मंगलवार, 27 सितंबर 2011

यूपी में निलंबनों की झड़ी, यानी अन्ना इफेक्ट

सत्यजीत चौधरी
   उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती इस समय पूरे फार्म में हैं। पार्टी की छवि खराब कर रहे नेताओं को वह एक के बाद एक कर सजा दे रही हैं। सजा भी ऐसी कि नेता याद रखें। कसूरवारों को वह पार्टी से निकाल नहीं रही हैं, बल्कि निलंबन की चिट्ठी थमाकर उन्हें किसी और पार्टी में जाने लायक नहीं छोड़ रही। सस्पेंशन की पाइपलाइन में अभी कई और नाम है। सब दम साधे सोच रहे हैं, अगला कौन?
   सूत्र बता रहे हैं कि आने वाले कुछ ही दिनों में एक बड़े नाम समेत कुछ और नेताओं पर गाज गिर सकती है। इन नामों में एमएलसी संजय द्विवेद्वी उर्फ रामू द्विवेद्वी, मंत्री सुभाष पांडेय और बाबू सिंह कुशवाहा के नामों की सुगबुगाहट है।
मायावती ने आपरेशन क्लीन क्यों शुरू किया है,इस बारे में अलग—अलग क्यास लगाए जा रहे हैं, लेकिन मायावती की सियासी चालों को समझने वाले कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री ने भरष्टाचार को लेकर अन्ना हजारे के आंदोलन को मिले देश—व्यापी समर्थन और लाचार केंद्र सरकार के घुटने टेकने के तमाम घटनाक्रम से सबक लेते हुए सफाई का अभियान शुरू किया है। मायावती इस बात को अच्छी तरह समझ रही हैं कि अन्ना का हैंगओवर काफी दिनों तक जनता के दिमाग पर हावी रहने वाला है। वह नहीं चाहतीं कि दागदार छवि वाले नेताओं की वजह से विधानसभा चुनाव को वोटर बसपा को खारिज कर दें। 
     मई, 2007 में चौथी बार उत्तर प्रदेश की बागडोर संभालने वाली मायावती अपने इस कार्यकाल में करीब 30 लोगों को सरकार या पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा चुकी हैं। अब उनका आपरेशन क्लीन और गति पकड़ चुका है। लोकयुक्त की जांच में दोषी पाए जाने के बाद पशुधन विकास मंत्री पद से इस्तीफा देने वाले अवधपाल सिंह पार्टी से सस्पेंड होने के बाद अब तक चोट सहला रहे हैं। उसके बाद तो जैसे झड़ी लग गई। जौनपुर के सांसद धनंजय सिंह और बदायूं के बिल्सी से विधायक यगेंद्र सागर को निलंबित करने के बाद भी सस्पेंशन पेपर्स पर उनके हाथ चल रहे हैं। ताजा शिकार बने हैं मेरठ से विधायक हाजी याकूब कुरैशी घोसी के पूर्व सांसद बालकृष्ण चौहान। कुरैशी को निलंबित किया गया है, जबकि चौहान को सीधे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। अनुशासनहीनता के आरोप में बालकृष्ण को राज्य शैक्षिक अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष पद से भी हटा दिया गया है। कुरैशी 2007 में विधानसभा चुनाव के बाद अपनी पार्टी का विलय बसपा में कर लिया था। हाजी याकूब पर सिख समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप है। विधायक योगेंद्र सागर का निलंबन और एक अन्य विधायकचंदेल की पार्टी से बर्खास्तगी पुरानी बात हो चुकी है। चौथे राउंड में मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने जबरन जमीन कब्जा करने के मामले में मायावती ने सांसद उमाकांत यादव की राजनीतिक बलि ले ली थी। जून, 2008 में एक सिपाही की मौत के मामले में उन्होंने तत्कालीन मत्स्य विकास मंत्री जमुना प्रसाद निषाद मंत्रिमंडल से निकाल फेंका था। लखनऊ में दो—दो सीएमओ की हत्या के बाद मायावती ने अपने सबसे नजदीकी मंत्री बाबू सिंह कुावाहा को भी कैबिनेट से हटा दिया था। साथ स्वास्थ्य मंत्री अनन्त कुमार मिश्र का भी इस्तीफा ले लिया था।
सब जानते हैं कि सजा देने से पहले मायावती चेतावनी जरूर देतीं हैं। नसीमुद्दीन सिद्दीकी छोड़कर कोई ऐसा नेता नहीं है, जो मायावती के सियासी कद के आसपास भी फटकता हो। पावर शेयरिंग की सोच रखने या महत्वाकांक्षी लोग उन्हें पसंद नहीं।

कोई टिप्पणी नहीं: