एजेंसियां है। वित्त मंत्री ने इस मामले की जानकारी गृह मंत्री पी. चिदंबरम को क्यों नहीं दी। क्या इसके पीछे किसी तरह के आंतरिक कलह की बू आ रही है। वित्त मंत्री ने सीधे पीएम से इसकी शिकायत क्यों की। वह कौन सा व्यक्ति था, जो सरकार में नंबर दो की पोजीशन वाले प्रणब के मंत्रालय की गतिविधियों पर नजर रख रहा था। इसके पीछे उसका मकसद क्या था।
क्या इसके पीछे विदेशाी शक्तियां थीं। सनद रहे कि पिछले दिनों जब विकिलीक्स रहस्यों के बम फोड़ रही थी तो उसने एक ऐसा एक खुलासे में अमेरिका के चेहरे से नकाब को नोंच दिया था। वेबसाइट ने दावा किया था कि अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने 3१ जुलाई, 2009 को राष्टÑीय मानव अभसूचना संग्रह निर्देश जारी किया था जिसमें अमेरिकी राजनयिकों और गुप्तचर तंत्र से कहा गया था कि वे भारत सहित विभिन्न देशों के राजनयिकों तथा अफसरों के बारे में छोटी से लेकर बड़ी सभी  सूचनाएं जुटाएं। 
    यह जासूसी न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्टÑ मुख्यालय, संयुक्त राष्टÑ के  विएना तथा रोम स्थित दफ्तर के साथ दुनियाभर में फैले 3३ अमेरिकी दूतावासों के माध्यम से की जानी थी।
अमेरिका अफ्रीकी महाद्वीप सहित दुनिया के  अन्य हिस्सों में भारत के  बढ़ते प्रणव  को लेकर शायद यह जासूसी कराई जानी थी। इस निर्देशिका में संयुक्त राष्टÑ महासचिव बान की मून पर भी  नजर रखने की बात कही गई थी। हिलेरी क्लिंटन के  निर्देश में यह आशंका व्यक्त की गई थी कि  संयुक्त राष्टÑ शांति सेना में शिरकत के जरिये भारत, चीन और फ्रांस अफ्रीकी महाद्वीप में अपना प्रणव  बढ़ाने में लगे हुए हैं।

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