बुधवार, 20 जुलाई 2011

.....तो हाईटेक हो चुके है आतंकियों के नेटवर्क !

सत्यजीत चौधरी, 
 मुंबई में हाल में हुए आतंकी हमलों के बाद रक्षा विशेषज्ञ, खुफियातंत्र के जानकार, सामाजिक विज्ञान के ज्ञाता और मीडिया एक सवाल बार-बार उठा रहे हैं कि आखिर कब तक देश ऐसे हमलों के जख्म झेलता रहेगा। देश के गुप्तचर ढांचे की क्षमता और काम—काज के तौर-तरीकों पर  उंगली उठ रही है। हर हमले के बाद बड़ी—बड़ी बातें होती हैं। राजनीति बयान दिए जाते हैं और फिर वक्त बीतने के साथ सब खुला दिया जाता है। 9/11 के हमलों के बाद अमेरिका ने खुद को इतना मजबूत कर लिया कि कोई भी  खूंरेजा का मंसूबा बनाने की जुर्रत नहीं कर सका।
      सब जानते हैं कि आतंकी अत्याधुनिक साधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं। उनके पास आरडीएक्स से लेकर क्लाशिनिकोव रायफलें तक हैं। संचार माध्यमों में भी  वे किसी से कम नहीं है।  वे सरहद पर बैठे हमारे पहरुओं को धोखा देकर आसानी से घुसपैठ कर लेते हैं और हमें पता भी  नहीं चलता। वे वाईफाई से लेकर सेटेलाइट और स्मार्ट फोन से सरहद पार बैठे अपने आकाओं से बात कर रहे हैं। वे इंटरनेट का बड़े ही शातिराना ढंग से इस्तेमाल कर रहे हैं। वे ई-मेल पर संदेश डालते तो हैं, लेकिन सेंड आॅप्शन में जाने के बजाए मैसेज को एक फोल्डर में सेव कर देते हैं। दूसरे सिरे पर बैठा उसका आका या साथी ई-मेल के पासवर्ड का इस्तेमाल कर मेल खोलता है और संदेश पढ़ने के बाद उसे डीलिट कर देता है। देश का खुफियातंत्र आजतक आतंकियों के संचारतंत्र की रीढ़ पर एक भी  वार नहीं कर पाया है। 
   राजस्थान के बाड़मेर, जैसलमेर और जोधपुर में लगातार सेटेलाइट फोन के सिग्नल्स मिल रहे हैं। सेना और खुफिया एजेंसियों का कहना है कि अब तक जो संकेत मिले हैं, वे न तो फौज के सेटेलाइट फोन के हैं और न ही विदेशी पर्यटकों के। इसका सीधा मतलब है कि राजस्थान के इन सरहदी जिलों में आतंकी सेटेलाइट फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं। हाल में रंजीत सागर बांध के पास सेटेलाइट फोन के अनजान सिग्नल मिलने के बाद खुफिया एजेंसियों की नींद उड़ गई है। पंजाब पुलिस के ढेरों जवान इस इलाके में सेटेलाइट फोन की तलाश में चप्पा—चप्पा छान रहे हैं। आईबी ने देश के सबसे बड़े अखड़ा डैम पर आतंकी साये की आशंका जताकर केंद्र सरकार की नींद उड़ा दी है। सीमा वाले राज्य होने की वजह से राजस्थान लंबे समय से पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के निशाने पर रहा है। जयपुर में 13 मई, 2008 को दहशतगर्दों ने मौत का जो हौलनाक खेल खेला था, उसकी याद से आज भी  राजधानी के लोग सिहर जाते हैं। इसके अलावा, अजमेर दरगाह ब्लास्ट भी  लोगों के जेहन में डरावने ख्वाब की तरह जिंदा है। उसके बाद पुलिस मुख्यालय पर एक विशेष बैठक आहूत कर सुरक्षा का जो ब्लूप्रिंट तैयार किया गया था, उसमें आतंकियों के संचारतंत्र पर कड़ी नजर रखने की बात कही गई थी, लेकिन तब से लेकर सीमा से लगे कई जिलों में सेटेलाइट फोन के संकेत मिलते रहे हैं और पुलिस और बीएसएफ उनतक नहीं पहुंच पाए हैं।
  ई-मेल और फोन कॉल्स पर पैनी निगाह रख रही जांच एजेंसियां इस बात को समझ रही हैं कि आतंकी अब पुराने ढर्रे से हटकर इंटरनेट वॉइस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल यानी वीओआईपी का इस्तेमाल कर रहे हैं। राजस्थान में उनका पसंदीदा हैंडसेट अब भी  सेटेलाइट फोन बना हुआ है। शुरू में तो राज्य की खुफिया एजेंसियों को अंदेशा था कि सेटेलाइट फोन के सिग्नल्स विदेशी सैलानियों के हैं, लेकिन बाद में नेशनल टेक्नीकल रिसर्च आॅर्गेनाइजेशन ने राजस्थान सरकार को चेताया तो खुफिया एजेंसियों ने सरहदी जिलों का रुख किया। इस साल मार्च में जैसलमेर, बाड़मेर और जोधपुर में कम से कम छह बार अंजान सेटेलाइट सिग्नल्स ट्रेस किए गए हैं।अभी  हाल में कश्मीरी आतंकियों के पास से स्मार्ट फोन की बरामदगी इस बात की सनद  है कि आतंकी पूरी तरह से हाईटेक हो चुके हैं और उनको मात तभी  दी जा सकेगी जब सेना और खुफिया एजेंसियां सूचना तकनीक में उनसे दो कदम आगे चलें।  

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