रविवार, 21 अगस्त 2011

ये तेजी बदल सकती है इतिहास !


सत्यजीत चौधरी
  इतिहास बदलता है तो पता भी  नहीं चलता। पहले की क्रांतियों में तो खून भी  बहता था लेकिन अन्ना की इस क्रांति में जो सुकून देखने को मिल रहा है, वह एक नए इतिहास की ओर इशारा करता है। तिहाड़ जेल में 68 घंटे खाली पेट बिताने के बाद राजघाट पर अन्ना ने दौड़ लगाई तो उन्हें देखने वाला हर शख्स हैरत में था। इतने समय तक कुछ भी खाए बिना एक 74 साल का बुजुर्ग कैसे इतना तेज दौड़ सकता है, यही सवाल हर किसी की जुबान पर देखने को मिल रहा था। दरअसल अगर इतिहास के झरोखे से देखें तो अन्ना की यह दौड़ कई मायने रखती है। इससे एक ओर इतिहास की इबारत की ओर इशारा हो रहा है।
     अन्ना हजारे ने जैसे ही राजघाट से चले तो उनकी रफ्तार जनता के बीच आते ही बढ़ती चली गई। देखते ही देखते उनकी तेजी इतनी बढ़ी कि साथ में चलने वाले लोग भी पीछे रह गए। यहां तक की पुलिस अधिकारी भी  हांफने लगे। अन्ना के चेहरे पर शिकन तक नहीं आई। उनका कहना था कि जिस प्रकार देश की जनता का समर्थन मिल रहा है, उससे उत्साह खुद ब खुद बढ़ जाता है। इतिहास में भी  भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हों या फिर अश्वेत नेता मार्टिन लूथर किंग। हर किसी की तेजी से उनके समर्थकों में एक नया जोश का संचार होता था। महात्मा गांधी जब दांडी यात्रा पर निकले थे तो उनकी तेजी इस कदर होती थी कि उनके साथ चलने वाला पूरा काफिला हांफने लगता था, लेकिन उनके मुंह से उफ तक नहीं निकलती थी। अश्वेत नेता मार्टिन लूथर किंग भी  जब चलते थे तो उनकी तेजी देखने लायक होती थी। चीनी क्रांति के जनक कहे जाने वाले मावसे त्वंग की तेजी के भी  सभी  कायल थे। कहा जाता है कि वह जब चलते थे तो लोग उनके साथ लगने के लिए दौड़ लगाते थे। भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की रफ्तार भी  कुछ कम न थी। राजीव गांधी चूँकि पायलट थे और हवा से बात करते थे इसलिए  उनकी फुर्ती भी  देखने लायक थी। कहा जाता है कि जब राजीव गांधी मंच पर चढ़ते थे तो उनकी फुर्ती गजब की होती थी। ऐसे में एसपीजी को विशेष निर्देश दिए जाते थे कि जब भी मंच तैयार किया जाए तो उनकी सीढ़ियां विशेष रूप से मजबूत बनाई जाएं। आज कांग्रेस के युवराज के तौर पर उभर रहे राहुल गांधी की भी तेजी काफी है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि नेताओं में यह तेजी इसलिए होती है ताकि उनके पीछे चलने वाली जनता को यह भरोसा रहे कि उनका नेता फिट है और वह एक साथ मिलकर अपनी मंजिल को आसानी से पा लेंगे। अन्ना हजारे खुद इस बात को स्वीकार भी कर चुके हैं कि जनता का समर्थन उनके अंदर एक नई ऊर्जा का संचार करता है।

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