बुधवार, 14 दिसंबर 2011

बदलेगा अल्पसंख्यक समाज

सत्यजीत चौधरी
18 दिसंबर को पूरे देश में ‘माइनॉरिटी राइट्स दिवस’ मनाया जाएगा। 1992 से शुरू हुआ यह सिलसिला अपने 20वें साल के प्रवेश में खास हो गया है। इसके साथ ही अल्पसंख्यकों से जुड़े शिक्षा, रोजगार और अन्य मुद्दे भी तेजी पकड़ेंगे। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से पूर्व इस दिन का महत्व बढ़ जाता है। संभवत: इसीलिए केंद्र सरकार की ओर से एक बार फिर अल्पसंख्यकों को रिझने की कोशिश शुरू हो गई है।
अल्पसंख्यकों को सुविधाओं में बढ़ोतरी के मकसद से केंद्र ने सच्चर समिति का गठन किया था। इस समिति की सिफारिशों को अमल में लाने की कवायद शुरू हो गई है। इन सिफारिशों पर अमल किया गया, तो दस साल बाद अल्पसंख्यक तबका ज्यादा शिक्षित, ज्यादा कामयाब और ज्यादा रोजगार वाला हो सकता है।
शैक्षिक तौर पर पिछड़े अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों को आगे लाने की सरकार की कवायद का नतीजा है कि अब केवल अल्पसंख्यक छात्र ही नहीं, बल्कि छात्राएं भी भविष्य संवारने के लिए तेजी से आगे आ रही हैं। उच्च शिक्षा के प्रति लड़कियों में बढ़ती ललक के चलते अल्पसंख्यक वर्ग की छात्राओं ने छात्रों के मुकाबले 51 प्रतिशत छात्रवृत्ति हासिल की है।
इसकी बड़ी वजह सरकार की मेहरबानियां हैं, तो माता-पिता और समाज की बदलती सोच भी है। आज मां-बाप बच्चों को किसी भी कीमत पर शिक्षित बनाकर कामयाब बनाने में दिलचस्पी लेते हैं। अल्पसंख्यक मंत्रालय के आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि यह समुदाय तेजी से तरक्की की ओर बढ़ रहा है। मैट्रिक के बाद छात्रवृति योजना के तहत 2010-11 में कुल पांच लाख 25 हजार छात्रवृतियां बांटी गईं, जिनमें 51 प्रतिशत लड़कियां हैं। इस साल के लिए मंत्रालय ने चार लाख छात्रवृतियां बांटने का लक्ष्य रखा था, जो कि सवा लाख ज्यादा हो गया। छात्रवृति पाने वाले छात्रों की बढ़ती तादाद देखते हुए मंत्रालय ने 2011-12 के लिए साढ़े चार लाख छात्रवृति बांटने का लक्ष्य रखा है। इस योजना के दिशा-निर्देशों के तहत 30 प्रतिशत छात्रवृति लड़कियों के लिए आरक्षित है।
इसी प्रकार मैट्रिक पूर्व छात्रवृति योजना में 44.21 लाख छात्रवृतियां बांटी गईं और इसमें भी 48 प्रतिशत से ज्यादा लड़कियां हैं। कहा जा सकता है कि यदि महिलाओं को उचित अवसर दिए जाएं, तो उनकी शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति में काफी बदलाव लाया जा सकता है। इसी विचार पर अमल करते हुए मंत्रालय ने योजना की सफलता से खुश होकर 2011-12 के लिए 27 लाख वजीफे देने का लक्ष्य रखा है। यह छात्रवृति योजना अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए प्रधानमंत्री के 15 सूत्रीय कार्यक्रमों में शामिल है।
हालांकि इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। मसलन, अल्पसंख्यकों में भी मुसलिमों के लिए अलग से कोटा लागू करने की मांग जोर पकड़ रही है।
चुनावी सीजन के बीच यह मांग भी अमल में आ जाती है, तो इससे समाज के बीच खाई और गहरा जाएगी। हालांकि फिलहाल उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के चुनावी स्टंट के बाद केंद्र सरकार की ओर से मुसलिम आरक्षण पर पूरा क्रेडिट लेने की तैयारी चल रही है। राजनीतिक पंडितों की मानें, तो आगामी विधानसभाओं के चुनाव से पहले मुसलिमों को अलग दर्जा दिया जा सकता है।
अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की प्रतिभा और साधन, छात्रवृति योजनाएं अल्पसंख्यक वर्ग के उन छात्रों को दी जाती हैं, जो तकनीकी या व्यावसायिक पाठ्यक्रम में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। 2007-08 में शुरू की गई इस योजना का 31 मार्च 2011 तक कुल एक लाख 20 हजार 491 छात्र फायदा उठा चुके हैं।
मंत्रालय के अधीन स्वायत्त संस्था मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन भी अल्पसंख्यक छात्राओं की उन्नति में योगदान दे रहा है। समेकित विकास के लिए सरकार ने विश्वविालय अनुदान आयोग की सलाह पर एमफि ल और पीएचडी करने वाले अल्पसंख्यक छात्रों के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप योजना शुरू की है।
इसके तहत हर साल 252 छात्रों को फेलोशिप दी जाएगी। इसमें 30 प्रतिशत लड़कियों को दी जाएगी। यह फैलोशिप यूजीसी द्वारा मान्यता प्राप्त सभी शैक्षणिक संस्थाओं तथा विश्वविालयों पर लागू होगी।
केवल योजनाओं को चलाने में ही नहीं, अल्पसंख्यक छात्रों के लिए लागू वजीफा योजना में छात्रों को हो रही परेशानियों की ओर भी सरकार का ध्यान गया है। कई अल्पसंख्यक संगठनों ने सरकार से शिकायत की है कि छात्रों को फार्म भरने में परेशानी हो रही है। छात्रवृति मिलने में देरी और बैंक द्वारा छात्रों का खाता खोलने में हो रहे टालमटोल की शिकायतें भी की गई हैं। इसके तहत प्रतिभा आधारित छात्रवृति योजना के लिए ऑनलाइन प्रबंधन की व्यवस्था की गई है। नए और दोबारा आवेदन करने वाले छात्रों के लिए समयसीमा भी बढ़ाई गई है और इसकी निगरानी भी सख्त कर दी गई है। इतनी सफलताओं के बाद भी सरकार के सामने यह चुनौती बनी रहेगी कि वह अल्पसंख्यक वर्ग के छात्र- छात्राओं के उन्नति की राह में आने वाली बाधाओं की पहचान करके उनमें कौशल विकास करे।
हालांकि सरकार की ओर से किसी न किसी बहाने से हमेशा अल्पसंख्यकों के हित में नए प्रयास जारी हैं, लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में जिस तेजी से सरकार युवाओं पर पकड़ बनाने का प्रय8 कर रही है, उससे यह भी कहा जा सकता है कि कांग्रेस अपना भविष्य सुरक्षित रखना चाहती है। इसमें भी कोई दोराय नहीं है कि हमेशा से ही दिल्ली की कुर्सी पर कांग्रेस का कब्जा दिलाने में अल्पसंख्यक मतों का सबसे बड़ा रोल रहा है। हालांकि अल्पसंख्यकों पर मेहरबानी और इनायत के चलते ही समाज के दूसरे महत्वपूर्ण माने जाने वाले तबके हमेशा से ही कांग्रेस से दूरी बनाए हुए रहे हैं।
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने मुसलिम वोट बैंक को मजबूत करने के मकसद से मुसलिमों के आरक्षण की वकालत की है, तो भाजपा इसके विरोध में खड़ी दिखाई दे रही है। भाजपा का तर्क है कि संप्रदाय के आधार पर आरक्षण नहीं मिलना चाहिए, क्योंकि इससे समाज के बीच की खाई बढ़ जाएगी। वहीं यूपी में अपनी जमीन तलाश रही कांग्रेस को इस वक्त यह सबसे अहम मुद्दा नजर आ रहा है। कांग्रेस की केंद्र सरकार भी अब अल्पसंख्यकों में शामिल मुसलिमों को अलग से आरक्षण देने की वकालत करती दिखाई दे रही है। इस बीच कभी किसी ने इस बात पर जोर देने की कोशिश नहीं की है कि अल्पसंख्यक हित में पहले से ही चल रही उक्त तमाम योजनाओं पर यदि सही प्रकार अमल किया जाए और इसके लाभ सही प्रकार से अल्पसंख्यकों तक पहुंचाए जाएं, तो बेहतर परिणाम सामने आ सकते हैं।

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