शनिवार, 10 सितंबर 2011

अब कड़े और बड़े फैसले लेने होंगे

  सत्यजीत चौधरी
11/7, 26/11, 13/7, 7/9....! ये महज तारीखें नहीं हैं। ये हैं उन जख्मों के निशान हैं जो दहशतगर्द हमें लगातार दे रहे हैं। वे बार-बार लौटकर आते हैं। हर बार और भी भयानक रूप के साथ। वे सिर्फ जिंदगियां नहीं छीनते, बल्कि बहुत कुछ छीन ले जाते हैं। वे बच्चों के चेहरे से मुस्कान नोंच लेते हैं। वे मांगों से सिंदूर मिटा देतें हैं। वे परिवारों के मुंह से निवाला झपट लेते हैं। 
   नक्सलबाड़ी, खालिस्तान, कश्मीर, लिट्टे...सत्तर के दशक के बाद से लगातार अलग जमीन, अलग मुल्क के नाम पर भारत के सीने पर जख्म पर जख्म दिए जा रहे हैं। इस नफरत ने हमसे हमारे कई नेता छीन लिए। हमारी विकास प्रक्रिया को बाधित किया। हमें खौफ के साये में जीने के लिए मजबूर किया।
    सरकारें आती रहीं और जाती रहीं, लेकिन हम आतंकवाद के मूल को न तो ठीक से समझ पाए और न ही उनको जड़ से खत्म करने का तरीका ढंूढ पाए। आतंकवाद को लेकर सरकारों का रवैया भी कम दोषपूर्ण नहीं हैं। हम बार-बार उनके दबाव में आते रहे। 1989 में रूबिया सईद का आतंकियों ने अपहरण कर लिया। जम्मू—कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री एवं तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के बेटी को मुक्त कराने के लिए जेकेएलएफ के पांच दहशतगर्दों को सरकार को छोड़ना पड़ा। फिर कंधार कांड मामले में भी हम घुटनों के बल आ गए। 1999 में अपहृत विमान यात्रियों की मुक्ति के लिए तत्कालीन केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह खुद आतंकियों को लेकर कंधार जाना पड़ा था।
    आतंकवाद से हम जितना त्रस्त हैं, हमारा खुफियातंत्र उतना ही लचर। लंदन में 2005 के बम विस्फोट तथर अमेरिका पर 9/11 के आतंकी हमले के बाद इस प्रकार की एक भी घटना नहीं हुई तो इसका श्रेय चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था और पैने खुफियातंत्र को जाता है, पर हमारी सरकार को धमाके जगा रहे हैं। हर कांड के बाद सरकार आंखें मलते हुए उठती है। बड़े-बड़े संकल्प लेती है। पाकिस्तान को घुड़कती है। अमेरिका से शिकायत करती है और कुछ दिन बाद फिर ढाक के तीन पात। इस मामले में हमारा विपक्ष कम जिम्मेदार नहीं है। सालभर के संसद घंटों को जोड़ा जाए तो पता चलेगा कि एक बड़ी समयावधि विरोध और हंगामों की भेंट चढ़ गई। सरकार को घपले—घोटालों, भरष्टाचार, महंगाई, आरोप—प्रत्यारोप व राजनीतिक उठा—पटक से फुर्सत ही नहीं मिल पाती है। ये मुद्दे भी अहम हैं, लेकिन बार-बार देश के सीने को छलनी कर रहे आतंकवाद से भी निपटना बेहद जरूरी है। जिस वक्त पाकिस्तान आतंकवाद को पाल—पोस रहा था, अगर उसी समय हमने अमेरिका की तर्ज पर घुसकर उसे सबक सिखा दिया होता तो शायद ये हालात न पैदा होते। शायद उस वक्त इंदिरा गांधी जिंदा होतीं और देश की बागडोर संभल रही होतीं तो हमें ये दिन नहीं देखने पड़ते। कड़े और बड़े फैसले लेने में उनकी कोई सानी नहीं थी। पकड़े गए आतंवादियों और साजिश रचने वालों को भी सजा देने में नाकाम रहे हैं। अफजल गुरु और आमिर कसाब को कब का फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए था।
    यह हमारी आंतरिक सुरक्षा का झोल ही है कि आतंकी खरामा—खरामा आते हैं, वारदात करते हैं और लौट जाते हैं। हम बस लकीर पीटते रह जाते हैं। हमारी जांच एजेंसियां एक-दूसरे से उलझती रहती हैं। तकनीकी मामलों में भी आतंकवादियों के मुकाबले हमारा खुफिया एजेंसियां काफी कमजोर हैं। यही वजह है कि भावी हमलों को रोकना तो दूर हम 26/11 हमलों के बाद देश में हुए पांच आतंकी वारदातों को सुलझा नहीं सकें हैं। दिल्ली हाईकोर्ट के जिस गेट पर बुधवार को हमला किया गया, वहां तीन माह तेरह दिन पहले एक कम तीव्रता का बम फटा था, लेकिन हम आतंकियों की रिहर्सल को समझ नहीं पाए और उनके फाइनल शो में चौदह लोगों की जान गंवा बैठे।
    इस वारदात के बाद सभी दिल्ली पुलिस को कोस रहे हैं। राष्टÑीय राजधानी होने के नाते दिल्ली पुलिस के पास ढेरों दीगर काम हैं। धरने, प्रदर्शन, राजनीति रैलियां, अपराध, पड़ोसी राज्यों से जुड़ी समस्याएं, दूतावासों की सुरक्षा, वीआईपीज का मूवमेंट वगैरह—वगैरह। फिर आप कैसे मान लेंगे कि आतंकवाद से निपटने और उसपर निगाह रखने के लिए वक्त निकाल लेगी। वाशिंगटन और न्यूयार्क में अपराधी भागता है तो पुलिस अपने हेलीकॉप्टर से पीछा कर उसे पकड़ लेती है। यहां पुलिस को जो पीसीआर वैन दिए गए हैं, वे कभी तो पेट्रोल कम होने की वजह से काम नहीं कर पातीं तो कभी तकनीकी कारणों से। 
    हकीकत तो यह है आतंक से निपटने एक विशेष सुरक्षातंत्र का गठन बेहद जरूरी हो गया है। इस बल को कुछ खास तरह के अधिकार दिए जाएं। उसे अत्याधुनिक हथियारों और सर्विलांस उपकरणों से लैस किया जाए। मुंबई पर आतंकवादी हमले के बाद रास्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) का गठन हुआ है लेकिन यह केवल हमले के बाद जांच करके आतंकवादियं को पक़ड़ने और उन्हें सजा दिलाने का काम करती है। हमें आतंकवाद रोधी एजेंसी भी बनानी पड़ेगी जो आतंकवादी गुटों का पता लगाकर घटना को अंजाम देने से पहले ही उन्हें नष्ट करे।

कोई टिप्पणी नहीं: