शनिवार, 31 दिसंबर 2011

वैश्विक विरोध और आम आदमी

सत्यजीत चौधरी
     अमेरिका और यूरोप के कई देशों में इस साल सर्दियों की मस्ती नहीं है, गुस्से की गर्माहट है। खून जमा देने वाली सर्द हवाओं के बीच लोग क्रिसमस मनाने के लिए नहीं, बल्कि पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ सड़कों पर डेरे डाले बैठे हैं। लंदन के एक चर्चयार्ड में सेंट पॉल्स कैंप के आंदोलनकारियों को हटाने के लिए सरकार कोर्ट की शरण में जा पहुंची है। अमेरिका में भी विरोध -प्रदर्शन जारी हैं। शेयर मार्केट, मुक्त बाजार और पूंजीवादी अर्थतंत्र के विरुद्ध लोगों की नाराजगी सातवें आसमान पर है। यों कह सकते हैं कि लंबे समय के बाद दुनियाभर में बहुसंख्यक कामकाजी आबादी अल्पसंख्यक पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ उठ खड़ी हुई है। यह एक फीसद अमीरों के खिलाफ निनान्बे फीसद आम आदमी की जंग है।
हर तरफ लोग गुस्से से लबालब हैं। लंदन के पूंजीवाद विरोधी प्रर्दानकारियों ने खनन क्षेत्र की बड़ी कंपनी एक्स्ट्रॉटा के मुख्यालय पर धावा बोला और कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को निशाना बनाने की कोशिश की। 
अमेरिका में बढ़ते विरोध इस बात के साफ संकेत है कि अमेरिकी शहरों के वित्तीय संस्थान, जो गंभीर संकट से जूझ रहे हैं, के खिलाफ लोगों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। लोग कह रहे हैंं कि कंजरवेटिज्म ने घटिया पूंजीवाद को मनमानी करने दी। उसे आला मुकाम दे दिया। 
पिछले कई दशकों से धौंस और दादागीरी के बलबूते दुनिया पर राज कर रहे अमेरिका में मंदी का दौर तीस साल पहले ही शुरू हो गया था, लेकिन वहां की सरकारों ने दरकती—टूटती पूंजीवादी व्यवस्था की खामियों को विश्व से छिपाए रखा। कर्ज लेकर घी पीने की ठसक ने वहां बैंकिंग प्रणाली को अंदर से खोखला कर दिया, लेकिन अमेरिका ग्रेट होने का प्रपंच रचता रहा। तीन दशकों से अमेरिका में नौकरियां घट रही हैं।
दूसरी तरफ, बड़े अमेरिकी कॉरपोरेट घरानों ने अपने अल्पकालिक लाभ के लिए उन मूल्यों और संस्कारों को त्याग दिया, जिनके लिए कभी अमेरिका जाना जाता था। घटिया पूंजीवादी व्यवस्था ने पांव पसारना शुरू कर दिया। वॉल स्ट्रीट द्वारा संचालित इस व्यवस्था ने अतिधनाढ्य लोगों को तो और अमीर बना दिया, लेकिन नौकरियों के खत्म होने, छंटनी और कोई भविष्य न होने ने बहुसंख्यक आबादी क हाशिये पर धकेल दिया। अमेरिका दिल फरेब रंगीनियों में डूबता चला गया। मॉल्स की संस्कृति फलने—फूलने लगी। इस एक प्रतिशत से नकल के चक्कर में लोग कर्ज लेकर घी पीने लगे। अमेरिकी बैंकों ने भी दिल खोलकर ऋण देने शुरू कर दिए।
अब जबकि हालात बिगड़ चुके हैं, अमेरिकी प्रशासन उल्टे-सीधे हाथ मारकर डूब रही अर्थ-व्यवस्था को बचाने की जुगत कर रहा है। इस दिशा में अमेरिकी संसद की प्रतिनिधिसभा में एक विधेयक पेश किया गया है, जो पास हुआ तो उन कंपनियों को अमेरिकी सरकार की तरफ से ग्रांट और गारंटीशुदा कर्ज मिलना बंद हो जाएगा, जो भारत जैसे देशों में नौकरियां दे रही हैं। 
