बुधवार, 7 सितंबर 2011

कब तक, आखिर कब तक चलेगी यह जंग ?

सत्यजीत चौधरी
    दहशतगर्द दिल्ली के सीने पर एक और जख्म दे गए। रंज इस बात का कि इस बार उन्होंने बताकर राजधानी को लहूलुहान किया है। ठीक तीन महीने तेरह दिन पहले उन्होंने मौत का रिहर्सल किया था और बुधवार को फाइन शो में बारह बेकुसुर मारे गए। 85 से ज्यादा घायल हैं। भगवान करे कि सब चंगे हो जाएं और धमाके से सदमे से उबरकर जल्द से जल्द जिंदगी के कारोबार से जुड़ जाएं।
  विस्फोट की खबर टीवी न्यूज चैनलों पर आने के बाद उन लोगों के होश उड़ गए, जिनके परिजन किसी काम से हाईकोर्ट गए थे। लोकनायक जयप्रकाश, राम मनोहर लोहिया, सफदरजंग अस्पताल और एम्स में लोग बदहवासों की तरह अपनों को तलाश रहे थे। धमाकों में मारे गए लोगों की लाशों पर पछाड़ खा रहे परिजनो का रुदन ने सबको हिलाकर रख दिया।
  विस्फोट के चंद मिनटों बाद ही प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने चार लाइन का एक बयान जारी किया—हम इससे हार नहीं मानेंगे। यह एक लंबी लड़ाई है और हम इससे निपटेंगे। लेकिन जिन लोगों के परिजन इस घिनौनी वारदात में मारे गए हैं उनके थम नहीं रहे आंसू बस एक सवाल पूछ रहे हैं-हम कब तक लड़ते रहेंगे। यह लड़ाई कितनी लंबी चलेगी और कितने निर्दोष लोगों को निगलेगी। परिजनों के चीत्कारों से यह भी प्रश्न उभर रहे हैं कि सुरक्षातंत्र और खुफिया विभाग की चूकों और लापरवाहियों का खमियाजा बेकसूर कब तक भूगतेंगे।
   साढ़े तीन महीने पहले 25 मई को इसी हाईकोर्ट के बाहर कार में बम फटा था। इस धमाके के बावजूद हमारे खुफियातंत्र और सुरक्षा एजेंसियों ने सबक नहीं लिया। इस मामले से जुड़ी जांच एजेंसियां अब तक हवा में तीर मार रही हैं। माना जा रहा है कि धमाके के पीछे आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन का हाथ है। साजिशें की जड़ें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पिलखुआ में तलाशी जा रही हैं। इस मामले के मुख्य संदिग्ध पिलखुआ के आमिर रजा अंसारी को आतंकी तक जांच एजेंसियां नहीं खोज पाई हैं।
    इस हमले के लिए हरकत—उल—जिहादी इस्लामी (हूजी) ने जिम्मेदारी ली है, लेकिन रास्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी फिलहाल इसे मानने को तैयार नहीं है। हूजी ने मीडिया को जारी ई-मेल में दावा किया है कि उसने संसद हमले के मुख्य सूत्रधार अफजल की प्रस्तावित फांसी की सजा रुकवाने के लिए यह वारदात की है।
    बहरहाल, यह हमला हूजी ने किया हो या लश्कर, हरकत या इंडियन मुजाहिदीन ने हकीकत तो यह है कि जानें गर्इं हैं। सौ के करीब घायल मौत से जूझ रहे हैं। राजधानी के साथ पूरा देश दहशत में है। 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका पर हमला हुआ था। उस दुस्साहस के बाद अमेरिकी प्रशासन ने अफगानिस्तान में जो गदर काटी, उसे जायज नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन उसने आंतरिक सुरक्षा इतनी चाक-चौबंद कर दी कि फिर कोई आतंकी संगठन ऐसी गुस्ताखी करने की हिम्मत नहीं कर सका।
  दूसरी तरफ, भारत आजतक कोई कारगर सुरक्षा नीति बना ही नहीं सका है। रक्षा विशेषज्ञ सुशांत सरीन का मानना है कि अब अमेरिका की तर्ज पर देश में सुरक्षा तंत्र विकसित करना बेहद जरूरी हो गया है। समीर का कहना है कि अमेरिका में हर व्यक्ति की एक बेहद पुख्ता आईडी होती है। हर तरह से जांची—परखी। अमेरिका में हर बच्चे का जन्म होते ही उसका नाम रजिस्टर्ड हो जाता है। उसे सामाजिक सुरक्षा नंबर उपलब्ध कराया जाता है, जो उसकी मौत तक वैध रहता है। यानी अमेरिका की धरती पर जन्म लेने वाले हर व्यक्ति का एक डाटा बैंक सरकार की फिंगर टिप्स पर होता है। भारत में इस तरह की कोई प्रणाली नहीं है। हमें आतंकी तक पुख्ता तौर यह भी पता नहीं कि देश में किसते बांग्लादेशी नागरिक अवैध रूप से पनाह लिए हुए हैं।
   सरकार ने आधार पहचानपत्र पर काम शुरू तो किया है, लेकिन यह योजना इतनी मंथर गति से चल रही है कि इसके पूरी तरह लागू होने में कई साल लग जाएंगे। देश में गैर-कानूनी रूप से रह रहे बांग्लादेशी और अन्यं देशों के नागरिकों पर लगाम लगाने के लिए भी कारगर कानून जरूरी है। अमेरिका की मिसाल देते हुए सरीन कहते हैं कि अमेरिका के एक अटॉर्नी जनरल क सिर्फ इस वजह से इस्तीफा देना पड़ा था कि उनके घर में गैर कानूनी ढंग से अमेरिका में रह रही एक महिला काम करती थी।
 रह गई बात हमारे खुफियातंत्र की नाकामी की तो इसके लिए सरकार की इच्छा शक्ति की कमी जिम्मेदार है। अमेरिका सेटेलाइट से अफगानिस्तान में तालिबान की हरकतों पर नजर रखता है और हमारे यहां कश्मीर से आतंकी घुसपैठ कर जाते हैं और कई बार हमें पता भी नहीं चलता है। सूचनाओं के आदान—प्रदान में भी हम काफी कच्चे हैं। आतंकी तक प्रदेश एक-दूसरे को अलर्ट करने का कोई कारगर सिस्टम नहीं बना पाए हंै। 
   दूसरी तरफ, भारत में आतंक को लेकर भी राजनीति होती है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी देने के सवाल पर सियासत हो रही है। आतंकवादियों को भगवे या हरे रंग के चश्मे से देखा जा रहा है। हम आजतक पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद में पड़ोसी को एक भी सख्त सबक नहीं सिखा पाएं हैं। हम आज तक खून—खराबा कर महिलाओं को विधवा और बच्चों को यतीम बनाने वालों को फांसी के तख्ते तक नहीं पहुंचा पाए हैं।

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