सोमवार, 12 दिसंबर 2011

अब छोटे चौधरी के सामने बड़ी चुनौतियां

सत्यजीत चौधरी
      चौधरी अजित सिंह एक बार फिर सुर्खियों में हैं, उन्हीं वजहों से जिनसे वह अकसर रहते हैं, यानी गठबंधन। लंबे अर्से के बाद छोटे चौधरी कांग्रेस और कांग्रेस छोटे चौधरी को आजमाने जा रहे हैं। इस बार मामला कई कोणों से दिलचस्प है। अजित सिंह ने ऐसे मौके पर कांग्रेस का हाथ थामा है, जब केंद्र सरकार करप्शन और उसे लेकर देश•ार में हो रहे विरोध की वजह से मुसीबत में है। उत्तर प्रदेश विधानसभा  के चुनाव भी सिर पर हैं और लाख कोशिशों के बावजूद राहुल गांधी का जादू सिर पर चढ़ने को तैयार नहीं है। कांग्रेस अजित की मदद से यूपी में कुछ सीटों पर निशाना साधने की सोच रही है। तीसरा मामला क्रेडिड का है। जाट अजित सिंह पर निसार हैं और उनके सिवा किसी और को अपना नेता मानने को तैयार नहीं हैं। जाटों को आरक्षण देने के मुद्दे पर सरकार पर भारी दवाब है। अजित सिंह चाहते हैं कि केंद्र उनकी शर्त पर जाटों के लिए आरक्षण की घोषणा करे।
उधर, अजित सिंह पर भी  सबकी नजरें हैं। लोग यह जानने को बेचैन हैं कि उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के यूपी—फोर के फार्मूले में पश्चिमी प्रदेश की अवधारणा को अजित कैसे अपने ड्रीम प्रोजेक्ट हरित प्रदेश में तब्दील करते हैं। यह सवाल उठने भी  लगा है। रविवार को आगरा में लोकमंच प्रमुख अमर सिंह ने रैली की और छोटे चौधरी को चुनौती दी कि हरित प्रदेश बनाने का अपना वादा वह पूरा कर दिखाएं।
अजित के हरित प्रदेश के ख्वाब की चाबी भी  अब केंद्र सरकार के पास है। मायावती तो प्रस्ताव रूपी गेंद केंद्र के पाले में डालकर अपने पत्ते चल चुकीं। अब केंद्र सरकार पर है कि वह इस प्रस्ताव को राज्य पुनर्गठन आयोग के पास भेजता है या फिर संसद में बहस के लिए पेश करता है। केंद्र चाहे तो अजित सिंह की परिकल्पना वाले हरित प्रदेश को आकार दे सकता है।
देखा जाए तो इस बार अजित सिंह ने कांग्रेस का साथ थामने में कोई उतावलापन नहीं दिखाया। वह पश्चिमी यूपी में जाट, मुस्लिम और पिछड़े वर्ग की मिली—जुली अपनी ताकत को जानते हैं और उन्हें इस बात का विश्वास है कि यह वोट बैंक कहीं जाने वाला नहीं। अजित अच्छी तरह जानते हैं कि कांग्रेस से उनके गठबंधन से कांग्रेस या रालोद को उतना फायदा नहीं होगा, जितना नुकसान बसपा का होगा। कांग्रेस भी  यही चाहती हैं ।
वैसे देखा जाए तो अब तक की राजनीतिक यात्रा में अजित सिंह में स्थायी भाव का सर्वथा अभाव देखने को मिला है। चूंकि इस बार अजित के साथ पार्टी के गठबंधन में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी खुद इंवॉल्व हैं, इसलिए उन कांग्रेसी नेताओं के मुंह सिले हुए हैं, जो रालोद के साथ के सख्त विरोधी हैं। कांग्रेस के कुछ नेता अजित सिंह की तुलना विद्याचरण शुक्ल से करते हैं, जिन्होंने अलग—अलग दलों से गठबंधन किए और फिर तोड़े। कांग्रेसी इस बात को लेकर संशय में हैं कि इस बार का प्रस्तावित गठबंधन कितने दिन चलता है।
अजित सिंह बहत्तर साल के हो चुके हैं और प्रधानमंत्री बनने की उनकी सनातन इच्छा कहीं उनके अंतरमन में अब भी दुबकी बैठी है। उनको मालूम है कि अपनी पार्टी के बल पर वह इस ओहदे तक नहीं पहुंच सकते हैं, अलबत्ता मोर्चे या गठजोड़ में इस तरह के हालात बन सकते हैं, जो उन्हें पीएम की कुर्सी तक पहुंचा दे। उन्हें इंतजार है अपने पिता चौधरी चरण सिंह, के अलावा आईके गुजराल और वीपी सिंह के समय के हालात बनने का।
अजित सिंह टेक्नोक्रेट हैं और सत्रह साल तक अमेरिका के कारपोरेट जगत को अपनी इंजीनियरिंग स्किल की सेवा दे चुके हैं, लेकिन राजनीति की तकनीक शायद उनकी समझ से परे है।
अब हालात कुछ-कुछ वैसे ही हैं, जो 1986 में थे, जब बुढ़ापे में थक चुके चौधरी चरण सिंह ने पार्टी की बागडोर बेटे को सौंपी थी। अब अजित बेटे जयंत चौधरी के सियासी भविष्य को लेकर परेशान हैं। जयंत अर्थशास्त्री हैं और मौजूदा हालात की राजनीति को समझते भी  हैं। कहते हैं कि वह चौधरी परिवार की परंपरा से बंधे तो हैं, लेकिन पार्टी को विस्तार देने की छटपटाहट भी  उनमें है। जयंत युवाओं को रालोद से जोड़कर उसकी ताकत बढ़ाने में जुटे हैं। छोटे चौधरी उनकी कार्यप्रणाली से संतुष्ट तो हैं, लेकिन वह चाहते हैं कि जयंत राजनीति में और ऊंचा मुकाम हासिल करे।
अब तक सियासी बिसात पर बैठे छोटे चौधरी बड़े ध्यान से मोहरों की दशा और दिशा देख रहे थे। अब जल्द ही वह चालें चलना शुरू करेंगे। जल्द ही समर्थन की चिट्ठी वह सोनिया और प्रधानमंत्री को सौंपेंगे। इसके बाद कैबिनेट का संक्षिप्त विस्तार कर अजित सिंह को मंत्री बनाया जाएगा और शायद नागरिक उड्डयन मंत्रालय सौंप दिया जाए। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में सीटों के बंटवारे पर औपचारिक फैसला ले लिया जाएगा। इसके बाद छोटे चौधरी अपने कार्यकर्त्ताओं से कहेंगे—गो अहेड और शुरू हो जाएगा राजीतिक समर।

2 टिप्‍पणियां:

LNP ने कहा…

Choudhary Ji,

Yea, khabar ap na hi pehalay break ke tee. Thanks for the sources which you are enjoying. Thanks

DhyanAshram ने कहा…

ये समझ नहीं आया के चौधरी साहब अभी तक सत्ता से दूर कैसे थे. उनका तो रिकॉर्ड रहा है सत्ता के साथ चलने का