मंगलवार, 20 सितंबर 2011

सियासी मेहरबानियों का दौर

सत्यजीत चौधरी, 
सियासी मेहरबानियों का दौर यूपी की मुख्यमंत्री ने अल्पसंख्यक कार्ड खेला, तो दिल्ली की सीएम  ने दलित कार्ड 
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती आजकल चिठ्ठियां लिखने में व्यस्त हैं। यका-बाद-दीगरे यानी एक बाद एक वह प्रधानमंत्री को तीन खत भेज चुकी हैं। चौथा पत्र भी आ सकता है। डा. मनमोहन सिंह को लिखे पहले पत्र में मुख्यमंत्री ने मुसलमानों के लिए आरक्षण की मांग रखी। दूसरे दिन उनका सवर्ण प्रेम जागा, तो उन्होंने पिछड़े सवर्ण को भी आरक्षण के दायरे में रखने की हिमायत की। तीसरे दिन उन्हें जाट याद आ गए, लिहाजा उन्होंने पीएम को पत्र लिखकर इस बिरादरी के लिए ओबीसी कोटे में आरक्षण की मांग कर डाली। इस बीच, दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को लगा मायावती बाजी मार ले जा रही हैं, तो उन्होंने पश्चिम उत्तर प्रदेश तक मार करने वाला मिसाइल छोड़ा। दलित कार्ड खेलते हुए शीला ने झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले अनुसूचित जाति के लोगों को मुफ्त में आवास देने का ऐलान कर डाला। योजना के तहत लगभग सत्तर हजार आवासों का निर्माण किया जाना है। सरकार के अनुसार चौदह हजार आवास आवंटन के लिए तैयार हैं।
   पिछले दिनों काफूरपुर रेलवे स्टेशन के ट्रैक पर अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति ने कब्जा कर लिया था, तो मायावती ने जाटों को खुला समर्थन देकर साफ कर दिया था कि वह चुनाव में इस बिरादरी को लेकर कार्ड जरूर खेलेंगी। हुआ भी ऐसा ही। मुस्लिम वोट बैंक पर अनिश्चितता के बादल हैं। कोई भी दल खम ठोंककर नहीं कह सकता कि मुसलमान उसके साथ हैं। इन चार सालों के दौरान राहुल गांधी के यूपी दौरों ने पार्टी को लेकर मुसलमानों की नाराजगी कुछ कम की है, लेकिन चुनाव में मुसलमान कांग्रेस का कितना साथ देंगे, कहना मुश्किल है। जहां तक समाजवादी पार्टी का सवाल है, अमर सिंह के बाद आजम खां की एंट्री क्या असर डालेगी, इसका आकलन करना अभी जल्दी होगी। आरक्षण को लेकर जाट बिरादरी कांग्रेस से नाराज है और सपा के साथ उसके जाने का सवाल ही नहीं पैदा होता, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि जाट मायावती के साथ जाएंगे। जाट चौधरी चरण सिंह की परंपरा से अब भी जुड़े हुए है। लिहाजा अनुमान है कि वे वही करेंगे, जो छोटे चौधरी कहेंगे। 

कोई टिप्पणी नहीं: