शनिवार, 31 दिसंबर 2011

...तो फिर याद आए मुसलमान

सत्यजीत चौधरी
लोकसभा के चुनाव हों या राज्यों में विधानसभा के, उनकी डुगडुगी बजते ही मुसलमान एकदम से वाजिब और अव्वल हो जाते हैं। यूपी समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के ऐलान के साथ फिर सब पार्टियों को मुसलमानों की याद सताने लगी है। पहला पत्ता चला मायावती ने। उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों को आरक्षण देने की मांग की थी। केंद्र ने मायावती को जवाब भेजा कि जैसे कि अन्य राज्यों में है, उत्तर प्रदेश सरकार भी अपने यहां मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए स्वतंत्र हैं। गेंद पाले में वापस देख मायावती ने चुप्पी साध ली। इस बीच, यूपीए सरकार ने तुरुप का पत्ता चला और सरकारी नौकरियों और शिक्षा में मुस्लमानों को 4.5 फीसद का आरक्षण देकर शेष दलो को भौचक्का कर दिया।
अब चुनाव में मुस्लिम आरक्षण कांग्रेस को कितने वोट दिला पाएगा, यह तो समय बताएगा, लेकिन केंद्र की इस चाल ने मुसलमानों की सियासत करने वाले समाजवादी पार्टी और राष्टÑीय लोकदल को परेशान कर दिया है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव सबसे ज्यादा परेशान हैं। वजह साफ हैं, इस बार उनके साथ आजम खान तो हैं, लेकिन अमर सिंह नहीं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से एक बड़ा मुस्लिम चेहरा, काजी रशीद मसूद भी अब उनके साथ नहीं है। पार्टी मुस्लिम क्षति की भरपाई में जुटी हुई है। इस संदरभ में सांसद शाहिद सिद्दीकी से मुलायम की बढ़ती नजदीकियां साफ कह रही है मुस्लिम वोट के रुझान को लेकर सशंकित हैं। पिछले गुरुवार को मुलायम सिंह दिल्ली स्थित जामा मस्जिद पहुंचे। पूरे एक घंटे तक उनकी शाही इमाम अहमद बुखारी से चर्चा चली। बाद में जामा मस्जिद सचिवालय ने इस मुलाकात के बारे में जो प्रेस नोट जारी किया, उसके हिसाब से मुलायम ने बुखारी से चुनाव में मुसलमानों का समर्थन मांगा। सचिवालय के मुताबिक शाही इमाम ने अभी इस मुद्दे पर मुलायम को कोई आश्वासन नहीं दिया है। सचिवालय ने अंत में यह जोड़कर इस मुलाकात को और दिलचस्प बना दिया कि शाही इमाम चाहते हैं कि देश के सभी मुसलमानों को पिछड़ा वर्ग में शामिल किया जाए और उन्हें आरक्षण का लाभ दिया जाए।
धड़ाधड़ यूपी के दौरे कर रहे कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी भी मुस्लिम वोट बैंक की अहमियत को समझ रहे हैं, तभी तो पिछले दिनों लखनऊ में उन्होंने मुसलमानों की संस्था नदवा जाकर राबे हसन नदवी से मुलाकात की और कांग्रेस का पक्ष रखा। बदायूं दौरे पर राहुल ने शहर काजी से उनके आवास पर जाकर मुलाकात की थी। इसके साथ ही जामा मस्जिद जाकर मुस्लिम उलेमा से मिले थे और सच्चर समिति की सिफारिशों पर सरकार की योजनाओं के बारे में उनको बताया था। 
मायावती पीछे नहीं हैं। पिछले दिनों उन्होंने लखनऊ में मुस्लिम—वैश्य और क्षत्रिय रैली कर मुस्लिमों को रिझाने की कोशिश की। वह लगातार मुसामानों के साथ हो रही नाइंसाफियों की बात कर रही हैं । 
...तो किस्सा कोताह यह है कि सभी दल किसी न किसी रूप में मुसलमानों को रिझाने—मनाने में लगे हैं। राजनीति के पंडित बता रहे हैं कि हर बार की तरह इस बार भी मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण नहीं होगा। पश्चिमी यूपी में मुस्लिम वोटों का अधिसंख्य हिस्सा रालोद और कांग्रेस को जाएगा, जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुसूलमान मुलायम के पक्ष में जाएंगे।

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