यूएस कॉल सेंटर वर्कर्स एंड कंस्यूमर प्रोटक्शन एक्ट नाम के इस विधेयक को दो सांसदों, टिम बिशप और डेविड मैकिनले ने पेश किया है। जानकारों का मानना है कि अगर यह कानून बना तो अमेरिकी कंपनियां दबाव में आकर भारत में अपने काम या त बंद कर देंगी या फिर काफी हद तक कम कर देंगी, जिसका सीधा असर भारत में कॉल सेंटरों में काम कर रहे लाखों युवाओं पर पड़ेगा।
ओबामा प्रशासन पर लगातार दबाव पड़ रहा है कि वह दुनियाभर में डेरा डाले पड़ी अपनी सेनाओं को वापस बुलाकर खर्च में कटौती करे। अमेरिकी प्रशासन ने इस दिशा में कदम उठाना शुरू भी कर दिया है और इराक, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से उसका बोरिया—बिस्तर समेटे जाना इसी दबाव का असर है।
अमेरिका में इस समय शेयर बाजार को लेकर जनता में बेहद गुस्सा है। लोगों का मानना है कि वॉल स्ट्रीट नाम की संस्था कुछ लोगों को जुए के जरिये अमीर बना रही है, जबकि बड़ी संख्या में लोग अभाव में बिलबिला रहे हैं। अमेरिका में वॉल स्ट्रीट पर कब्ज़ा करो अभियान से जुड़े प्रर्दानकारियों ने तीन बंदरगाहं के गेट पर बाधा डाली हुई है। इस वजह से ट्रक नहीं निकल पा रहे हैं। कैलिफोर्नियां, ओरेगांव और वाशिंगटन में बंदरगाहों में आंशिक रूप से कामकाज बंद होने के बाद कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
अब चलते हैं यूरोप की तरफ। यहां भी अधिसंख्य देशों की हालत खस्ता है। ब्रिटन के पड़ोसी देश आयरलैंड ने अपनी नाक और साख बचाने की सारी कोशिशें नाकाम होने के बाद मजबूर होकर अंतरराष्टÑीय मुद्रा कोष, यूरोपीय आयोग और यूरोपीय केंद्रीय बैंक के सामने हाथ फैला दिए हैं।
अपने तेज़ आर्थिक विकास और बढ़ती प्रति व्यक्ति आय के कारण तीन साल पहले तक यूरोप के केल्टिक टाइगर के नाम से जाना जाने वाले आयरलैंड ने तीन साल के लिए लगभग 9 अरब यूरो (5,8,00 करोड़ रुपए) के कजऱ् का अनुरध किया है। ब्रिटिश सरकार भी आयरलैंड को लगभग आठ अरब पाउंड का कजऱ् देने जा रही है ताकि आयरलैंड के बैंकं में लगी ब्रितानी बैंकों की पूंजी और आयरलैंड को जाने वाले 29 अरब पाउंड के सालाना ब्रितानी निर्यात क बचाया जा सके। इस मामले में आयरलैंड अकेला देश नहीं है। पिछली मई ग्रीस को 110 अरब यूरो के कर्ज के लिए हाथ फैलाने पड़े थे। यूरोप में भी बैंकों ने अनियंत्रित होकर कर्ज बांटे। कई बैंक दीवालिया हो चुके हैं और कई अन्य दीवालियापन के कगार पर हैं।
खुद ब्रिटेन में आर्थिक प्रणाली की समीक्षा का दबाव बढ़ता जा रहा है। देश के युवा इस बात के लिए सरकार पर दबाव डाल रहे हैं कि मौजूदा आर्थिक व्यवस्था में दोहरे मानदंडों को अलविदा कहा जाए।
अर्थ-व्यवस्था के खिलाफ दुनियाभर में हो रहे प्रदर्शनों का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है अरब क्रांति, वॉल स्ट्रीट कब्जा करो अभियान और रूसी उथल—पुथल को सलाम करते हुए टाइम पत्रिका ने प्रदर्शकारियों को सम्वेत रूप से पर्सन आफ द इयर-2011 चुना है।

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