रविवार, 18 दिसंबर 2011

राजनीतिक हड़बड़ी नहीं धैर्य का कमाल

सत्यजीत चौधरी
    पिता से मिली विरासत में जिन चीजों को अजित सिंह ने बड़े जतन से संभाला है, वह है धैर्य। कोई भी सियासी सुनामी आए, अजित सिंह निरपेक्ष बने रहते हैं। फिर अचानक दांव चलकर सबको चौंका देते हैं। कभी किसी ने छोटे चौधरी को राजनीतिक हड़बड़ी में नहीं देखा। देश की राजनीति में वह सबको जानते हैं और सब उनको। वह सबको आजमा चुके हैं और सब उनको। फिर भी सियासी पार्टियां उनसे गठबंधन करने को बेचैन रहती हैं।
     अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के बैनर तले उसके अध्यक्ष यशपाल मलिक पिछले दो साल से ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण की मांग के साथ जाट बहुल राज्यों में हंगाम बरपा किए रहे। रातों-रात वह लोकप्रिय हो गए। यहां तक कि केंद्र को यशपाल मलिक को वार्ता की मेज पर बुलाना पड़ा। अजित खामोशी के साथ मलिक का यश फैलता देखते रहे। ऐन चुनाव से पहले उन्होंने केंद्र के पास संदेश भेजा। बात शुरू हुई और अब अजित सिंह केंद्र में मंत्री हैं। आने वाले चंद दिनों में केंद्र जाटों को आरक्षण की घोषणा कर देगा। क्रेडिड अजित सिंह को जाएगा और जाट आरक्षण के तमाम अलमबरदार मुंह ताकते रह जाएंगे।
अजित सिंह पर आरोप लगे कि वह अवसर की राजनीति करते हैं। इसके तहत एक मुहावरा मशहूर है—कुर्सी जिधर, चौधरी उधर। उन्हें इस बात की कतई फिक्र नहीं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की चंद सीटों के बल पर वह राजनीतिक पार्टियों से सौदा करते रहते हैं।
    बहरहाल, अब अजित सिंह को एक और मौका मिला है। वह बहत्तर साल के हो चुके हैं। यानी कुछ सालों में सियासत के ठीहे से अपना सामान समेटने और विरासत बेटे को सौंपने का वक्त आ जाएगा। अजित सिंह को पिता के नक्श—ए—कदम पर चलते हुए वह सब करना चाहिए, जिससे वह बेटे को मजबूत विरासत सौंप सकें। अब तक छोटे चौधरी पिता चौधरी चरण सिंह की बोई नेकनामी की फसल काट रहे थे। उन्हें क्षेत्र के लोगों से किया हरित प्रदेश का वादा पूरा करना होगा। सबसे ज्यादा राजस्व देकर राज्य सरकार का खजाना भरने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ सभी सरकारों ने सौतेला व्यवहार किया। अजित सिंह को वेटर्न यूपी में अलग हाईकोर्ट बेंच के लिए चल रहे संघर्ष को ताकत देनी होगी। 
रेल नेटवर्क के मामले में पश्चिमी उत्तर प्रदेश सर्वाधिक पिछड़ा हुआ है। कई इलाकों में रेल लाइन तक नहीं। प्रदेश के इस हिस्से के अधिकतर लोग सड़क परिवहन पर आश्रित हैं।
अब अजित चूंकि केंद्र के मंत्री तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रेल सुविधा दुरुस्त करने के लिए सरकार पर दबाव डाल सकते हैं। 
अजित सिंह को लोगों को बताना होगा कि पश्चिम प्रदेश उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की राजनीतिक चाल है, जबकि हरित प्रदेश इस क्षेत्र के लोगों की खुशहाली की चाबी। 
पश्चिमी यूपी का इलाका हर दृष्टि राज्य के अन्य हिस्सों से आगे है। यहां तकरीबन 7,265 औद्योगिक इकाइयां हैं। कृषि उत्पादन भी 25.2 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर है। प्रति व्यक्ति सालाना आय 17,083 रुपये है। राजनीतिक नजरिए से भी पचिमी उत्तर प्रदेश ने केंद बिंदु का काम किया है। यूपी में अब तक बीस सीएम बने हैं। इनमें चौधरी चरण सिंह, बनारसीदास गुप्त, रामप्रकाश गुप्ता, कल्याण सिंह और मायावती पश्चिमी उत्तर प्रदेश से रहे हैं।
    पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नब्ज समझने वाले बता रहे हैं कि मायावती के प्रस्तावित पश्चिम प्रदेश में अल्पसंख्यकों यानी मुसलमानों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होगी। यह मायावती का सियासी खेल है। वह एकजुट जाट और मुसालमानों में दरार डालना चाह रही है। उनकी यह मुहिम रालोद को कमजोर करेगी।

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